Begin typing your search above and press return to search.
दुनिया

दुनियाभर के मीडिया पर चंद पूंजीपतियों का कब्जा, इसीलिए अखबारों से गायब हो रहे जनता के मुद्दे

Janjwar Desk
22 Jun 2021 10:35 AM GMT
दुनियाभर के मीडिया पर चंद पूंजीपतियों का कब्जा, इसीलिए अखबारों से गायब हो रहे जनता के मुद्दे
x
अमेरिका में ही नहीं, बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया में मीडिया का स्वामित्व चन्द पूंजीपतियों के हाथ में ही है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। मई में जब इजराइल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध चल रहा था, तब इजराइल ने अपनी वायु सेना से गाजा पर हमले किये थे। 15 मई को इजराइल के आक्रमण में गाजा में एक भवन ध्वस्त हो गया था, जिसमें एसोसिएटेड प्रेस, अल जजीरा समेत अनेक समाचार पत्रों के कार्यालय थे। पूरे दुनिया की मीडिया ने इस खबर को दिखाया था, पर 18 मई को जब इजराइल ने फिर से हवाई हमले किये तब गाजा में स्थित पुस्तकों की सबसे बड़ी दुकान, समीर मंसौर बुकशॉप पूरी तरह से जमींदोज हो गयी, इसकी चर्चा कहीं नहीं की गयी।

यह गाजा की सबसे लोकप्रिय पुस्तकों की दुकान थी, जहां हरेक विषयों पर बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए किताबें उपलब्ध थीं। इस इलाके के पढ़ने के शौक़ीन वयस्कों, युवाओं और बच्चों में यह दुकान बहुत लोकप्रिय थी। इसमें पुस्तक खरीदने की कोई बंदिश नहीं थी, वहां दिनभर बैठकर आप अपने पसंद की किताबें भी पढ़ सकते थे। अनेक गरीब बच्चे भी दिनभर यहाँ बैठ कर किताबें पढ़ते थे। यह दुकान दो-मंजिला थी, पिछले 21 वर्षों से लगातार चल रही थी और इसमें एक लाख से अधिक पुस्तकें थीं।

इस दुकान के ध्वस्त होने के बाद इसके मालिक समीर मंसौर को एक बार तो यह महसूस हुआ कि अब सबकुछ ख़त्म हो गया है, पर फिर इन्होने हिम्मत की। इनकी मुलाकात मानवाधिकारों पर काम करने वाली अधिवक्ता महविश रुखसाना से हुई और इन दोनों ने इस दुकान को फिर से खड़ा करने की योजना बनाई। शुरू में सोशल मीडिया से मदद माँगी गयी, जिसके द्वारा दुनियाभर से किताबें और कुछ पैसे भी आने लगे। इसके बाद महविश रुखसाना ने चैरिटी संस्था क्लीवे स्टैफ़ोर्ड स्मिथ की मदद से दुनियाभर से फंडिंग जुटानी शुरू की। किताबों के नाम पर दुनियाभर से मदद आने लगी, अब तक इन लोगों को 2 लाख से आशिक किताबें और 2 लाख डॉलर से अधिक की सहायता राशि मिल चुकी है।

महविश रुखसाना और समीर मंसौर की योजना है कि दुकान तो बनेगी ही, पर इसके साथ ही गाजा कल्चरल सेंटर भी स्थापित किया जाए। गाजा कल्चरल सेंटर में आगंतुकों को वहां की संस्कृति की झलक के साथ ही किताबें पढ़ने और किताबों को घर ले जाने की सुविधा भी दी जायेगी। दुकान का काम शुरू किया जा चुका है। समीर मंसौर के अनुसार इजराइल का हवाई हमला ज्ञान और शिक्षा पर था, जिसे लोगों ने नापसंद किया और मदद की।

महविश रुखसाना के अनुसार गाजा पर किये गए हमलों में यह नुकसान सबसे भयानक नहीं था, दूसरे भवनों में इससे भी अधिक का नुकसान हुआ और आर्थिक हानि भी अधिक हुई, पर प्रभावित दूसरे भवनों, अस्पतालों और कार्यालयों को फिर से खड़ा करने के लिए सरकारी स्तर पर आर्थिक मदद आसानी से मिल जाती है, जबकि संस्कृति और ज्ञान से सम्बंधित नुकसान की भरपाई सरकारें नहीं करतीं। इसीलिए उन्होंने समीर मंसौर बुकशॉप को फिर से खड़ा करने में मदद की।

गाजा में किताब की दुकान को फिर से स्थापित करने के लिए आवश्यक सहायता मिल गयी, पर हांगकांग से निकलने वाला और लोकतांत्रिक मूल्यों का परचम लहराने वाला प्रसिद्द समाचार पत्र एप्पल डेली आर्थिक कारणों के कारण किसी भी दिन बंद हो सकता है। एप्पल डेली पिछले वर्ष से ही वहां अब राज कर रहे चीनी अधिकारियों की नजर में खटक रहा था।

दिसम्बर 2020 में इसके मालिक जिम्मी ली को लोकतांत्रिक समर्थक आन्दोलनों में भाग लेने के कारण जेल में बंद कर दिया गया। पर यह अखबार अपने लोकतांत्रिक विचारों के साथ पिछले सप्ताह तक लगातार प्रकाशित होता रहा। पिछले सप्ताह हांगकांग में स्थित चीनी सेना ने इसके सभी वरिष्ठ कर्मचारियों को घरों से पकड़कर जेल में डाल दिया और इस समाचार पत्र के सभी बैंक खातों और सारी संपत्तियों को सील कर दिया।

समाचारपत्र के कार्यालय से पत्रकारों और संवाददाताओं के लैपटॉप जब्त कर लिए गए। गिरफ्तार किये गए वरिष्ठ अधिकारियों पर विदेशी मदद से स्थानीय सरकार को गिराने का आरोप लगाया गया है। यदि ये आरोप साबित होते हैं, तो फिर इसकी सजा आजीवन कारावास है।

चीनी सेना की कार्यवाही के बाद भी एप्पल डेली समाचारपत्र प्रकाशित किया जा रहा है, लोकतंत्र का समर्थन अभी तक किया जा रहा है और प्रतियां भी पहले से अधिक प्रकाशित की जा रही हैं। हांगकांग में सुबह से ही इस समाचारपत्र को खरीदने के लिए लोगों की लम्बी लाइनें लग जाती हैं। पर अब इसके कर्मचारियों का कहना है कि सभी बैंक अकाउंट सीज होने के कारण इसे लम्बे समय तक चलाना कठिन हो गया है, और यदि स्थिति ऐसी ही रही तो इसे जल्दी ही बंद करना पड़ेगा। इसके बंद होते ही हांगकांग में लोकतंत्र की सबसे सशक्त आवाज भी खामोश हो जायेगी, और चीन की भी यही मंशा है।

हांगकांग में सेना के दमन के चलते लोकतंत्र की आवाज खामोश हो रही है, पर अमेरिका में कोविड 19 महामारी ने अर्थव्यवस्था को इतना बदहाल कर दिया है कि पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रहे अधिकतर स्थानीय समाचारपत्र बंद हो रहे हैं। पिछले 15 महीनों के दौरान ही ऐसे 70 से अधिक समाचार पत्र बंद हो चुके हैं।

अमेरिका में वर्ष 2005 के बाद से 2100 से अधिक समाचार पत्र बंद कर दिए गए हैं, यानी 25 प्रतिशत से अधिक स्थानीय समाचारपत्र बंद हो चुके हैं, या फिर बेचे जा चुके हैं। अमेरिका में समाचार पत्रों के साथ केवल यही समस्या नहीं है, बल्कि सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि अधिकतर राष्ट्रीय और स्थानीय समाचार पत्रों का मालिकाना हक़ चंद प्राइवेट वित्तीय संस्थाओं के हाथ में जा रहा है। हाल में ही एक विश्लेषण के अनुसार अमेरिका में 50 प्रतिशत से अधिक समाचारपत्रों का मालिकाना हक़ 10 से भी कम वित्तीय संस्थाओं के हाथ में आ गया है, और इसे वहां प्रजातंत्र के लिए अब सबसे बड़ा खतरा माना जाने लगा है।

अमेरिका में ही नहीं, बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया में मीडिया का स्वामित्व चन्द पूंजीपतियों के हाथ में ही है। यही कारण है कि अखबारों से जनता के मुद्दे गायब हो चुके हैं, और हम वही पढ़ने को मजबूर हैं, जो पूंजीवाद हमें पढ़ाना चाहता है।

Next Story

विविध