Air India News : एयर इंडिया को प्राइवेट हाथों में बेचने का सपना मोदी सरकार में हुआ पूरा, 68 सालों बाद टाटा संस से सौदा
एयर इंडिया टाटा के हवाले (file photo)
जनज्वार, दिल्ली। सालों से एयर इंडिया का स्वामित्व हासिल करने की फिराक में लगे टाटा समूह का ये सपना भाजपा सरकार में पूरा हो ही गया। एयर इंडिया का स्वामित्व हासिल करने की दौड़ में टाटा ग्रुप ने स्पाइसजेट को पीछे छोड़ दिया। सूत्रों की मानें तो एयर इंडिया के मालिकाना हक के लिए स्पाइसजेट ने भी बोली लगाई थी, पर टाटा ने सबसे उंची बोली लगाई जिसके बाद सरकारी एयरलाइन कंपनी का स्वामित्व अब बहुत जल्द टाटा समूह के पास होगा।
हालांकि भारत सरकार या टाटा ग्रुप के तरफ से इसको लेकर कोई स्टेटमेंट नहीं आया है। सेक्रेटरी, निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग, दीपम (DIPAM) ने सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया विनिवेश मामले में कहा है कि भारत सरकार द्वारा वित्तीय बोलियों के अनुमोदन का संकेत देने वाली मीडिया रिपोर्ट गलत हैं। सरकार के निर्णय के बारे में मीडिया को सूचित किया जाएगा। लेकिन विश्वसनीय सूत्रों ने इस बात पर मुहर लगा दी है। उम्मीद जताई जा रही है इसकी अधिकारिक घोषणा जल्द की जाएगी और करोड़ों का घाटा झेल रहे एयर इंडिया के बोझ से भारत सरकार को आखिरकार छूटकारा मिल ही जाएगा।
सूत्रों की मानें तो टाटा संस ने एयर इंडिया को खरीदने के लिए करीब 3000 करोड़ रुपये की बोली लगाई है। टाटा समूह ने भारत सरकार की तरफ से तय किए गए मिनिमम रिजर्व प्राइस से भी अधिक की बोली लगाई है। अनुमान लगाया जा रहा है कि टाटा ने इतनी अधिक बोली इसलिए लगाई क्योंकि एयर इंडिया एक सरकारी असेट है और एयरलाइन की क्षेत्र में टाटा समूह लंबे वक्त से सफल होने की नाकामयाब कोशिश कर रहा है।
नमक से लेकर सॉफ्टवेयर की दुनिया तक अपने पैर मजबूत कर चुका टाटा ग्रुप किसी भी कीमत पर एयरलाइन्स की दुनिया में उंची उड़ान भरना चाहता है। लाख कोशिशों के बावजूद टाटा ग्रूप के स्वामित्व वाली विमानन कंपनी विस्तारा और एयर एशिया इंडिया टाटा के उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतर सके। दोनों कंपनी निवेशों के बावजूद लगातार घाटे में जा रही थी। वर्ष 2015 में शुरू हुई विस्तारा के सभी विमानों में बिजनेस क्लास केबिन की सुविधा थी। विस्तारा का लक्ष्य लंदन और न्यूयॉर्क के लिए अक्सर उड़ान भरने वाले अमीर भारतीय व्यापारियों को व्यक्तिगत उड़ान अनुभव के जरिए लुभाना था। लेकिन, दुनियाभर में जैसे-जैसे काम डिजिटली होने लगे वैसे ही लोगों ने विदेश यात्रा से दूरी बना ली। बांकी की कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी, जब लोग घर से बाहर निकलने पर भी तौबा करने लगे। ऐसे में महज 5 साल पुरानी एयरलाइंस विस्तारा को काफी नुकसान उठाना पड़ा। साथ ही टाटा समूह एयरलाइंस की दुनिया में सफल इसलिए भी नहीं हो पा रहा है क्योंकि उसके स्वामित्व वाली विस्तारा और एयर एशिया इंडिया के टॉप मैनेजमेंट या तो सिंगापुर या मलेशिया में है, जिससे भारत में व्यवसाय को पैर जमाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, टाटा समूह को अगर एयर इंडिया का स्वामित्व हासिल हो जाता है तो एयरलाइन एयर एशिया इंडिया और विस्तारा को संयुक्त इकाई के तहत लाने पर भी कंपनी विचार कर सकती है।
इसी बीच ब्लूमबर्ग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रिय मंत्रियों के एक पैनल ने एयरलाइन के अधिग्रहन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। तमाम मीडिया रिपोर्ट भी इस ओर इशारा कर रहे थे कि एयर इंडिया के अधिग्रहण में टाटा समूह सबसे आगे है। एयर इंडिया के पूर्व डायरेक्टर जितेंद्र भार्गव ने हाल ही में ब्लूमबर्ग टीवी को बताया था कि टाटा ग्रुप को सरकार की तरफ से हरी झंडी मिल सकती है, क्योंकि टाटा के पास ही यह क्षमता है कि वह घाटे में चल रही सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया को कर्ज से उबार सकें।
आपकों बता दें कि अगर भारत सरकार और टाटा समूह के बीच एयर इंडिया के सौदे पर मुहर लग जाती है तो विमानन कंपनी एयर इंडिया 68 साल बाद अपने पुराने मालिक के पास चली जाएगी। एक तरह से ये विमानन कंपनी की 'घर वापसी' होगी। बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि एयर इंडिया की शुरूआत टाटा समूह ने ही की थी। उद्योगपति जेआरडी टाटा ने टाटा एयरलाइंस के नाम पर अक्तूबर 1932 में एयर इंडिया की शुरुआत की थी। दूसरे विश्व युध्द के बाद 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस का नाम बदलकर एयर इंडिया लिमिटेड कर दिया गया। आजादी के बाद देश को एक राष्ट्रीय एयरलाइंस की जरूरत महसूस हुई। फिर 1947 में भारत सरकार ने टाटा समूह के एयर इंडिया एयरलाइंस की 49 फिसदी भागीदारी अपने अधीन ले ली। वर्ष 1952 में जब 9 निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया तो एयर इंडिया भी उनमें से एक था।
लेकिन, भारत सरकार के अधीन दो एयरलाइंस कंपनी धीरे धीरे कर्ज में डूबते चली गई। सरकार के स्वामित्व वाली इंडियन एयरलाइन्स का 2007 में एयर इंडिया के साथ विलय कर दिया गया। बावजूद इसके कोई फायदा नहीं हुआ। आंकड़ों की मानें तो 31 मार्च 2019 तक वीमानन कंपनी एयर इंडिया पर 60,074 करोड़ रुपये का कर्ज था। मार्च 2021 को समाप्त तिमाही में कंपनी को करीब 10000 करोड़ रुपये के घाटे में रहने की आशंका है।
आपको बता दें कि भारत सरकार द्वारा एयर इंडिया को बेचने की प्रक्रिया जनवरी 2020 में ही शुरू कर दी गई थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस विचार को बार बार टाला जा रहा था। फिर अप्रैल 2021 में सरकार ने निजी कंपनियों से बोली लगाने को कहा। एयर इंडिया के स्वामित्व को लिए बोली लगाने का आखिरी दिन 15 सितंबर तय था। इससे पहले साल 2020 में भी टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया को खरीदने को लेकर रुचि पत्र दिया था। भारत सरकार ने कंपनियों को एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट के नियमों में ढील दी थी जिसके बाद करोड़ों के कर्ज में डूबे एयर इंडिया को खरीदने के लिए कुछ कंपनियां आगे आईं। नए नियमों के तहत कर्ज के प्रावधानों में नरमी बरती गई ताकि स्वामित्व वाली कंपनी को पूरा कर्ज न चुकाना पड़े। आपको बता दें कि एयर इंडिया खरीदने के बाद टाटा समूह को कर्ज के 23,286.5 करोड़ रुपये भी चुकाने होंगे। बाकी बचे कर्ज के पैसे को एयर इंडिया एसेट होल्डिंग्स लिमिटेड को ट्रांसफर कर दिया जाएगा। जिसका मतलब है कि बाकी का कर्ज का बोझ भारत सरकार खुद उठाएगी।
वहीं, इकोनॉमिक्स टाइम्स को नाम न छापने की शर्त पर एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि सरकार द्वारा मिनिमम रिजर्व प्राइस का निर्णय कंपनिया द्वारा बोली लगाए जाने के बाद तय किया गया। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बोली लगाने वालों को पहले से आरक्षित मूल्य के बारे में पता न चले। आरबीएसए के मूल्यांकन सलाहकार और ईवाई के लेनदेन सलाहकार द्वारा मंगलवार को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली सचिवों की समिति के समक्ष एक प्रस्तुति के बाद आरक्षित मूल्य का फैसला किया गया था।
उक्त अधिकारी ने ही बताया कि एयर इंडिया के लिए बोली लगाने वाली दोनों कंपनी को बुधवार को सरकार के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में एक शेयर खरीद समझौता (एसपीए) दिया गया था। गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाली समिति द्वारा विजेता चुनने के बाद अधिकारिक तौर पर विनिवेश की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इस पैनल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं।