Begin typing your search above and press return to search.
पर्यावरण

भारत पर बरस रहा क्लाइमेट का कहर, बार-बार आ रहा बाढ़, चक्रवात, लू और सूखे जैसी आपदाओं की चपेट में

Janjwar Desk
13 Nov 2025 5:41 PM IST
भारत पर बरस रहा क्लाइमेट का कहर, बार-बार आ रहा बाढ़, चक्रवात, लू और सूखे जैसी आपदाओं की चपेट में
x

जलवायु परिवर्तन नहीं किसी आपातकाल से कम, दुनिया के लिए भारी खतरा

Climate Crisis : भारत के लिए स्पष्ट चेतावनी है कि अगर उत्सर्जन में कटौती, अनुकूलन और जलवायु फाइनेंस पर निर्णायक कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर आने वाले दशकों में और गहरा होगा...

Climate Crisis : COP30 में पेश की गई जर्मनवॉच की नई रिपोर्ट क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2026 ने एक बार फिर याद दिलाया है कि जलवायु संकट अब भविष्य की नहीं, वर्तमान की कहानी है। रिपोर्ट के मुताबिक, 1995 से 2024 के बीच दुनियाभर में 9,700 से ज़्यादा चरम मौसम की घटनाओं में 8,32,000 लोगों की मौत हुई और 4.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (मुद्रास्फीति समायोजित) का आर्थिक नुकसान हुआ।

रिपोर्ट बताती है कि इस अवधि में भारत दुनिया के दस सबसे अधिक प्रभावित देशों में नौवें स्थान पर है। भारत को बाढ़, चक्रवात, लू और सूखे जैसी आपदाओं ने बार-बार झकझोरा है। देश के कई हिस्सों में चरम मौसम अब एक आवर्ती संकट बन चुका है।

1995 से 2024 के बीच सबसे ज़्यादा प्रभावित देश

1. डॉमिनिका

2. म्यांमार

3. होंडुरस

4. लीबिया

5. हैती

6. ग्रेनाडा

7. फिलीपींस

8. निकारागुआ

9. भारत

10. बहामास

वर्ष 2024 के लिए सबसे प्रभावित देश

1. सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनेडाइन्स

2. ग्रेनाडा

3. चाड

4. पापुआ न्यू गिनी

5. नाइजर

6. नेपाल

7. फिलीपींस

8. मलावी

9. म्यांमार

10. वियतनाम

रिपोर्ट ने बताया कि सिर्फ 2024 में ही दर्जनों देशों ने चरम बाढ़, चक्रवात और हीटवेव जैसी घटनाओं का सामना किया, जिनका सीधा असर स्थानीय अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा पर पड़ा।

रिपोर्ट में उद्धृत एक 2025 के अध्ययन के अनुसार, चक्रवात अम्फान (2020) की तीव्रता असामान्य रूप से गर्म समुद्री तापमान के कारण बढ़ी, जो मानवजनित जलवायु परिवर्तन से जुड़ी परिस्थितियों से प्रभावित थी। इसी तरह, हाल के वर्षों में भारत लगातार लंबी और अधिक घातक हीटवेव्स का सामना कर रहा है।

आईपीसीसी के अनुसार, औसत और चरम दोनों तरह की गर्मी में हर महाद्वीप पर बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। वैज्ञानिक अब इस बात पर एकमत हैं कि दुनिया में आने वाली हर हीटवेव अब मानवीय गतिविधियों से प्रेरित तापमान वृद्धि के कारण और अधिक संभावित तथा अधिक तीव्र हो गई है।

रिपोर्ट क्या कहती है

जर्मनवॉच की यह वार्षिक रिपोर्ट इंटरनेशनल डिज़ास्टर डेटाबेस (EM-DAT), वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ के सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों पर आधारित है। यह छह संकेतकों के आधार पर देशों की रैंकिंग तय करती है—मृतकों की संख्या, प्रभावित लोगों की संख्या, और आर्थिक नुकसान (दोनों सापेक्ष और पूर्ण रूप में)।

विशेषज्ञों की टिप्पणी

डेविड एकस्टीन, वरिष्ठ सलाहकार (क्लाइमेट फाइनेंस और निवेश), जर्मनवॉच : “क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2026 के नतीजे बताते हैं कि अब वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन में तुरंत कटौती ज़रूरी है। अगर कार्रवाई में देरी हुई, तो मौतों और आर्थिक तबाही का सिलसिला बढ़ता जाएगा। साथ ही, एडॉप्टेशन और लॉस एंड डैमेज पर ठोस कदम उठाने होंगे।”

वीरा क्यूंज़ेल, वरिष्ठ सलाहकार (एडॉप्टेशन और मानवाधिकार), जर्मनवॉच : “हैती, फिलीपींस और भारत जैसे देश बार-बार आपदाओं से प्रभावित होते हैं। इतनी आवृत्ति के कारण इन क्षेत्रों को अगले संकट से पहले संभलने का वक्त तक नहीं मिल पाता। ऐसे देशों के लिए लंबी अवधि की सहायता और फंडिंग बेहद ज़रूरी है।”

लॉरा शेफ़र, प्रमुख (अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीति विभाग), जर्मनवॉच: “चरम मौसम घटनाओं में सबसे अधिक जानलेवा प्रभाव हीटवेव और तूफानों का है। आर्थिक नुकसान की दृष्टि से भी तूफानों का योगदान सबसे ज़्यादा रहा, जबकि बाढ़ से सबसे अधिक लोग प्रभावित हुए।”

वैश्विक संदर्भ

रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब दुनिया भर के नेता COP30 में एकजुट होकर जलवायु कार्रवाई को तेज़ करने की बात कर रहे हैं। इस साल अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने भी यह ऐतिहासिक राय दी थी कि देशों पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को रोकने और उसकी भरपाई करने की कानूनी ज़िम्मेदारी है।

वहीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने 2025 की अपनी ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट में चरम मौसम को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खतरा बताया है, जो सिर्फ युद्ध से पीछे है।

भारत के लिए संदेश

भारत, जो पहले से ही बढ़ती हीटवेव, बाढ़ और चक्रवातों से जूझ रहा है, अब जलवायु संकट की वैश्विक रैंकिंग में भी लगातार ऊपर बना हुआ है। रिपोर्ट एक स्पष्ट चेतावनी देती है कि अगर उत्सर्जन में कटौती, अनुकूलन और जलवायु फाइनेंस पर निर्णायक कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर आने वाले दशकों में और गहरा होगा।

Next Story

विविध