Russia Ukraine War : 'मैं जिंदा रहूं या नहीं, इन बच्चों को छोड़कर नहीं लौटूंगी', हरियाणवी बेटी ने युद्धग्रस्त यूक्रेन से लौटने से किया मना
(हरियाणवी बेटी ने युद्धग्रस्त यूक्रेन से लौटने से किया इनकार)
Russia Ukraine War : कहते हैं मुश्किल वक्त में ही इंसानियत की परख होती है। भारत की एक बेटी ने इसकी मिसाल पेश की है। ऐसे वक्त में जब यूक्रेन पर रूस (Russia) ने हमला बोल दिया है और चार दिनों धरती और आसमान बारूद के गोले बरस रहे हैं। भारत के तमाम छात्र किसी तरह देश वापस लौट रहे हैं, ऐसे माहौल में हरियाणा से मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए आई नेहा को वहां से निकलने के लिए मौका मिलने पर भी उसने यूक्रेन (Ukraine Crisis) को छोड़ने से मना कर दिया है।
खबरों के मुताबिक नेहा की मां की एक दोस्त ने फेसबुक पर पोस्ट साझा करते हुए बताया कि 17 वर्षीय नेहा को हॉस्टल में जगह नहीं मिली थी। ऐसे में तीन बच्चों वाले प्यारे से परिवार के सात एक कमरा किराए पर लेकर रह रही थी। रूस के हमले के बीच बच्चों के पिता ने अपनी इच्छा से आर्मी जॉइन की है। तीन बच्चों के साथ मां एक बंकर में है। नेहा भी उनके साथ है। भारत लौट आने के बजाय नेहा ने उनके तीन बच्चों के साथ वहीं रहने का रास्ता चुना है।
जानकारी के मुताबिक मुश्किल से दूतावास से संपर्क कर बेटी को वहां से निकालने की कोशिश की। लेकिन उसने उन तीन बच्चों और मां को ऐसे मुश्किल वक्त में अकेला छोड़कर वापस आने से इनकार कर दिया। नेहा ने युद्ध खत्म होने तक वहीं रुकने की ठान ली है। नेहा की मां हरियाणा के चरखी दादरी जिले में टीचर हैं। नेहा ने अपनी मां से कहा कि मैं जिंदा रहूं या नहीं, लेकिन ऐसी स्थितियों में इन बच्चों और उनकी मां को नहीं छोड़ूंगी।
नेहा के पिता भारतीय सेना में थे। कुछ साल पहले ही उनका निधन हो चुका है। नेहा को पिछले साल ही यूक्रेन में एक मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला था। एमबीबीएस की स्टुडेंट नेहा ने हॉस्टल में रूम न मिलने पर राजधानी कीव में कंस्ट्रक्शन इंजीनियर के घर में कमरा किराए पर लिया था। नेहा की मां की करीबी दोस्त सविता जाखर ने फेसबुक पोस्ट में बताया है कि देश छोड़ने की तमाम एडवायजरी और सरकार के बंदोबस्त के बावजूद नेहा ने यूक्रेन से आने से मना कर दिया।
सविता ने लिखा, 'मेरी दोस्त ने बड़ी मुश्किल से एम्बेसी से कॉन्टैक्ट कर वहां से नेहा को निकलवाने की कोशिश की। यह और बात है कि उन तीन बच्चों और उनकी मां को ऐसे मुश्किल वक्त में अकेला छोड़ वह वापस नहीं आना चाहती है। मां की लाख कोशिशों के बावजूद वह युद्ध खत्म होने तक वहीं रुकने की जिद पर अड़ी है। मैं सोच रही हूं वो क्या है जो उस बच्ची को ऐसे मुश्किल वक्त में भी उस परिवार के साथ खड़े होने का हौंसला दे रहा है? उसे पता है कि ऐसे में उसकी जान भी जा सकती है लेकिन उसे अपनी जान के बजाय उन तीन छोटे बच्चों की जान की ज्यादा परवाह है...उसे अपनी मां के बजाय उस मां की ज्यादा चिंता है जो वहां अपने बच्चों के साथ अकेली है...!!'