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जिनको सिर्फ बच्चा जनने की मशीन मानते हैं तालिबानी, उन्हीं के सामने डटने का महिलाओं ने किया ऐलान

Janjwar Desk
11 Sep 2021 1:14 PM GMT
जिनको सिर्फ बच्चा जनने की मशीन मानते हैं तालिबानी, उन्हीं के सामने डटने का महिलाओं ने किया ऐलान
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तालिबानों की नजर में महिलायें बनीं हैं सिर्फ बच्चा जनने के लिए, अगर किसी ने उठायी आवाज तो मिल सकती है कठोर से कठोर सजा

तालिबानियों के राज में महिलायें मात्र उपभोग का साधन, नई सरकार में एक भी महिला को नहीं किया शामिल, अफगानिस्तान में अब बची हैं मात्र 100 महिला पत्रकार...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan)) के तालिबान राज में सबसे अधिक असुरक्षित महिलायें हैं, यह जानते हुए भी भारत समेत पूरी दुनिया धीरे-धीरे तालिबान सरकार (Taliban govt.)को मान्यता देने और उससे कूटनीतिक सम्बन्ध बनाने पर विचार कर रही है। जर्मनी (Germany) के साथ कुछ और देश भी तालिबान से वार्ता करना चाहते हैं, भारत तो एक बार वार्ता कर भी चुका है। जाहिर है, अब अफगानिस्तान की महिलाओं को अपनी लड़ाई खुद लड़नी है, क्योंकि पूरी दुनिया एक तमाशबीन (silent spectator) बन कर रह गयी है।

दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष (Heads of Governments) और सम्बंधित मंत्री अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं पर चिंता जताते हुए वक्तव्य देते रहेंगे, जिससे पता चलता रहे कि वे महिला अधिकारों और मानवाधिकारों (women rights and human rights) के प्रति कितने सजग हैं। आज की दुनिया केवल वक्तव्यों पर, आर्थिक संबंधों (economic relations) पर और सामरिक सहयोग (defense cooperation) पर ही चलती है। भारत का परियोजनाओं में निवेश फंसने का अंदेशा है, पाकिस्तान और चीन के अफ़ग़ानिस्तान में हावी होने का बहाना है – जाहिर है तालिबान का समर्थन तो करना होगा।

इसी तरह चीन (China) को अपना आधिपत्य जमाने का सुनहरा मौका मिला है और पाकिस्तान भी इसमें साथ दे रहा है। चीन के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण अमेरिका और यूरोप के कुछ देश भी तालिबान की शरण जल्दी ही जायेंगे।

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार (Interim Government) के गठन के ठीक बाद काबुल और कुछ दूसरे शहरों में इसके विरोध में महिलाओं ने आन्दोलन और प्रदर्शन (protest by women) किया, हालांकि तालिबान लड़ाकों ने प्रदर्शन ख़त्म करने के लिए उनपर गोली चलाई और संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के अनुसार कम से कम चार प्रदर्शनकारियों की मृत्यु भी हो गयी।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार तालिबान लड़ाके प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वालों की पहचान के लिए घर-घर तलाशी ले रहे हैं और इसमें हिस्सा लेने वालों से मारपीट कर रहे हैं और उन पर चाबुक (flogging) चला रहे हैं। पर, तालिबान अफगानी महिलाओं के जीवट और जुझारूपन से परिचित है, इसीलिए अंतरिम सरकार का पहला आदेश धरना/प्रदर्शन (protests) से ही सम्बंधित है।

तालिबान की अंतरिम सरकार के पहले आदेश के अनुसार धरना/प्रदर्शन करने से 24 घंटे पहले सरकार से अनुमति (permission from government) लेनी होगी और प्रदर्शन के समय क्या नारे (slogans) लगेंगे, इसे भी सरकार ने अनुमोदित कराना होगा। जाहिर है, सरकार अपने विरुद्ध उठ रही आवाजों को आदेश और हिंसा से दबाने का प्रयास कर रही है। तालिबानी मंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि महिलायें केवल बच्चा पैदा करने के लिए हैं और घर संभालने के लिए हैं। घर के बाहर उनका कोई काम नहीं है। दरअसल तालिबान के लिए महिलायें केवल उपभोग की वस्तु हैं।

अभिव्यक्ति की आजादी (freedom of expression) के हनन के सम्बन्ध में तालिबान, भारत सरकार से बहुत कुछ सीख सकता है। हमारे देश में तो आन्दोलनों के प्रमुख चेहरों को राष्ट्रद्रोही (sedation) करार दिया जाता है और सीधा जेल में बंद (imprisoned) कर दिया जाता है। हमारे देश में तो सरकारें प्रदर्शनों को ख़त्म करने और विरोध में उठाती आवाजों को दबाने के लिए दंगे (riots) भी करा देती है।

महिला आन्दोलनकारियों का चरित्र हनन (character assassination) सरकारी मंत्री, कट्टर दक्षिणपंथी समर्थक, सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया कई दिनों तक करता रहता है। अनेक केन्द्रीय मंत्री आन्दोलनों के विरुद्ध हिंसा का आह्वान (promote violence) भी करते हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारत सरकार हरेक आन्दोलन के समय इन्टरनेट सेवा बंद (disruption in internet services) करती है। जिस समय किसान करनाल में शांतिपूर्वक धरना दे रहे थे उस समय भी इन्टरनेट सेवा बंद कर डी गयी थी। जाहिर है, तालिबान को अपने पड़ोसी देश से सीखने की जरूरत है।

तालिबान की अंतरिम सरकार में एक भी महिला को शामिल नहीं किया गया है और सरकार बनाने के समय प्रकाशित किये गए 8 पृष्ठ के विज़न डॉक्यूमेंट (vision document) में कहीं भी महिलाओं का जिक्र भी नहीं है। अंतरिम सरकार ने महिलाओं को खेलकूद से भी प्रतिबंधित (banned from sports activities) कर दिया है। सम्बंधित मंत्री ने कहा कि महिलाओं का खेलकूद जरूरी नहीं है और इस्लामिक नियमों के विरुद्ध भी है।

तालिबान के शासन में एकल मां (single mothers) को सबसे अधिक खतरा है। तालिबान की लगातार हिंसा (continuous violence) के कारण अफ़ग़ानिस्तान में ऐसी मां की संख्या बहुत अधिक है, और अब उनके बच्चों को बचाना कठिन हो गया है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पति के मरने के बाद यदि पत्नी यदि कोई कमाई नहीं करती है, तब बच्चों को पति के सम्बन्धियों को सौपना पड़ता है।

अब तालिबान के शासन में महिलाओं को रोजगार के अधिकार नहीं हैं, पर अधिकतर एकल मां बच्चों को अपने साथ ही रखना चाहती है। कुछ ऐसी मां देश छोड़ चुकी हैं और जिन्हें बाहर जाने का मौका नहीं मिला वे रोज ठिकाना बदल कर किसी तरह जिन्दगी जी रही हैं और अपने बच्चों को तालिबान के हाथों जाने से बचा रही हैं।

अफ़ग़ानिस्तान में मीडिया (media in Afghanistan) के क्षेत्र में महिलाओं का वर्चस्व था, कुछ मीडिया घराने तो केवल महिलाओं द्वारा और महिलाओं के लिए (owned by and operated for ladies) चलाये जाते थे। अफ़ग़ानिस्तान में कुल रिपोर्टर्स में से लगभग आधी महिलायें थीं और पुरुष पत्रकारों की तुलना में बेहतर काम कर रही थीं।

तालिबान के शासन से पहले अफ़ग़ानिस्तान में 700 से अधिक महिला पत्रकार थीं, पर अब इनकी संख्या 100 से भी कम रह गयी है। अधिकतर पत्रकार विदेश चली गईं है, पर अफ़ग़ानिस्तान में जो पत्रकार रह गयी हैं, उन्हें तालिबानियों की हिंसा और धमकियां खामोश नहीं कर पाई है।

द गार्डियन (The Guardian) समेत अनेक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मीडिया (prestigious International media houses) ने इन दिनों अलग से एक कॉलम शुरू किया है, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान की महिला पत्रकार लिख रही हैं और देश की स्थिति बता रही हैं। द गार्डियन में इस कॉलम का नाम है, वीमेन रिपोर्ट अफ़ग़ानिस्तान (Women Report Afghanistan)।

अफ़ग़ानिस्तान के अनेक शैक्षिक संस्थाओं (Educational Institutions) ने समय-समय पर वहां के महिलाओं की शिक्षा पर वैश्विक समुदाय से मदद की गुहार लगाई, पर कहीं से मदद नहीं मिली। एक प्रतिष्ठित बोर्डिंग स्कूल (Boarding School) चलाने वाली शबाना बसिज-रासिख (Shabana Basij-Rasikh) ने कुछ महीनों पहले ही अपने कर्मचारियों और लगभग 250 विद्यार्थियों के साथ रवांडा (Rwanda) में शरण ली है और वहां पर अपना विद्यालय स्थापित कर लिया है। एक दूसरे संस्थान लर्न अफ़ग़ानिस्तान की निदेशक पश्ताना दुर्रानी (Pashtana Durrani, Director of Learn Afghanistan) किसी अज्ञात जगह छुपी (hiding) हैं, पर उन्होंने ऐलान किया है कि वे अफ़ग़ानिस्तान जरूर लौटेंगीं और उस समय उनके साथ तालिबान से टक्कर लेने के लिए और शिक्षित महिलाओं का समूह (a group of educated girls) होगा।

जाहिर है, अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं को भले ही दुनिया ने उनके हाल पर छोड़ दिया हो, पर इसके बाद भी अफ़ग़ानिस्तान की महिलायें हारी नहीं हैं। पूरी दुनिया तालिबान की खिलाफत भले ही न करे, पर वहां की जुझारू महिलायें अपनी लड़ाई जारी रखेंगी।

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