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Dinesh Gunawardena : श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने मजदूर नेता दिनेश गुणावर्धने, क्या उबार पायेंगे धार्मिक उन्मादी और विदेशी कर्ज़ में डूबे देश को

Janjwar Desk
23 July 2022 12:03 PM GMT
श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने मजदूर नेता दिनेश गुणावर्धने,  क्या उबार पायेंगे धार्मिक उन्मादी और विदेशी कर्ज़ में डूबे देश को
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श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने मजदूर नेता दिनेश गुणावर्धने, क्या उबार पायेंगे धार्मिक उन्मादी और विदेशी कर्ज़ में डूबे देश को 

Dinesh Gunawardena : श्रीलंकाई जनता भूख, बीमारी, बेरोजगारी, मंहगाई से परेशान है। रोज- रोज की तकलीफो, दुःख-दर्द, पीड़ा से अंदर ही अंदर सुलग रही है, जो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के कार्यालयों, उनके निजी आवासों पर और कई महीनों से श्रीलंकाई सड़कों पर दिखाई भी देता रहा है...

दिनेश गुणावर्धने के श्रीलंका का नया प्रधानमंत्री बनने पर ट्रेड यूनियन नेता डॉ कमल उसरी की टिप्पणी

Dinesh Gunawardena : दिनेश गुणावर्धने एक ट्रेड यूनियन नेता है। 22 जुलाई 2022 को इन्हें श्रीलंका का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है। दिनेश गुणावर्धने अगस्त 1973 में वामपंथी महाजन एकथ पेरामुना (MEP) की केंद्रीय समिति में नियुक्त किया गए। फ़िर 1974 में एमईपी के महासचिव बने।

दिनेश चंद्र रूपसिंघे गुणावर्धने का जन्म 2 मार्च 1949 को हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा रॉयल प्राइमरी स्कूल और रॉयल कॉलेज। कोलंबो में प्राप्त करने के बाद नीदरलैंड स्कूल ऑफ बिजनेस से उच्च शिक्षा प्राप्त किया. अमेरिका के ओरेगन विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान छात्र आंदोलन में शामिल हुए और वियतनाम युद्ध विरोधी विरोध प्रदर्शनों में भी भाग लिए. 1972 में पिता की मौत के बाद वापस कोलंबो लौट आए।

दिनेश गुणावर्धने के पिता फिलिप गुनावर्धने और माँ कुसुमा को श्रीलंका में समाजवाद के जनक के रूप में जाना जाता है. इनके पिता 1948 में देश की आज़ादी से पहले ब्रिटिश काल में वामपंथी समाजवादी आंदोलन के प्रमुख चेहरा थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान श्रीलंका से भागने के बाद पिता फिलिप और मां कुसुमा ने भारत में शरण ली थी। वे उस वक्त भूमिगत कार्यकर्ताओं में शामिल थे। जो श्रीलंका की आजादी के लिए लड़ रहे थे.1943 में उन दोनों को ब्रिटिश खुफिया विभाग ने पकड़ लिया था। कुछ समय के लिए उन्हें बॉम्बे की आर्थर रोड जेल में रखा गया था। एक साल बाद फिलिप और उनकी पत्नी कुसुमा को श्रीलंका को सौंप दिया गया और श्रीलंका की आजादी के बाद ही दोंनो को रिहा किया गया।

1948 में श्रीलंका को यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता मिलने के बाद फिलिप और कुसुमा दोनों संसद के सदस्य बने। फिलिप 1956 में पीपुल्स रिवोल्यूशन सरकार के संस्थापक नेता और कैबिनेट मंत्री थे। फिलिप गुणवर्धने विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में जयप्रकाश नारायण और वीके कृष्ण मेनन के सहपाठी रह चुके थे। उन्होंने अमेरिकी राजनीतिक हलकों में साम्राज्यवाद से स्वतंत्रता की वकालत की और बाद में लंदन में भारत की साम्राज्यवाद विरोधी लीग का नेतृत्व भी किया। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कोलंबो दौरे के समय फिलिप के घर भी गए थे। भारत की आजादी के आंदोलन में उनके योगदान के लिए व्यक्तिगत रूप से उनके परिवार की तारीफ की और धन्यवाद किया था।

अपने माता-पिता की तरह साफ-सुथरी छवि रखने वाले दिनेश गुणावर्धने भारत के साथ बेहतर संबंधों के पैरोकार हैं। गुणावर्धने 1977 के संसदीय चुनाव में एविसावेला में एमईपी के उम्मीदवार थे। लेकिन असफल रहे। फिर से 1983 के उपचुनाव में महारागामा इलेक्टोरल डिस्ट्रिक्ट में जीत हासिल की और संसद में प्रवेश किए। गुणावर्धने ने 1989 व 1994 के संसदीय चुनाव में फिर से एमईपी के उम्मीदवारो में एक थे। लेकिन इनकी पार्टी एक भी सीट नही जीत पाई। MEP पीपुल्स अलायंस (PA) में शामिल होकर कोलंबो जिले 2000 व 2001 में फिर से चुने गए। 2004 में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) और जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) ने यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए) का गठन हुआ। गुणावर्धने की पार्टी उसमें शामिल होकर 2004 का चुनाव लड़ी और ये जीते। जून 2008 में मुख्य सरकारी सचेतक नियुक्त किया गया था।

गुणावर्धने ने रमानी वत्सला कोटलावेला से शादी की। इनकी दो संतानें हैं। बेटे का नाम यादामिनी जो वर्तमान समय में संसद सदस्य हैं। और बेटी का नाम संकपाली है। 1980 के दशक के मध्य में रमानी की हेपेटाइटिस से मौत हो गई है।

गौरतलब है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने पहले ही कहा था कि वह राष्ट्रपति कार्यालय पर कब्ज़ा करने वालो के खिलाफ कानूनी कार्यवाई का इरादा रखते है। दिनेश गुणावर्धने की नियुक्ति श्रीलंकाई सुरक्षा बलों द्वारा राष्ट्रपति भवन के पास डेरा डाले प्रदर्शनकारियो को हटाए जाने के बाद हुई है। श्रीलंकाई संसद में वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को महज तीन वोट से मिला है। संसद में कुल 225 सदस्य हैं। जिनमें दो सांसदों ने चुनाव से दूरी बनाई, जबकि चार वोट रद कर दिए गए।

यह हकीकत है कि श्रीलंकाई जनता भूख, बीमारी, बेरोजगारी, मंहगाई से परेशान है। रोज- रोज की तकलीफो, दुःख-दर्द, पीड़ा से अंदर ही अंदर सुलग रही है, जो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के कार्यालयों, उनके निजी आवासों पर और कई महीनों से श्रीलंकाई सड़कों पर दिखाई भी देता रहा है। विदित हो कि श्रीलंका की सत्ता मुख्य ताक़त संवैधानिक रूप से वहां के राष्ट्रपति के पास होती है। प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रमुख होता है फ़िर भी अब देखना दिलचस्प होगा कि नकली राष्ट्रवादी सत्ता द्वारा पोषित धार्मिक उन्माद वाले, आर्थिक रूप से बर्बाद, विदेशी कर्ज़ से पूरी तरह डूबे हुए देश श्रीलंका के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने संसदीय वामपंथी तौर तरीकों से मेहनतकश जनता के लिए क्या कुछ कर पाते हैं?

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