तानाशाह और निरंकुश देश ईरान में हिजाब आंदोलन में हिस्सेदारी करते बच्चों और किशोरों की जान लेते सुरक्षाकर्मी
Iran Hijab Protest: हिजाब विरोधी प्रदर्शन को समर्थन देने वाले कुर्दों पर ईरान ने किया मिसाइल हमला, 13 की मौत, 58 घायल
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Security forces in Iran have killed at least 58 children upto 8 years in last 2 months. आज के दौर में पूरी दुनिया तमाम समस्याओं और असमानता से जूझ रही है, पर तथाकथित प्रजातंत्र वाले देशों में भी बड़े आन्दोलन अब दुर्लभ हो गए हैं। दूसरी तरह, तानाशाही और निरंकुश शासन वाले देश ईरान में जान हथेली पर लेकर बच्चे, बड़े, पुरुष-महिलायें, पत्रकार, कलाकार, खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी – सभी हिजाब आन्दोलन में शामिल हो रहे हैं, या फिर अपनी तरफ से सत्ता के विरुद्ध सांकेतिक प्रदर्शन कर रहे हैं।
क़तर में फीफा वर्ल्डकप में इंग्लैंड और ईरान के बीच मैच से पहले ईरान के किसी भी खिलाड़ी ने अपने देश की सत्ता का विरोध करते हुए राष्ट्रीय गान नहीं गाया। इस मैच में ईरान को 6-2 से शिकस्त मिली, पर उनके विरोध की चर्चा और प्रशंसा ईरान को छोड़कर हरेक जगह की जा रही है। विरोध के इन क्षणों को ईरान में प्रदर्शित नहीं किया गया। ईरान के खिलाड़ियों को यह अच्छी तरह पता है कि जब वे देश लौटेंगें तब उनपर तमाम आरोप मढ़े जायेंगें और फिर जेल में डाला जाएगा, फिर भी उन्होंने अपनी तरफ से सत्ता का विरोध किया। इसी मैच में इंग्लैंड के खिलाड़ी मैच के पहले घुटने के बल खड़े होकर असमानता के प्रति विरोध जता रहे थे।
16 सितम्बर को 22 वर्षीय मेहसा अमिनी की हवालात में पुलिस द्वारा हत्या के बाद से भड़के आन्दोलन में अब तक 450 लोग मारे जा चुके हैं और 55 पुलिसकर्मी भी मारे गए। आन्दोलन के दौरान पुलिसिया कार्यवाही में 16000 से अधिक लोगों को जेल में बंद कर दिया गया है।
ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स इन ईरान के अनुसार पिछले 2 महीनों के दौरान सुरक्षा बलों की कार्यवाही के दौरान 18 वर्ष से कम उम्र के 58 बच्चे और किशोर मारे जा चुके हैं। पिछले सप्ताह ही 5 से अधिक बच्चे मारे गए। इन बच्चों की उम्र 8 से 18 वर्ष के बीच है। इन 58 बच्चों में से 46 बालक और 12 बालिकाएं हैं।
आन्दोलन के शुरू में ही स्कूली छात्रों ने भी आन्दोलनों में भागीदारी की थी, इसके बाद से ही सुरक्षा बलों के निशाने पर बच्चे और किशोर आ गए थे। मारे गए अधिकतर बच्चों को आन्दोलन के दौरान नहीं बल्कि बाजार में, कक्षा में, रोड के किनारे या फिर परिवार के साथ आते-जाते मारा गया। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जो प्रदर्शनों में अपनी बहनों के साथ उनका समर्थन करने आये थे, जिन्हें सुरक्षा बलों ने मार दिया। सुरक्षा बल ऐसी कार्यवाही को आतंकवादी और अलगाववादी गिरोहों के विरुद्ध कार्यवाही बताते हैं। पिछले 2 महीनों के दौरान एक शुक्रवार ऐसा भी था, जिसे खूनी शुक्रवार का नाम दिया गया है, जब एक ही दिन में सुरक्षा बलों ने 100 से अधिक आन्दोलनकारियों को मार गिराया था, जिसमें 10 से अधिक बच्चे भी थे।
हेन्गाव नामक मानवाधिकार संगठन के अनुसार अकेले कुर्दिस्तान में 12 से अधिक बच्चे मारे गए हैं, और तीन हिरासत में हैं। कुर्दिस्तान में अब तक 200 से अधिक व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है और सुरक्षा बलों की कार्यवाही में 300 से अधिक व्यक्ति घायल हैं। इन आन्दोलनों के बाद से अब तक 6 व्यक्तियों को मृत्युदंड दिया जा चुका है और 21 पर ऐसे आरोप लगाए गए हैं, जिसमें मृत्यु दंड दिया जा सकता है।
इस आन्दोलन की खासियत यह है कि इसमें समाज के हरेक तबके के लोग भारी संख्या शामिल हैं और सबको अपना भविष्य पता होने के बाद भी सख्त विरोध का सिलसिला थम नहीं रहा है। हाल में ही ईरान की दो अभिनेत्रियों को सुरक्षा बलों ने पूछताछ के बाद हिरासत में लिया गई। दोनों अभिनेत्रियों ने आन्दोलन के समर्थन में सोशल मीडिया पर बिना हिजाब के अपनी फोटो डाली थी। इन दोनों अभिनेत्रियों पर आन्दोलन, जिसे सरकार और सुरक्षा बल दंगे का नाम देते हैं, भड़काने का आरोप है।
एक अभिनेत्री, हेंगामेह घज़ानी (Hengameh Ghaziani) ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा था, "संभव है, यह मेरी अंतिम पोस्ट हो। इसके बाद सुरक्षाबल क्या करेंगें यह मुझे बिलकुल स्पष्ट है, पर मैं अंतिम सांस तक इरान की जनता का समर्थन करती रहूंगी"। इस पोस्ट में उन्होंने ईरान सरकार को बच्चों का हत्यारा भी बताया था। दूसरी अभिनेत्री का नाम कतायौं रिअही (Katayoun Riahi) है।
सबको अपना अंजाम पता है, फिर भी समाज का हरेक तबका इन आन्दोलनों का समर्थन कर रहा है, उसमें भागीदारी कर रहे हैं। सबको यह पता है कि आज के दौर में सत्ता के विरुद्ध आन्दोलनों में जनता को उतरना ही पड़ता है, अब अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवाजें बंद हो चुकी हैं। पूरी दुनिया निरंकुश तानाशाहों की चपेट में है, और हरेक तानाशाह दूसरे के साथ खड़ा दिखता है – पर जनता अकेली है।