कोटद्वार के जंगल में चल रहे स्टोन क्रेशर पर हाईकोर्ट ने लगाई तत्काल प्रभाव से रोक, इजाजत देने से पहले सरकार पीसीबी की नहीं लेती सहमति
कोटद्वार के जंगल में चल रहे स्टोन क्रेशर पर हाईकोर्ट ने लगाई तत्काल प्रभाव से रोक, इजाजत देने से पहले सरकार पीसीबी की नहीं लेती सहमति
Kotdwar news : उत्तराखंड में भले ही दुधारू पशुओं के लिए चारा पानी लाने या ग्रामीणों की अन्य जरूरतों को पूरा करने के जंगल में जाने से पर्यावरण का सत्यानाश हो जाता हो, लेकिन उसी जंगल में स्टोन क्रेशर चलाने से पर्यावरण दूषित नहीं होता। सोमवार 2 जनवरी को नैनीताल हाईकोर्ट ने ऐसे ही जंगल में संचालित किए जा रहे स्टोन क्रेशर को तत्काल प्रभाव से बंद करने के निर्देश देते एक याचिका का निस्तारण किया। कोर्ट के इस फैसले से जहां प्रदेश की माइनिंग पॉलिसी भी सवालों के घेरे में आ गई है तो दूसरी ओर मानकों का उल्लंघन करके चलाए जा रहे तमाम स्टोन क्रेशर स्वामियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं।
मामले के अनुसार कोटद्वार निवासी देवेंद्र सिंह अधिकारी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि कोटद्वार स्थित राजाजी नेशनल पार्क के रिजर्व फारेस्ट में तमाम मानकों को दरकिनार करते हुए सिद्धबली स्टोन क्रेशर नाम के एक क्रेशर का संचालन किया जा रहा है। इस स्टोन क्रेशर के कारण वन्य जीवों को परेशानी होती है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक कोई भी स्टोन क्रेशर किसी भी नेशनल पार्क के 10 किमी. के दायरे में स्थापित नहीं किया जा सकता है। इस लिहाज से यह स्टोन क्रेशर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी गाइडलाइनों के मानकों को भी पूरा नहीं करता है।
इस याचिका पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कई पक्षों से उनका जवाब मांगा था। जिस पर राज्य पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने आपत्ति पेश कर कहा कि राज्य सरकार स्टोन क्रेशर के लाइसेंस देते वक्त उनकी सहमति नहीं लेती है। क्रेशर को अनुमति मिलने के बाद उनके विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया जाता है। जिस पर कोर्ट ने राज्य पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को पॉल्यूशन रोकने की बॉडी है बताते हुए क्रेशर की इजाजत के लिए उसकी सहमति को आवश्यक बताया था।
इसके साथ ही राजाजी नेशनल पार्क से केवल साढ़े छः किमी. की दूरी पर संचालित होने वाले इस सिद्धबली स्टोन क्रेशर को सरकार ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए इस स्टोन क्रेशर को सड़क से 13 किलोमीटर दूर बताकर क्रेशर को बचाए रखने का प्रयास किया था। सरकार के इस तर्क पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने इसका विरोध करते हुए कोर्ट को बताया था कि दूरी मापने के लिए एरियल डिस्टेंस है, न कि सड़क से। सरकार ने इसे न्यायालय को गुमराह करने के लिए सड़क मार्ग से मापा है जो गलत है। याचिकाकर्ता ने सिद्धबली स्टोन क्रेशर को पीसीबी के मानकों का खुला उल्लंघन बताते हुए कहा था कि यहां स्टोन क्रेशर स्थापित करने से क्षेत्र के साथ साथ वन्यजीव भी प्रभावित हो रहे हैं। लिहाजा इसको हटाया जाए या इसके संचालन पर रोक लगाई जाए।
मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था, जिसे सोमवार 2 जनवरी को सुनाते हुए कोर्ट ने स्टोन क्रेशर के संचालन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड को निर्देश दिए हैं कि वह इसका निरीक्षण करते हुए तीन माह के भीतर खुद निर्णय ले कि ईको सेंसटिव जोन में स्टोन क्रेशर लग सकता है या नहीं।