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पर्यावरण

दो दशकों में भारत ने खो दिये हैं 24,000 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा घने जंगल, रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा

Janjwar Desk
31 Aug 2025 5:45 PM IST
दो दशकों में भारत ने खो दिये हैं 24,000 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा घने जंगल, रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा
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अंधाधुंध कटान के कारण 48 वर्षों में जीवों की संख्या हुई 69 प्रतिशत कम, प्रजातियों का विलुप्तीकरण मानव जाति के लिए जलवायु परिवर्तन से भी बड़ा खतरा

आज भारत की ग्रीन कवर (जंगल और पेड़ दोनों मिलाकर) कुल भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% हो चुका है। 2021 से 2023 के बीच इसमें 1,445 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन असली चुनौती यह है कि घने और जैव-विविधता वाले पुराने जंगल घटते जा रहे हैं। पिछले दो दशकों में भारत ने 24,000 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा घने जंगल खो दिए हैं...

Climate change : पेड़ लगाना जलवायु परिवर्तन से लड़ाई का आसान हल माना जाता है। लेकिन Science जर्नल में छपी एक नई स्टडी कहती है कि हकीकत उतनी सीधी नहीं है। रिसर्च के मुताबिक दुनिया भर में अगर पेड़ लगाने और जंगल बहाल करने के काम सही जगह पर और टिकाऊ तरीके से किए जाएँ, तो 2050 तक करीब 40 गीगाटन कार्बन को सोख सकते हैं-यानी पिछले दस सालों में धरती के कार्बन सिंक का लगभग 63 प्रतिशत। लेकिन, ये अनुमान पहले की तुलना में आधा है क्योंकि इसमें जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और पानी जैसे जोखिमों को ध्यान में रखा गया है।

स्टडी बताती है कि दुनिया के 90% पेड़ लगाने के वादे गरीब और मध्यम आय वाले देशों ने किए हैं, जबकि यूरोप और अमेरिका जैसे अमीर देशों के पास तो जमीन ज़्यादा है, पर कमिटमेंट बहुत कम। अफ्रीका के पास केवल 4% उपयुक्त जमीन है, लेकिन उसने आधे से ज़्यादा वादे कर डाले हैं। वहीं, भारत और चीन जैसे एशियाई देशों के पास बड़ी संभावनाएँ हैं और इन्होंने ठोस कदम भी उठाए हैं।

भारत की भूमिका

भारत इस दौड़ में अहम खिलाड़ी है। रिसर्च के मुताबिक भारत के पास लगभग 21 मिलियन हेक्टेयर (Mha) जमीन है जो टिकाऊ तरीके से वृक्षारोपण के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। भारत ने पहले ही करीब 16 Mha के लिए कमिटमेंट कर दिया है, जो लगभग ब्रिटेन के आकार की जमीन के बराबर है। तुलना करो तो अमेरिका के पास लगभग उतनी ही जमीन है (25 Mha), लेकिन उसने एक इंच भी कमिटमेंट नहीं किया है।

आज भारत की ग्रीन कवर (जंगल और पेड़ दोनों मिलाकर) कुल भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% हो चुका है। 2021 से 2023 के बीच इसमें 1,445 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन असली चुनौती यह है कि घने और जैव-विविधता वाले पुराने जंगल घटते जा रहे हैं। पिछले दो दशकों में भारत ने 24,000 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा घने जंगल खो दिए हैं।

हमारी परंपरा और पेड़

भारत में पेड़ लगाना कोई नया फैशन नहीं है। यहाँ तो बरगद, पीपल, तुलसी जैसे पौधे पूजा और आस्था का हिस्सा रहे हैं। गाँव-गाँव में “वृक्ष देवता” और “वनदेवी” की कहानियाँ सुनी जाती रही हैं। यानी प्रकृति पूजन हमारी संस्कृति की जड़ में है। यही सोच आज फिर अभियानों में ज़िंदा हो रही है।

‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसे कैंपेन इस विचार को जनांदोलन बना रहे हैं। अकेले इस पहल के तहत करोड़ों पौधे लगाए गए हैं और लाखों हेक्टेयर जमीन पर हरियाली फैलाई गई है। सरकार की ग्रीन इंडिया मिशन और अरावली ग्रीन वॉल जैसी योजनाओं ने भी नए जंगल खड़े किए हैं।

हालांकि, विशेषज्ञ कहते हैं कि सिर्फ़ पेड़ लगाने से काम पूरा नहीं होगा। यह देखना होगा कि कौन-सी प्रजातियाँ लगाई जा रही हैं, उनकी देखभाल कैसे हो रही है, और क्या वे जैव विविधता को सहारा दे रही हैं या नहीं। क्योंकि अगर एकसाथ केवल एक ही प्रजाति (monoculture) लगा दी गई, तो उससे न तो कार्बन शोषण होगा और न ही पर्यावरण को असली फायदा।

साफ है कि पेड़ लगाना ज़रूरी है, लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है पुराने जंगलों को बचाना और जो लगाएँ उनकी देखभाल करना। भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी भूमिका दिखाई है, पर असली जीत तभी होगी जब हर पेड़ जड़ पकड़कर आने वाली पीढ़ियों के लिए साया बने।

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