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पर्यावरण

BJP Govt में उद्योगपतियों के फायदे के लिए अंधाधुंध हो रहा जंगलों का दोहन, पूर्वोत्तर में वनों का कटान सर्वाधिक

Janjwar Desk
22 Oct 2021 3:00 PM GMT
BJP Govt में उद्योगपतियों के फायदे के लिए अंधाधुंध हो रहा जंगलों का दोहन, पूर्वोत्तर में वनों का कटान सर्वाधिक
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BJP Govt : पिछले 20 वर्षों के दौरान आसाम में 2.69, मिजोरम में 2.5, नागालैंड में 2.3, अरुणाचल प्रदेश में 2.2, मणिपुर में 2, मेघालय में 2 और त्रिपुरा में 1.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के वृक्ष काटे गए या फिर नष्ट हो गए।

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

BJP Govt: यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड (University of Maryland) के विशेषज्ञों द्वारा किये गए अध्ययनों के अनुसार पिछले 20 वर्षों के दौरान (2001 से 2020 तक) भारत में लगभग 20 लाख हेक्टेयर का वृक्ष आवरण समाप्त हो गया है। वृक्ष आवरण (Tree Cover) समाप्त होने का मतलब है, वनों का कटना, आग लगाने से वृक्ष का बर्बाद होना, सामाजिक वानिकी के अंतर्गत वृक्षों का काटना या फिर तेज तूफ़ान में वृक्षों का गिरना। वृक्ष आवरण समाप्त होने की दर, वर्ष 2014 के बाद से बढ़ गयी है।

इसका सबसे खतरनाक तथ्य यह है कि पूर्वोत्तर राज्यों (Northeastern States) में यह दर बहुत अधिक है, और यह दर लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले 20 वर्षों के दौरान देश का जितना क्षेत्रों से वृक्षों का आवरण समाप्त हो गया है, उसमें से 77 प्रतिशत क्षेत्र देश के पूर्वोत्तर राज्यों में है, और यदि केवल वर्ष 2020 की बात करें तो यह क्षेत्र 79 प्रतिशत तक पहुँच जाता है।वर्ष 2001 से 2020 के बीच पूर्वोत्तर राज्यों की 14 लाख हेक्टेयर भूमि वृक्ष विहीन हो गयी, जबकि अकेले 2020 में यह क्षेत्र 110000 हेक्टेयर रहा।

पिछले 20 वर्षों के दौरान आसाम में 2.69, मिजोरम में 2.5, नागालैंड में 2.3, अरुणाचल प्रदेश में 2.2, मणिपुर में 2, मेघालय में 2 और त्रिपुरा में 1.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के वृक्ष काटे गए या फिर नष्ट हो गए। देश में जितने क्षेत्र के वृक्ष नष्ट हुए उसमें 14.1 प्रतिशत आसाम में, 13 प्रतिशत मिजोरम में, 11.9 प्रतिशत नागालैंड में, 11.6 प्रतिशत अरुणाचल प्रदेश में, 10.3 प्रतिशत मणिपुर में, 10.3 प्रतिशत मेघालय में और 5.5 प्रतिशत त्रिपुरा में हैं। पूर्वोत्तर से बाहर के राज्यों में सबसे आगे 6.5 प्रतिशत ओडिशा में और 4 प्रतिशत क्षेत्र केरल में है।

कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के शोध छात्र विजय रमेश (Vijay Ramesh, Research Scholar at Colombia University) ने वर्ष 2020 में देश के वन क्षेत्र को गैर-वन उपयोग में परिवर्तित (conversion of forest land into non-forest uses) करने का गहन विश्लेषण किया है, और इनके अनुसार पिछले 6 वर्षों के दौरान सरकार तेजी से वन क्षेत्रों में खनन, उद्योग, हाइड्रोपॉवर और इन्फ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने की अनुमति दे रही है, जिससे वनों का उपयोग बदल रहा है और इनका विनाश भी किया जा रहा है।

इस दौर में, यानि 2014 से 2020 के बीच पर्यावरण और वन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) में वन स्वीकृति (Forest Clearance) के लिए जितनी भी योजनाओं ने आवेदन किया, लगभग सबको (99.3 प्रतिशत) स्वीकृति दे दी गई, या फिर स्वीकृति की प्रक्रिया में हैं, जबकि इससे पहले के वर्षों में परियोजनाओं के स्वीकृति की दर 84.6 प्रतिशत थी। यही नहीं, बीजेपी की सरकार वनों के साथ कैसा सलूक कर रही है, इसका सबसे उदाहरण तो यह है कि 1980 में लागू किये गए वन संरक्षण क़ानून (Forest Conservation Act) के बाद से वर्ष 2013 तक, जितने वन क्षेत्र को गैर-वन उपयोगों के लिए खोला गया है, इसका 68 प्रतिशत से अधिक वर्ष 2014 से वर्ष 2020 के बीच स्वीकृत किया गया।

वर्ष 1980 से 2013 तक कुल 21632.5 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को गैर-वन उपयोग के लिए स्वीकृत किया गया था, पर इसके बाद के 6 वर्षों के दौरान ही 14822.47 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र को गैर-वन गतिविधियों के हवाले कर दिया गया।

वैसे, जो लोग इस समय केंद्र में काबिज सरकार के कामकाज और विचारधारा को जानते हैं, उन्हें इन आंकड़ों पर कोई आश्चर्य नहीं होगा। हमारे प्रधानमंत्री जिस भी क्षेत्र की लगातार और बार-बार चर्चा करते हैं, वहां हमेशा सरकारी संकट पैदा किया जाता है। प्रधानमंत्री जी चीन की बातें करते हैं, दलवान घाटी का किस्सा सबने देख लिया, प्रधानमंत्री जी 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की बातें करते हैं और अर्थव्यवस्था की हालत सभी जानते हैं, प्रधानमंत्री जी कोविड 19 की बातें खूब कर रहे हैं और नजारा पूरी दुनिया ने देखा। इसी तरह प्रधानमंत्री जी पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, स्वच्छ भारत और ग्रीन इकॉनमी की भी बार बार बातें करते हैं, और हमारा पर्यावरण लगातार पहले से अधिक बिगड़ता जाता है, उद्योगपतियों को पर्यावरण के दोहन की अधिक छूट मिलती जा रही है।

स्टेट ऑफ इंडियाज फारेस्ट रिपोर्ट 2019 (State of India's Forest 2019) के अनुसार देश के कुल भू-भाग में से 21.67 प्रतिशत पर वन हैं। इस वन क्षेत्र में फलों के बाग़, सड़क और नहर किनारे के पेड़, औद्योगिक खेती और सामाजिक वानिकी का क्षेत्र भी सम्मिलित है। यह पूरा क्षेत्र 712249 वर्ग किलोमीटर है। इस रिपोर्ट के अनुसार मध्यम सघन वन का क्षेत्र कम हो रहा है और पिछले दस वर्षों के भीतर इसमें 3।8 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जो चिंताजनक है।

दिसम्बर 2019 में संसद को बताया गया था कि वर्ष 2015 से 2018 के बीच कुल 1280 परियोजनाओं के लिए 20314 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र के भू-उपयोग को बदला गया है। इन परियोजनाओं में खनन, ताप बिजली घर, नहरें, सड़कें, रेलवे और बाँध सम्मिलित हैं। वनों के क्षेत्र को परियोजनाओं के हवाले करने में सबसे आगे तेलंगाना, मध्य प्रदेश और ओडिशा हैं। पूरे देश में परियोजनाओं के हवाले जितना वन क्षेत्र किया गया है, उसका 62 प्रतिशत से अधिक केवल इन तीन राज्यों में किया गया है।

पर्यावरण और वन मंत्रालय अपनी स्थापना के बाद से किसी भी दौर में पर्यावरण का संरक्षक नहीं रहा है, पर अब तो पूरी तरह से विनाशक की भूमिका निभा रहा है। अब यह पर्यावरण की चिंता नहीं करता बल्कि ऊपर से आये आदेशों का पालन करता है, और पर्यावरण विनाश को भी कुतर्क के सहारे उचित ठहराता है। आज के दौर में पर्यावरण को बचाने की मुहीम चलाने वाले सरकार की नज़रों में देशद्रोही, अर्बन नक्सल और विकास विरोधी लोग हैं। वन क्षेत्रों में सदियों से रहने वाली आबादी और जनजातियाँ जब इसके विनाश को रोकने के सरकारी कदमों का विरोध करती हैं तब उन्हें नक्सल करार दिया जाता है।

सीएजी समय-समय पर अपनी रिपोर्टों में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा परियोजनाओं को स्वीकृत किये जाने वाले पर्यावरण स्वीकृति और वन स्वीकृति में किये जाने वाले घपलों की चर्चा करता है, पर स्थितियां और बिगड़ती जा रहीं हैं। इस सरकार के दौर में पर्यावरण पूरी तरह से उद्योगपतियों की धरोहर बन गया है, उनके हवाले हवा, पानी, जंगल और वन्य जीव कर दिए गए हैं, और जनता के लिए जहरीली गैसें और प्रदूषण की मार है।

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