जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बढ़ते तापमान का खतरा बढ़ेगा और ज्यादा, एकस्ट्रीम वेदर के लिए भारत सबसे ज्यादा संवेदनशील देश
Climate Change News : जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है
मनोज सिंह और आशीष तिवारी की टिप्पणी
साल 2019 में, संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव ने तीन स्तरों पर सतत विकास गोल (एसडीजी) के लक्ष्य हासिल करने के लिए एक दशक भर की कार्रवाई का आह्वान किया था। इस आह्वान में शामिल थे अधिक संसाधन और बेहतर समाधान प्रदान करने के लिए बेहतर नेतृत्व के साथ वैश्विक कार्रवाई; प्रभावी नीतियाँ, बजट, सशक्त संस्थान और सरकारें, युवा समूह के साथ साथ स्वयंसेवी संस्थाएं, मीडिया, निजी क्षेत्र, यूनियनों, शिक्षाविदों और अन्य हितधारकों सहित एक जन आंदोलन और शहरों और स्थानीय प्राधिकरणों के नियामक ढांचे में आवश्यक बदलावों को लेन वाली स्थानीय कार्रवाई जैसे आवश्यक परिवर्तन।
जलवायु परिवर्तन सतत विकास के लिए एकमात्र सबसे बड़ा खतरा बन कर खड़ा है और इसके व्यापक और अभूतपूर्व प्रभाव सबसे गरीब और सबसे कमजोर लोगों पर असमान रूप से अधिक दुष्प्रभाव डालते हैं। जलवायु परिवर्तन को रोकने और इसके दुष्प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई सभी सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को सफलतापूर्वक प्राप्त करने का अभिन्न अंग है। इस कार्रवाई के लिए सामूहिक रूप से 2015 के बाद के तीन एजेंडे - पेरिस समझौता, सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा, और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंदाई फ्रेमवर्क - बदलती जलवायु के तहत कम कार्बन और लचीले सतत विकास की नींव डालते हैं।
तापमान में निरंतर वृद्धि के कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभाव समय बीतने के साथ और भी बदतर होने का खतरा है। चरम मौसम की घटनाओं के लिए भारत अत्यधिक संवेदनशील देश है, और राष्ट्रीय परिस्थितियों की मांग है कि भारत के अनुकूलन और लचीलेपन के प्रयासों को और तेज और स्थानीय बनाया जाए। नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों में जलवायु कार्रवाई को मुख्यधारा में लाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई पहल भी की गई हैं।
देश द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को देश की विकासात्मक अनिवार्यताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है और यह सर्वोत्तम प्रयास के आधार पर है। भारत की जी-20 अध्यक्षता जलवायु कार्रवाई प्राथमिकताओं को निर्धारित करती है। इनमें हरित विकास, जलवायु वित्तीय व्यवस्था, त्वरित, समावेशी और लचीला विकास और पर्यावरण के लिए जीवन शैली (LiFE) शामिल है।
उत्तर प्रदेश (यूपी), लगभग 58,000 से अधिक ग्राम पंचायतों और 750 शहरी स्थानीय निकायों के साथ 250 मिलियन से अधिक की आबादी के साथ सबसे बड़ी उप-राष्ट्रीय इकाई होने के नाते, जलवायु-प्रेरित आपदाओं सहित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए अत्यधिक संवेदनशील है। इनके परिणामस्वरूप मानव और पशु जीवन का व्यापक के साथ साथ निजी और सार्वजनिक संपत्ति तथा पर्यावरण को भारी नुकसान होता है।
वर्ष 1969 और 2019 के बीच, राज्य ने 2539 बाढ़ की घटनाओं, 17144 विनाशकारी शीत लहर के दिनों, 6726 विनाशकारी गर्मी की लहर के दिनों और 720 आकाशीय बिजली के दिनों का सामना किया। राज्य के 75 जिलों में से, लगभग 50 जिले उच्च से मध्यम रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हैं और यह संवेदनशीलता मध्य शताब्दी के दौरान जलवायु संबंधी खतरों के बढ़ते जोखिम के कारण और बढ़ना अनुमानित है।
इस परिदृश्य को देखते हुए यूपी ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के स्पष्ट आह्वान पर समय पर प्रतिक्रिया दी है और मजबूत सात कदमों से बने एक तरह के इंद्र्धानुषीय दृष्टिकोण के साथ जलवायु कार्रवाई को स्थानीय बनाने के लिए जी 20 शिखर सम्मेलन के उद्देश्य से कदम मिलाते हुए आगामी दशक हेतु एक आक्रामक कार्यवाई प्रारंभ कर दी है।
मजबूत जलवायु योजना और राज्य स्तर पर कार्यान्वयन
सबसे पहले, निकट-अवधि के लक्ष्यों के साथ एक सुसंगत और दीर्घकालिक दृष्टि लक्षित कर, राज्य ने एसडीजी 2030 विज़न को समन्वित करते हुए यूपी राज्य जलवायु परिवर्तन के लिए कार्य योजना (एसएपीसीसी) को संशोधित और नए सिरे से इसका क्रियान्वयन शुरू कर दिया है। यूपीएसएपीसीसी नौ मिशनों यथा सतत कृषि; जल; ऊर्जा दक्षता; वानिकी; स्वास्थ्य; नवीकरणीय ऊर्जा; आपदा प्रबंधन; मानव आवास (शहरी और ग्रामीण); और रणनीतिक ज्ञान विकास के तहत कार्यों को प्राथमिकता देता है। यूपीएसएपीसीसी जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन एवं शमन कि कार्यवाई के नियोजन के साथ साथ इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता एवं व्यवस्था, क्रियान्वयन की एकीकृत निगरानी और मूल्यांकन का ढांचा तथा तंत्र की संरचना सुनिश्चित के सम्बन्ध में उचित मार्गदर्शन करता है।
उत्तर प्रदेश में जलवायु कार्रवाई का स्थानीयकरण
संसाधनों और आजीविका के लिए कृषि, जल और कृषि -वानिकी जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों पर अपनी उच्च निर्भरता के कारण, यूपी ने दूसरे चरण के रूप में जलवायु अनुकूलन और लचीलापन के स्थानीयकरण के लिए महत्वपूर्ण अभिनव प्रयासों का बीड़ा उठाया है। सेक्टरवार और भौगोलिक व्यापक जलवायु जोखिम के आकलन के आधार पर राज्य में स्थानीय जलवायु कार्रवाइयों को प्राथमिकता दी गई है। राज्य ने अपनी तरह का पहला पंचायत सम्मेलन (सीओपी) 2022 आयोजित किया, जिसमें राज्य के सर्वोच्च नेतृत्व ने 58,000 से अधिक ग्राम पंचायतों (जीपी) को राज्य में स्थानीय जलवायु गतिविधियों को बढ़ाने का आह्वान किया।
सीओपी 2022 ने जीपी को जमीनी स्तर के जलवायु नायकों के साथ बातचीत करने के लिए एक मंच प्रदान किया, जिसने उन्हें स्थानीय जलवायु कार्यों को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। स्थानीय जलवायु कार्यवाई को मजबूत करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर जिला कार्य योजना (डीएपीसीसी) और क्लाइमेट स्मार्ट ग्राम योजनाएं भी विकसित की जा रही हैं। जलवायु कार्रवाई के स्थानीयकरण में राज्य के प्रयासों को मान्यता देते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य को शर्म अल शेख, मिस्त्र, में सीओपी 27 के दौरान भारत के पवेलियन में "रोड टू रेजिलिएन्स 2030: जिला और ग्राम स्तर पर जलवायु कार्रवाई को स्थानीय बनाने के लिए अभिनव दृष्टिकोण" शीर्षक से एक साइड इवेंट की मेजबानी करने के लिए आमंत्रित किया। इस इवेंट के माध्यम से यूपी ने जलवायु संबंधी कार्यों को स्थानीय विकास में एकीकृत किये जाने की सफलता को प्रदर्शित किया।
क्षमता विकास
बदलती जलवायु से स्थानीय समुदाय सबसे पहले प्रभावित होते हैं। साथ ही, प्रभावी सामुदायिक संस्थान और स्थानीय समूह ऐसे प्रभावों के लिए प्रतिक्रिया देने वालों में अग्रणी होते हैं। इसके मद्देनज़र तीसरे कदम के रूप में, यूपी ने 58000 ग्राम पंचायतों की क्षमता को मुख्यधारा में लाने और ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (जीपीडीपी) के माध्यम से स्थानीय नियोजन प्रक्रिया में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और लचीलेपन को एकीकृत करने की महत्वपूर्ण यात्रा शुरू की है। स्कोपिंग आकलन के माध्यम से क्षमता निर्माण के लिए महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (एमकेएसपी) के लक्षित समूह, पंचायती राज संस्थान (पीआरआई), एसएचजी, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ), पानी पंचायत आदि की पहचान की गई है।
राज्य में दीनदयाल उपाध्याय स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट, उत्तर प्रदेश; वन प्रशिक्षण संस्थान (एफटीआई), कानपुर; बैंकर्स इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट (BIRD), लखनऊ और पंचायती राज इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग (PRIT), लखनऊ की छत्रछाया में क्षेत्रीय स्तर के 17 और जिला-स्तरीय 31 ग्रामीण विकास संस्थानों के नेटवर्क के माध्यम से उक्त लक्षित समूहों के लिए एक क्षमता-विकास पैकेज तैयार कर शुरू किया गया है ।
वित्तीय संसाधनों में वृद्धि
चौथा, यूपीएसएपीसीसी (2021-2030) के कार्यान्वयन के लिए, कन्वर्जेन्स के माध्यम से वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने के लिए लाइन विभागों/एजेंसियों के परामर्श से एक विस्तृत रणनीति एवं कार्य-वार वित्तीय संसाधन मानचित्रण किया गया है। यूपीएसएपीसीसी के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कुल वित्तीय आवश्यकता ₹ 1,12,482.48 करोड़ अनुमानित है, जिसमें से 72% वित्तीय संसाधन मौजूदा विभागीय योजनाओं के कन्वर्जेन्स के माध्यम से जुटाया जा सकता है, जबकि 28% वित्तीय आवश्यकता कि पूर्ति बाहरी द्विपक्षीय/बहुपक्षीय स्रोतों अथवा लोकोपकार हेतु वित्तीय सहायता के माध्यम से जुटाया जा सकता है। डीएपीसीसी और क्लाइमेट स्मार्ट विलेज एक्शन प्लान के लिए वित्तीय संसाधनों की मैपिंग भी की जा रही है ताकि वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता पर अधिक बारीकियां ज्ञात कर वित्तीय संसाधन जुटाएं जा सकें।
जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी सामरिक ज्ञान का विकास
पांचवें कदम के रूप में, यूपी ने नॉलेज प्रोडक्टस के विकास और प्रसार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिसमें बाढ़ की मैपिंग, जलभराव वाले क्षेत्रों का आकलन, लिडार मैपिंग परियोजनाएं, यूटिलिटी मैपिंग आदि शामिल हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र में पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के अनुकूलन पर एक अध्ययन किया गया है। जलवायु परिवर्तन विज्ञान-नीति-प्रैक्टिस कनेक्शन को मजबूत करने और क्रॉस-सेक्टोरल सहयोग में इसे मजबूती से स्थापित करने के लिए, राज्य में एक बहु-हितधारक और सहयोगी क्लाइमेट चेंज नॉलेज नेटवर्क स्थापित किया गया है।
इस नॉलेज नेटवर्क के अंतर्गत राज्य और केंद्र सरकार के संगठनों के साथ-साथ वैज्ञानिक और शैक्षणिक संस्थान, निजी क्षेत्र के प्रतिनिधि और कॉर्पोरेट संस्थाएं, गैर सरकारी संगठन, मीडिया और समुदाय-आधारित संगठन शामिल हैं। अत्याधुनिक ज्ञान उत्पादों के निर्माण के लिए लखनऊ में एक जलवायु परिवर्तन नॉलेज सेंटर स्थापित किया जा रहा है। राज्य ने जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ पर्यावरण नॉलेज पोर्टल को एकल पोर्टल रिपॉजिटरी (और अन्य समान रिपॉजिटरी की एक मास्टर रिपॉजिटरी) के रूप में विकसित किया है ताकि विभिन्न हितधारकों के बीच समय पर जानकारी के आदान प्रदान के साथ साथ प्रासंगिक ज्ञान आसानी से उपलब्ध और प्राप्त हो सके।
राज्य व्यक्तियों, संगठनों और कॉर्पोरेट के लिए क्षमता निर्माण और जागरूकता गतिविधियों के साथ विघटनकारी अनुसंधान और प्रौद्योगिकियों के निर्माण के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र को भी बढ़ावा दे रहा है। राज्य ने शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं के बीच विचारों के नियमित आदान-प्रदान के लिए एक मंच भी विकसित किया है ताकि विज्ञान-नीति-कार्यवाई के बढ़ते इंटरफ़ेस का लाभ उठाया जा सके और विज्ञान और नीति के अंतर को कम किया जा सके।
जलवायु परिवर्तन शमन की प्रभावी रणनीति
राज्य अपनी उच्च जनसंख्या के बावजूद भारत के GHG उत्सर्जन (293 Mt CO2e: 2018) में केवल 9% का योगदान देता है। राज्य में प्रति व्यक्ति GHG उत्सर्जन (2018) भारत के 2.24 t CO2e और विश्व के 6.49 t CO2e के मुकाबले मात्र 1.32 t CO2e है। उक्त के बावजूद भी छठे कदम के रूप में, यूपी संशोधित एनडीसी के अनुरूप जलवायु परिवर्तन के शमन को स्थानीय बनाने में भारत के प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है। सबसे पहले, राज्य ने मौजूदा प्रयासों को मजबूत करने के लिए सौर, बायोमास और इलेक्ट्रिक वाहनों पर कई प्रमुख नीतियां बनाईं।
आज तक यूपी की सोलर पॉवर की कुल स्थापित क्षमता 2.4 GW है और लगभग 3.8 GW पाइपलाइन चरण में है। राज्य ने 2022 में नई सौर नीति को भी अधिसूचित किया, जिसका उद्देश्य 2027 तक 22 GW सौर लक्ष्य प्राप्त करना है। इसके अलावा, इसका उद्देश्य राज्य में 17 नगर निगमों को नीति के हिस्से के रूप में की गयी अच्छी वित्तीय व्यवस्था के माध्यम से सोलर सिटी बनाना है। इसमें से 14 GW यूटिलिटी-स्केल सौर परियोजनाओं से, 6 GW आवासीय सोलर रूफटॉप से, और 2 GW वितरित सौर उत्पादन (टेल एंड प्लांट्स और कृषि उपयोग-मामले) से उपलब्ध होगी। इसके अलावा, यह नीति स्कूलों, अस्पतालों आदि में अपनी तरह की पहली नेट मीटरिंग सुविधाओं जैसी अत्याधुनिक रणनीति, वाणिज्यिक और औद्योगिक (सी एंड आई) सेगमेंट में नेट-बिलिंग की सुविधाएं सहित सौर ऊर्जा चालित फेरीज़ को बढ़ावा देती है।
2022 में अपनी जैव-ऊर्जा नीति के माध्यम से, राज्य ने 2026-27 तक कंप्रेस्ड बायो गैस (CBG) के 1,000 टन प्रति दिन (टीपीडी), जैव-कोयला के 4,000 टीपीडी और बायोएथेनॉल और बायोडीजल के 2,000 किलो लीटर प्रति दिन उत्पादन करने का 1040.75 करोड़ रुपये की कुल सब्सिडी,दस वर्ष के लिए बिजली शुल्क में छूट, स्टाम्प शुल्क एवं विकास शुल्क की माफी और पट्टे पर किराया मुक्त भूमि के माध्यम से राज्य भर में 350 जैव ऊर्जा इकाइयों की स्थापना का लक्ष्य रखा है। । हाल ही में जारी नई इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण और गतिशीलता नीति का उद्देश्य राज्य में ईवी को अपनाने में वृद्धि करना और राज्य को इलेक्ट्रिक मोबिलिटी विकास और विनिर्माण के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाना है। राज्य ने हरित हाइड्रोजन नीति का मसौदा संस्करण जारी करके अपनी टोपी में एक और पंख जोड़ा है, जिसका उद्देश्य हरित हाइड्रोजन की मांग और अंतर्देशीय जलमार्गों विशेषकर वाराणसी-हल्दिया जलमार्ग के माध्यम से उत्तर प्रदेश में सस्ते और कम उत्सर्जन वाले कार्गो परिवहन को बढ़ावा देना है।
अतिरिक्त कार्बन सिंक की स्थापना
सातवां, यूपी 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 GtCO2e के कार्बन सिंक की स्थापना सम्बन्धी भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) में योगदान करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहा है। भले ही प्रदेश के पास वृक्षारोपण के लिए सीमित जगह है लेकिन वूड इज़ गुड की अवधारणा के तहत कृषि -वानिकी मूल्य श्रृंखला को बढ़ावा दे कर यूपी अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने की चुनौती का सामना कर रहा है । स्वैच्छिक कार्बन बाजार के माध्यम से कृषि -वानिकी को कार्बन वित्तपोषण से जोड़ने में राज्य के अग्रणी कदम ने कृषि - वानिकी क्षेत्र को एक मजबूत प्रोत्साहन प्रदान किया है।
राज्य ने 175 मिलियन tCO2e के अतिरिक्त कार्बन सिंक की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया है और मुख्य रूप से कृषि -वानिकी के माध्यम से इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वृक्षारोपण के लिए एक नीति तैयार की है। राज्य में पिछले पांच वर्षों के दौरान 1 बिलियन से अधिक पेड़ लगाए हैं और अगले पांच वर्षों में 1.75 बिलियन पेड़ लगाए जाएंगे। राज्य काष्ठ की मांग को बढाने के लिए भवन और निर्माण क्षेत्र में लकड़ी और लकड़ी के अवशेषों के उत्पादों के उपयोग की भी वकालत कर रहा है जिससे उत्पादन बढ़ेगा और अधिक उत्पादन होने से उत्पादों के मूल्य में कमी आयेगी। लकड़ी का अधिक उपयोग न केवल कार्बन को लकड़ी में कैद रखेगा बल्कि उच्च सन्निहित ऊर्जा निर्माण सामग्री के स्थान पर कम ऊर्जा काष्ठ आधारित निर्माण सामग्री का विकल्प भी प्रदान करेगा।
इस प्रकार, यूपी ने वैश्विक और राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्थानीयकृत जलवायु कार्रवाई के दशक की रणनीति बनाकर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के आह्वान पर तात्कालिक प्रभावी कार्यवाई प्राम्भ की है। भारत के माननीय प्रधान मंत्री द्वारा 'प्रो-प्लैनेट पीपल' का एक राष्ट्रीय और वैश्विक नेटवर्क बनाने और पोषित करने के लिए शुरू किया गया मिशन LiFE, न सिर्फ जलवायु कार्रवाई के लिए एक प्राथमिकता है, बल्कि इस साल, जब भारत G20 शिखर सम्मेलन के नेतृत्व के दृष्टिगत और भी प्रासंगिक हो जाता है। यूपी द्वारा सेवन स्टेप रेनबो एप्रोच के साथ की जा रही क्लाइमेट कार्यवाई को मिशन LiFE निश्चित रूप से मजबूती प्रदान करेगा।
(लेखक उत्तर प्रदेश सरकार में वरिष्ठ नौकरशाह हैं। मनोज सिंह, आईएएस (1989 बैच), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं, और आशीष तिवारी, आईएफएस (1995 बैच), इसी विभाग में सचिव हैं।)