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धर्मनिरपेक्ष भारत के स्कूलों में ही छात्रों को मिल जाता है अंधविश्वास और पाखंड का प्रशिक्षण, इसे फैलाने में मीडिया का सबसे बड़ा हाथ
प्रतीकात्मक फोटो
आजकल अंधविश्वास चरम सीमा पर है। सुबह अखबार के पन्ने पलटते ही राशिफल दिख जाएगा। टेलीविजन चालू करते ही कोई ज्योतिष भविष्यफल बताते हुए दिखाई देगा। दिन के उजाले हो या रात के अंधेरे सभी जगहों पर अंधविश्वास की काली छाया व्याप्त है। व्यक्ति के जन्म से पहले व मृत्यु के बाद भी अंधविश्वास का सिलसिला जारी रहता है और इसके फेर में लोग खुद व अपना पूरा परिवार का नुकसान करते रहते हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है तमाम अंधविश्वास, पाखंड और रूढ़ीवाद खत्म करेंगे कौन?
सभी अंधविश्वासों का उन्मूलन बुद्धिजीवी वर्ग की जिम्मेदारी
सभी अंधविश्वासों का उन्मूलन की जिम्मेदारी बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों की है। अब यह समझदार लोग कौन है? इसमें हम शिक्षक, पत्रकार, लेखक, वैज्ञानिक, चिकित्सक और कलाकार को शामिल कर सकते हैं, लेकिन क्या सच में ये लोग तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के हैं। आप देखेंगे इनमें से बहुत से लोंगों की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है। ये लोग खुद अंधविश्वास के जाल में जकड़े हुए हैं और आम आदमी इनको देखकर अंधविश्वास की खाई में भेड़धसान गिर रहे हैं।
समाज में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान
समाज में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षक ही बच्चों को अज्ञानता से ज्ञान के प्रकाश में ले जाते हैं, लेकिन आज बच्चों के स्कूल में ही अंधविश्वास और पाखंड का प्रशिक्षण मिल जाता है। भारत देश धर्मनिरपेक्ष होने के बाद भी कक्षा लगने से पहले सरस्वती वंदना की जाती है। कक्षाओं में देवी-देवताओं की तस्वीरें लटकी दिखाई देगी। कक्षा प्रवेश से पहले विद्यार्थी सरस्वती की तस्वीर की पूजा करते हैं। गुरूवार को सरस्वती पूजा के लिए नारियल फोड़ा जाता है। ये सब कार्य वहां के शिक्षकों के नेतृत्व में होते हैं। जब ज्ञान देने वाले ही अज्ञानता में डूबे हों तो बच्चों में तार्किक और वैज्ञानिक सोच की कल्पना ही नहीं की जा सकती। जब बच्चों को खुद पर विश्वास न होकर खुदा पर भरोसा होने लगता है तो उसका मनोबल पूरी तरह से कमजोर हो जाता है। बच्चे मेहनत में कम और पूजा-पाठ व पाखंड में ज्यादा ध्यान देने लगते हैं, जिससे उसका भविष्य अंधकार में चला जाता है।
बच्चों के मन से भगवान और शैतान का डर काे करें दूर
बच्चों के भविष्य के लिए जिम्मेदार शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों के मन से भगवान और शैतान का डर काे दूर करें। साथ ही उनके अंदर तार्किक और वैज्ञानिक समझ विकसित करें। बच्चों को आसपास घटने वाली घटनाओं के बारे में वैज्ञानिक ढंग से समझाएं। काल्पनिक बातों का खुलकर खंडन करें।
अंधविश्वास फैलाने में सबसे बड़ा हाथ मीडिया का
आजकल अंधविश्वास फैलाने में सबसे बड़ा हाथ मीडिया का है। इसके अंतर्गत प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया को रख सकते हैं। आज पत्रकारिता पूरी तरह से मर चुकी है। पत्रकारिता के नाम पर नेताओं और पाखंडी बाबाओं की चाटुकारिता हो रही हैं। मीडिया सर्कुलेशन और टीआरपी बढ़ाने के लिए कई घटिया हथकंडे अपना रहा है। राशिफल, भविष्यफल, इच्छाधारी नाग-नागिन, पूजा-पाठ, व्रत-उपवास, दिव्य-चमत्कार जैसी काल्पनिक चीजों को परोसने में अखबार, टेलीविजन और वेबपोर्टल लगे हुए हैं। इसके अलावा डरावनी भूत-प्रेत वाली फील्में धड़ल्ले से बन रही है। सुबह से लेकर रात तक लोग यहीं चीजें देखकर विवेक को खो रहे हैं। मीडिया को चाहिए कि सभी काल्पनिक चीजों का खंडन कर ज्ञानवर्धक सामग्री प्रकाशित और प्रसारित करें। सभी पत्रकारों की जिम्मेदारी है कि वे लोगों में वैज्ञानिक चेतना जगाएं, तभी बेहतर समाज का निर्माण हो पाएगा। वहीं लेखकों को भी चाहिए कि वे तार्किक कहानी, उपन्यास और लेख लिखें, जिससे लोग सही ढंग से जीवन जीना सीख सकें। मंच और फिल्म के कलाकारों को भी यर्थात और जनता के मुद्दों की स्टोरी पर काम करें।
पाखंडी बाबाओं और धर्मगुरुओं को जेल में डालें
एंटी सुपरस्टीशन ऑर्गेनाइजेशन के सांगठनिक सलाहकार गनपत लाल कहते हैं, अब वैज्ञानिक दृष्टिकोण को फैलाने का सबसे बड़ा योगदान वैज्ञानिक और चिकित्सक का है। वैज्ञानिकों को चाहिए कि नई-नई खोज करते रहे और अंधविश्वास का जोरदार विरोध करें। वहीं चिकित्सकों को चाहिए कि भगवान भरोसे न रहकर मरीजों को बचाने के लिए लगातार शोध पर मेहनत करते रहे। अस्पताल में काल्पनिक देवी-देवताओं की तस्वीरें बिल्कुल न रखें और मरीजों को मेडिकल साइंस पर भरोंसा दिलाएं। वहीं आजकल के नेता और अधिकारियों को चाहिए कि अंधविश्वास-पाखंड से दूर रहे और अंधविश्वास फैलाने व इसके नाम पर जनता को लूटने वाले पाखंडी बाबाओं और धर्मगुरुओं को जेल में डालें। तभी देश में खुशहाली ही खुशहाली होगी।