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दुनिया

निरंकुश सत्ता अपने विरोधियों पर विदेशों में भी करने लगी है हमले, कथित प्रजातांत्रिक देश भी बर्बरता से कुचलते हैं विरोध के स्वर

Janjwar Desk
20 Feb 2024 3:38 PM GMT
निरंकुश सत्ता अपने विरोधियों पर विदेशों में भी करने लगी है हमले, कथित प्रजातांत्रिक देश भी बर्बरता से कुचलते हैं विरोध के स्वर
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PM मोदी के अमेरिका यात्रा के दौरान वालस्ट्रीट जर्नल की रिपोर्टर सबरीना सिद्दीकी ने मोदी जी से देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार पर एक प्रश्न पूछा था, जिसका जवाब तो कभी नहीं मिला, पर यहाँ के मोदी समर्थक आईटी सेल और सोशल मीडिया यूजर्स के साथ ही मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी अनर्गल प्रलाप के साथ ही अपनी बौद्धिक विकलांगता जगजाहिर कर दी थी....

PM मोदी के अमेरिका यात्रा के दौरान वालस्ट्रीट जर्नल की रिपोर्टर सबरीना सिद्दीकी ने मोदी जी से देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार पर एक प्रश्न पूछा था, जिसका जवाब तो कभी नहीं मिला, पर यहाँ के मोदी समर्थक आईटी सेल और सोशल मीडिया यूजर्स के साथ ही मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी अनर्गल प्रलाप के साथ ही अपनी बौद्धिक विकलांगता जगजाहिर कर दी थी....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Transnational repression to silence dissent among diasporas and exiles is a new normal for the world : रूस में पुतिन के प्रमुख विरोधी अलेक्सी नवल्नी की हत्या कर दी गयी, और हत्या किसके इशारे पर की गयी यह भी सबको पता है। रूस की पुतिन सरकार अपने विरोधियों पर केवल रूस की सीमा में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी जानलेवा हमले या हत्या करती है।

दरअसल रूस ही नहीं, बल्कि आज दुनिया की कोई भी सरकार, भले ही वह प्रजातांत्रिक ही क्यों न हो, अपने काम के बल पर सत्ता में नहीं टिकती, बल्कि विरोधियों की आवाज को कुचलने के कारण सत्ता में बनी रहती है। सत्ता जितनी बर्बरता से विरोध के स्वर कुचलती है, उतना ही आगे भी सत्ता में बने रहने की संभावना प्रबल हो जाती है।

पहले रूस, चीन और कुछ अरब देश ही अपने देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी विरोधियों की हत्या, प्रताड़ना, धमकी, हमले और उनके परिवारों पर अत्याचार के लिए कुख्यात थे, पर अब यह दुनिया में एक “न्यू नार्मल” बन गया है। सोशल मीडिया द्वारा धमकी या भर्त्सना एक नया सशक्त हथियार बन गया है। इस प्रक्रिया को ट्रांसनेशनल रेप्रेसन यानी अंतरराष्ट्रीय दमन कहा जाता है। इसका उपयोग प्रवासी या देश छोड़कर गए लोगों में सत्ता के विरोध की आवाज के दमन के लिए किया जाता है।

दमन की यह कार्यवाही सत्ता द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर की जाती है। इसके शिकार पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, प्रवासी समूह, उनके परिवार, राजनीतिक कार्यकर्ता, विरोधी और सामान्य व्यक्ति भी होते हैं। गैर-राजनीतिक मानवाधिकार संस्था, फ्रीडम हाउस ने हाल में ही आंकड़े जारी कर बताया है कि वर्ष 2023 में भारत समेत 25 देशों ने ऐसी हिंसा दुनिया के लगभग 80 से अधिक देशों में की है, जिनमें 125 शारीरिक हमले शामिल हैं।

ऐसे हमलों में वर्ष 2023 के सन्दर्भ में 18 हमलों के साथ रूस पहले स्थान पर है, दूसरे स्थान पर 15 हमलों के साथ कम्बोडिया, और इसके बाद से क्रम से म्यांमार, तुर्कमेनिस्तान और चीन का स्थान है। भारत इस सूचि में पिछले 2 वर्षों से शामिल है, जबकि वर्ष 2023 में क्यूबा का नाम पहली बार शामिल किया गया है। इस सूचि में कांगो, एल साल्वाडोर, सिएरा लियॉन और यमन जैसे देश भी शामिल हैं।

अपने देश से बाहर सत्ता प्रायोजित विरोधियों पर हमले या उनकी हत्या के बारे में प्रायः यह माना जाता है कि यह कोई बड़ी घटना नहीं है और कभी-कभी ही ऐसा किया जाता है, पर फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के अनुसार यह कोई आकस्मिक अपराध नहीं है बल्कि यह एक सामान्य और सोची समझी सत्ता-प्रायोजित गतिविधि है। यह सब विरोध के स्वर कुचलने के साथ ही देश से दूर विरोधियों को भयाक्रांत करने की सोची-समझी रणनीति है। इसका असर अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका जैसे प्रजातांत्रिक देशों में भी है।

पिछले एक दशक के दौरान 44 देशों ने अंतरराष्ट्रीय दमन का बर्बर कार्य किया है, जिसमें वर्ष 2023 में 6 देशों के नाम पहले बार जुड़े हैं। जाहिर है, मानवाधिकार कुचलने की यह प्रवृत्ति निरंकुश सत्ता में बढ़ती जा रही है, दूसरी तरफ दुनिया में निरंकुश सत्ता का विस्तार और वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। पिछले एक दशक के दौरान दुनिया के 100 देश इससे प्रभावित हुए हैं और ऐसे हमलों/हत्याओं के 1034 मामले दर्ज किये गए हैं। पिछले एक दशक के दौरान ऐसे सभी मामलों में से एक-तिहाई से अधिक का जिम्मेदार अकेले चीन है, इसके बाद क्रम से तुर्कीये, तजीकिस्तान, रूस और ईजिप्ट का स्थान है।

भारत तो इस मामले में अब एक अग्रणी देश बन गया है। खालिस्तानी बताकर सिक्खों पर सत्ता-प्रायोजित हमले की शिकायत पहले कनाडा ने की, फिर अमेरिका ने। हाल में ही पाकिस्तान ने भी अपने देश में 2 व्यक्तियों पर हमले में भारत का नाम लिया है। कनाडा ने तो मोदी सरकार द्वारा सिक्खों पर हमले के साथ ही अपने देश में चुनावों में भी हस्तक्षेप के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

यूनाइटेड किंगडम में भी सांसदों ने भारत द्वारा किये जा रहे ट्रांसनेशनल दमन पर गंभीर चिंता जताई थी। देशी-विदेशी हस्तियों पर, भले ही वे किसी देश में रह रहे हों, सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा हमले में तो भारत विश्वगुरु है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जब भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर वक्तव्य दिया तब सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया दोनों ने उनपर बेतुके और निराधार हमले किये थे।

प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका यात्रा के दौरान वालस्ट्रीट जर्नल की रिपोर्टर सबरीना सिद्दीकी ने मोदी जी से देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार पर एक प्रश्न पूछा था, जिसका जवाब तो कभी नहीं मिला, पर यहाँ के मोदी समर्थक आईटी सेल और सोशल मीडिया यूजर्स के साथ ही मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी अनर्गल प्रलाप के साथ ही अपनी बौद्धिक विकलांगता जगजाहिर कर दी थी।

अमेरिका के कमीशन ऑन इन्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम ने भी वर्ष 2023 के अंत में भारत सरकार द्वारा प्रायोजित अंतरराष्ट्रीय दमन पर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया था। इस कमीशन ने वर्ष 2020 से हरेक वर्ष अपनी एनुअल रिपोर्ट में भारत को “कंट्री ऑफ़ पर्टिकुलर कंसर्न” का दर्जा दिया है और अल्पसंख्यक धार्मिक समूहों के मानवाधिकार हनन का जिम्मेदार ठहराया है। इस प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार पहले भारत सरकार अपने देश में ही मानवाधिकार कुचलती थी, पर अब इसका दायरा बढ़ गया है और अब दुनियाभर में हरेक जगह विरोध के स्वर का दमन कर रही है।

जाहिर है, दुनिया में जैसे-जैसे निरंकुश सत्ता का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे मानवाधिकार हनन के आयाम भी बढ़ते जा रहे हैं – पहले इसे देश की सीमा के अन्दर कुचला जाता था पर अब इस सन्दर्भ में देश की सीमा भी दुनियाभर में फ़ैल गयी है।

सन्दर्भ:

1. Transnational Repression: Understanding and Responding to Global Authoritarian Reach, Freedom House (2024) – freedomhouse.org/report/transnational-repression

2. Deeply Concerned by India Transnational Repression Against Religious Minorities, US Commission on International Religious Freedom (2023) – uscirf.gov/news-room/releases-statements/uscirf-deeply-#

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