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पर्यावरण

मोदी सरकार ने उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए पर्यावरण को पहुंचाया सर्वाधिक नुकसान, लूट का सिलसिला जारी

Janjwar Desk
16 Jun 2020 12:07 PM IST
मोदी सरकार ने उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए पर्यावरण को पहुंचाया सर्वाधिक नुकसान, लूट का सिलसिला जारी
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file photo
मोदीराज में जनता को सभी प्राकृतिक संसाधनों से भी लगातार बेदखल किया जा रहा है, और इन्हें पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है...

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। प्रधानमंत्री मोदी 12 मई के बाद से लगभग हरेक संबोधनों में आत्मनिर्भर भारत पर प्रवचन दे रहे हैं। जितने भी बाबा प्रवचन देते हैं, स्वयं उसमें से किसी भी बात का पालन नहीं करते, और अब यही पूरे देश के साथ हो रहा है।

आत्मनिर्भर भारत की असलियत अभी दो दिन पहले ही देश के सामने आ गई थी, जब टीवी चैनलों पर एक के बाद एक दो खबरें लगातार दिखाई जा रहीं थीं। पहली खबर थी प्रधानमंत्री ने इंडियन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स को संबोधित करते हुए आत्मनिर्भर भारत की फिर से चर्चा की। इसके ठीक बाद की खबर थी, तिनसुकिया के तेल पाइपलाइन और कुँए में लगी आग को बुझाने के लिए सिंगापुर से विशेषज्ञों का एक दल भारत पहुँच चुका है।

आत्मनिर्भर भारत तेल कुँए से गैस का रिसाव पर 7 दिनों तक ध्यान नहीं देता है और जब आग लग जाती है तब उसे बुझाने के लिए दूसरे देशों से विशेषज्ञों को बुलाता है। कोविड 19 के सन्दर्भ में भी देखें, तो शुरू से योग, गौमूत्र, गोबर, आयुर्वेदिक दवाओं, होमियोपैथिक दवाओं, काढ़ा, हल्दी, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से इसके इलाज का दावा करते करते 3 दिनों पहले अमेरिकी एंटीवायरल दवा रेनसिडीमीर को भी इसके इलाज के लिए शामिल कर लिया।

इंडियन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के इसी संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा की उद्योगों को जनता (पीपल), प्रकृति/पृथ्वी (प्लेनेट) और मुनाफा (प्रॉफिट) पर ध्यान देना चाहिए। प्रधानमंत्री जी को अंग्रेजी के एक ही अक्षर से अनेक शब्दों को बताने की आदत है, और उस दिन तीनों शब्द अंग्रेजी में पी से शुरू हो रहे थे।

इसके पहले सीआईआई के संबोधन में चार-पांच शब्द अंगरेजी के आई से शुरू होने वाले बताये गए थे। जनता के बारे में मोदी सरकार स्वयं कितनी संवेदनशील है, इसका नजारा तो करोड़ों प्रवासी श्रमिकों के अपने घरों की वापसी के संघर्ष ने ही पूरी दुनिया को बता दिया।

दरअसल, प्रधानमंत्री जी और उनकी सरकार ने जनता की परिभाषा को ही बदल दिया है, अब उनकी परिभाषा में गरीब से लेकर मध्यमवर्गीय आबादी जनता है ही नहीं। जनता को सभी प्राकृतिक संसाधनों से भी लगातार बेदखल किया जा रहा है, और इन्हें पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है।

प्रकृति और पर्यावरण का नुकसान जितना इस सरकार ने किया है, उतना पहले की किसी सरकार ने नहीं किया, यहाँ तक की अंग्रेजों या मुग़लों ने भी इन्हें इतना नहीं लूटा। वर्ष 2014 से सत्ता में आने के बाद से ही लगातार पहले के पर्यावरण सम्बंधित कानूनों को खोखला करने का काम इस सरकार ने किया है। यह सिलसिला आज तक जारी है।

कोविड 19 के नाम पर जिस लॉकडाउन के तहत देश की पूरी आबादी को घरों में कैद कर दिया गया, उस समय भी केंद्र का पर्यावरण मंत्रालय इस कानूनों को खोखला करने में व्यस्त रहा और उन परियोजनाओं को पर्यावरण स्वीकृति देता रहा, जिनका आधार ही पर्यावरण विनाश है।

प्रधानमंत्री ने हाल में ही बताया है कि जलमार्ग के उपयोग से सामानों को भेजने से पर्यावरण का विनाश रुकता है, यह वक्तव्य ही उनके पर्यावरण की सोच जाहिर करता है। जलमार्ग पर जलयान चलाकर जलीय जीवन को आसानी से समाप्त किया जा सकता है और नदियाँ पहले से अधिक प्रदूषित होतीं हैं। जलपोतों से वायु प्रदूषण भी भारी मात्रा में होता है।

पूरी पूंजीवादी व्यवस्था केवल अपने मुनाफे के लिए ही काम करती है, और प्रधानमंत्री जी ने अपने वक्तव्य में मुनाफे को शामिल कर इस व्यवस्था पर अपने भरोसे को दुनिया को बता दिया है। मुनाफे की होड़ ही पूरी दुनिया में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई को और बढ़ा रही है – कोविड 19 के दौर में भी दुनिया के अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब और बेरोजगार भी। मुनाफे की इसी होड़ ने जनता और प्रकृति का विनाश किया है।

जाहिर है कि इस बार प्रधानमंत्री जी के प्रवचन उद्योगों को जरूर पसंद आये होंगे। जनता और प्रकृति के अत्याचार पर तो सरकार स्वयं चुप रहती है और मुनाफा तो पूंजीपतियों का जन्मसिद्ध अधिकार है। सरकार भी तो सभी संसाधनों को पूंजीपतियों को सौपकर उनका मुनाफा बढाने और जनता और प्रकृति को लूटने का इरादा जाहिर कर चुकी है।

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