Unemployment in India : मोदीराज में मात्र जून में 1.3 करोड़ लोगों का छिना रोजगार, बेरोजगारी दर बढ़कर हुई 7.80 प्रतिशत
Unemployment in India : मोदीराज में मात्र जून में 1.3 करोड़ लोगों का छिना रोजगार, बेरोजगारी दर बढ़कर हुई 7.80 प्रतिशत
महेश व्यास, प्रबंध निदेशक सीएमआईई
भारत के जून 2022 के श्रम आंकड़े बेहद निराशाजनक हैं। रोजगार मई में 404 मिलियन से घटकर 390 मिलियन हो गया। एक गैर-लॉकडाउन महीने के दौरान रोजगार में यह सबसे बड़ी गिरावट है। अप्रैल और मई 2022 के दौरान रोजगार में 8 मिलियन की वृद्धि हुई थी। मई में गिरावट ने इस लाभ को मिटा दिया है। दरअसल, जून में रोजगार पिछले 12 महीने यानी जुलाई 2021 के बाद से सबसे कम था।
जून के दौरान श्रम बाजार सिकुड़ गए, जबकि इस महीने के दौरान लगभग 1 करोड़ 30 लाख नौकरियां चली गईं। हालांकि बेरोजगारों की वास्तविक संख्या में केवल 30 लाख की वृद्धि हुई, बाकी श्रम बाजारों से बाहर हो गए। परिणामस्वरूप, जून 2022 में श्रम बल एक करोड़ कम हो गया। यानी कृषि क्षेत्र में मुख्य रूप से यह रोजगार घटा है।
श्रम का यह सामूहिक निकास श्रम बल की भागीदारी दर में दिखाई देता है, जो 38.8 प्रतिशत पर अपने निम्नतम स्तर तक सिमट कर रह गया। पिछले दो महीनों में यह 40 फीसदी था। एलपीआर लंबे समय से 40 फीसदी पर टिके रहने संघर्ष कर रहा है। जून 2020 से मई 2022 तक के दो वर्षों में, एलपीआर 39.5-41 प्रतिशत की सीमा में रह गया है। इसलिए जून 2022 में 38.8 प्रतिशत की गिरावट एक तेज गिरावट है।
घट रही श्रम शक्ति ने बेरोजगारी दर को तेजी से बढ़ने से रोक दिया। फिर भी बेरोजगारी दर मई में 7.1 प्रतिशत से बढ़कर जून में 7.8 प्रतिशत हो गई। हाल के दिनों में बेरोजगारी दर ज्यादातर 7 से 8 प्रतिशत के बीच रही है। जून 2022 में रोजगार दर गिरकर 35.8 फीसदी पर आ गई। यह दो साल में इसका सबसे निचला स्तर है। स्पष्ट रूप से, भारत में कामकाजी उम्र की आबादी का 36 प्रतिशत से कम जून 2022 में कार्यरत था।
जबकि रोजगार में यह तेज गिरावट और प्रमुख श्रम बाजार अनुपात में समान रूप से तेज गिरावट चिंताजनक है, श्रम बाजार की बिगड़ती स्थिति पूरे देश में व्यापक नहीं है। जून में रोजगार में आयी गिरावट मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र से जुड़ी है। इसके अलावा, गिरावट मुख्य रूप से अनौपचारिक बाजारों में स्थित थी। यह संभव है कि यह बड़े पैमाने पर श्रमिकों के प्रवासन का मुद्दा हो, न कि बड़ी आर्थिक अस्वस्थता के कारण जून में रोजगार में गिरावट आई हो।
पहला, जहां जून में कुल रोजगार में 1 करोड़ 30 लाख की गिरावट आई, वहीं शहरी क्षेत्रों में इसमें 0.1 मिलियन की वृद्धि हुई। रोजगार में भारी गिरावट पूरी तरह से ग्रामीण इलाकों में थी। यानी गर्मियों में कृषि गतिविधियां बंद रहने से रोजगार घटे।
जून में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में श्रम बाजार अनुपात खराब हो गया, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह गिरावट कहीं अधिक स्पष्ट थी। ग्रामीण भारत में श्रम भागीदारी दर मई में 41.3 प्रतिशत से गिरकर जून में 39.9 प्रतिशत हो गई। 1.4 प्रतिशत अंक की यह गिरावट शहरी भारत में एलपीआर में 0.4 प्रतिशत अंक की गिरावट से काफी बड़ी है, जहां यह 37.1 प्रतिशत से गिरकर 36.7 प्रतिशत हो गई।
जून में ग्रामीण भारत में बेरोजगारी दर 1.4 प्रतिशत अंक बढ़कर 8 प्रतिशत हो गई। हालांकि, कस्बों और शहरों में बेरोजगारी दर 0.9 प्रतिशत घटकर 7.3 प्रतिशत हो गई, जो कि 16 महीनों में भारत में सबसे कम बेरोजगारी दर है। ग्रामीण भारत में रोजगार दर 38.6 प्रतिशत से घटकर 36.7 प्रतिशत हो गई जबकि शहरी भारत में यह लगभग अपरिवर्तित रही।
जून भारतीय उपमहाद्वीप में दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत का प्रतीक है। इस महीने में खरीफ फसल की बुवाई तेज हो जाती है। 15 जून तक मानसून की प्रगति धीमी थी। पहले पखवाड़े में बारिश सामान्य से 32 फीसदी कम रही। इससे खेतों में मजदूरों की तैनाती धीमी हो सकती थी। कृषि क्षेत्र ने जून में लगभग 8 मिलियन नौकरियां छोड़ीं। ये ज्यादातर खेती में थे। फसल की खेती ने 4 मिलियन नौकरियों को जोड़ा। यह जून 2021 और जून 2020 में देखे गए जोड़ से कम है।
दिलचस्प बात यह है कि जबकि कृषि क्षेत्र में पूरी तरह से रोजगार छिन गया, किसानों के रूप में लगे लोगों में 1.8 मिलियन की वृद्धि हुई। जाहिर है, कृषि क्षेत्र में रोजगार में गिरावट खेतिहर मजदूरों में थी। इस श्रम का अवशोषण मानसून की अनियमितताओं के प्रति संवेदनशील है।
15 जून तक मानसून सुस्त रहा और इस दौरान ग्रामीण श्रम बल की भागीदारी दर में गिरावट आई। फिर, जैसे-जैसे मानसून पुनर्जीवित हुआ, एलपीआर में भी सुधार हुआ। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले हफ्तों में जैसे-जैसे मानसून आगे बढ़ेगा, ग्रामीण भारत में रोजगार फिर से शुरू होगा।
ग्रामीण रोजगार का यह पुनरुद्धार कृषि मजदूरों के रूप में होने की उम्मीद है। इस श्रम की आपूर्ति दिहाड़ी मजदूरों द्वारा की जाएगी, जिन्होंने जून में बड़ी संख्या में नौकरी खो दी थी। महीने के दौरान हुए 13 मिलियन नौकरियों में से 12.7 मिलियन छोटे व्यापारियों और दिहाड़ी मजदूरों के थे। यह नुकसान ग्रामीण भारत में केंद्रित था। वास्तव में, ग्रामीण छोटे व्यापारियों और दिहाड़ी मजदूरों ने रोजगार में 13.9 मिलियन की भारी कमी देखी। यह नुकसान संभवतः संक्रमणकालीन था। जैसे ही जुलाई में बारिश फिर से शुरू होगी, इस श्रम के श्रम बल में समाहित होने की उम्मीद की जा सकती है।
यह चिंताजनक है कि इतनी बड़ी संख्या में श्रमिक मानसून की अनिश्चितता के प्रति इतने निर्भरशील हैं। दूसरा चिंताजनक बिंदु यह है कि जून 2022 में वेतनभोगी कर्मचारियों के बीच 25 लाख नौकरियों में गिरावट देखी गई। जून ने वेतनभोगी नौकरियों की बढ़ती भेद्यता को भी उजागर किया। बारिश के देवता इन नौकरियों को नहीं बचा सकते। इस तरह की नौकरियों को बचाने और उत्पन्न करने के लिए अर्थव्यवस्था को निकट भविष्य की तुलना में तेज गति से बढ़ने की जरूरत है।
(महेश व्यास का यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में बिजनैस स्टैंडर्ड में प्रकाशित)