गुजरात के इशरत जहां केस से जुड़े IPS सतीश चंद्र को हटा रहा था गृह मंत्रालय, कोर्ट ने लगा दी रोक, वर्मा पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
गुजरात के इशरत जहां केस से जुड़े आईपीएस सतीश चंद्र को हटा रहा था गृहमंत्रालय, कोर्ट ने लगा दी रोक, वर्मा पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। गुजरात ( Gujrat ) के इशरत जहां एनकाउंटर केस ( Ishrat Jahan Case ) से जुड़े भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा ( IPS Satish Chandra Verma ) की की बर्खास्तगी के खिलाफ उनकी ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ( Delhi High Court ) ने रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय ( Union Home Ministry ) को 19 सितंबर तक बर्खास्तगी को लागू नहीं करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने अपने स्टे में साफ कहा है कि इस दौरान वर्मा राहत पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) का दरवाजा खटखटा सकेंगे। दिल्ली हाईकोर्ट से खुद की बर्खास्तगी पर रोक के तत्काल बाद आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा ने गृह मंत्रालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है।
आईपीएस अधिकारी एससी वर्मा ( IPS Satish Chandra Verma ) 30 सितंबर को रिटायर होने वाले हैं लेकिन उनके रिटायरमेंट से एक माह पहले यानि 30 अगस्त को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उन्हें बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया। वर्मा 1986 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं। गुजरात में इशरत जहां ( Ishrat Jahan Case ) के कथित फेक एनकाउंटर की जांच में सीबीआई ( CBI ) की भी सहायता सीनियर आईपीएस अधिकारी वर्मा ने की थी। वह 30 अगस्त को ही उनकी बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया। बता दें कि बर्खास्तगी आदेश के प्रभावी होने के बाद सतीश चंद्र वर्मा पेंशन और अन्य लाभ नहीं पा सकेंगे।
Gujrat Ishrat jahan Case : ये है आईपीएस वर्मा से जुड़े मामले का पूरा इतिहास
दरअसल, आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा ( IPS Satish Chandra Verma ) का नाम देश और दुनिया में चर्चित इशरत जहां मुठभेड़ की जांच से जुडा है। इस मामले में आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने सीवीसी रहते मीडिया से बात की। केंद्रीय गृह मंत्रालय की जांच कमेटी के मुताबिक जब वह नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन के मुख्य सतर्कता अधिकारी थे तो उन्होंने सार्वजनिक मीडिया के साथ बातचीत की और उसके लिए नीपको परिसर का दुरुपयोग किया।
इसके अलावा वर्मा पर इशरत जहां ( Ishrat jahan Case ) के कथित फेक एनकाउंटर में जांच अधिकारी के रूप में सबूतों के साथ छेड़छाड़ का आरोप है। वर्मा पर आरोप है कि एसआईटी सदस्य के रूप में वर्मा ने इशरत जहां एनकाउंटर की जांच की थी। उस दौरान उन्होंने कथित तौर पर मुठभेड़ से जुड़े कई सबूत छिपाने में मदद की थी।
गुजरात सरकार ने फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला से एक हार्ड डिस्क को जब्त करने के लिए उनके खिलाफ जांच शुरू की थी, जिसमें कथित तौर पर मुठभेड़ से संबंधित सबूत थे।
इन मामलों में रिष्ठ आईपीएस अधिकारी को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से राहत नहीं मिली। गुजरात हाईकोर्ट द्वारा मुठभेड़ की जांच के लिए गठित विशेष जांच दलके सदस्य रहे आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ पद के दुरुपयोग सहित विभिन्न आरोपों में सरकार ने तीन विभागीय जांच शुरू की थी। साथ ही सरकार ने वर्मा पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। इनमें इशरत जहां मुठभेड़ मामले को लेकर मीडिया में बयान देकर सरकार की छवि खराब करने का भी आरोप है।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस एलएन रेड्डी और सदस्य एके बिशनोई की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई के खिलाफ 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी वर्मा की ओर से दाखिल तीनों याचिकाओं को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा है कि मामले से जुड़े तथ्यों और इस तरह के मामलों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय सिद्धांतों के मद्देनजर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
कैट ने एससी वर्मा की उन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले की जांच रिपोर्ट प्रशासन को पसंद नहीं आई और इसकी वजह से गुजरात के तत्कालीन सत्ताधारी दल जब केंद्र में सरकार में आया तो उनके खिलाफ इन आरोपों में जांच शुरू की। केंद्र सरकार ने वर्मा को अक्तूबर 2014 में उत्तर-पूर्वी इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन में मुख्य सर्तकता अधिकारी नियुक्त किया था।
इसके बाद गृह मंत्रालय ने अगस्त 2018 में सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ आरोप.पत्र जारी किया। इसमें उन पर 23 मार्च 2016 को उत्तर-पूर्वी इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन के गुवाहाटी स्थित परिसर में मीडिया चैनल को साक्षात्कार देने और इसमें इशरत जहां मुठभेड़ को लेकर बयान देने का आरोप लगाया। साथ ही कहा कि इसकी वजह से राज्य व केंद्र सरकार को बेवजह आलोचना का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं, मुठभेड़ की जांच सहित इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामा की जानकारी साझा करने का भी आरोप है।
सीआरपीएफ के महानिदेशक ने भी सितंबर 2018 में वर्मा के खिलाफ विभिन्न आरोपों में आरोप-पत्र जारी किया और विभागीय जांच शुरू की। मई 2016 में भी वर्मा के खिलाफ आरोप-पत्र जारी किया गया। उन पर आरोप लगाया गया है कि उत्तर-पूर्वी इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन में सीवीओ रहते हुए सीएमडी की अनुमति के बगैर उन्होंने ऐसी जगहों का दौरा किया जहां कार्यालय का कोई काम नहीं था। जांच रिपोर्ट सीएमडी को नहीं सौंपने, कार्यालय के काम के बगैर विभिन्न जगहों का दौरा कर सरकारी खजाने पर साढ़े 8 लाख रुपए से अधिक का नुकसान कराने जैसे कई आरोप लगाए गए।
जुलाई 2021 में न्यायाधिकरण ने केंद्र सरकार से कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता वर्मा सेवानिवृत होने वाले हैं ऐसे में वह चार माह के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई को पूरा करे। न्यायाधिकरण ने यह भी कहा है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई में जो भी परिणाम आता है याचिकाकर्ता उसके खिलाफ उचित मंच यानि न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
इसके बाद आईपीएस एससी वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लगभग एक साल तक सतीश चंद्र वर्मा को हाईकोर्ट की ओर से संरक्षित किया गया। हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह अनुशासनात्मक कार्रवाई पर त्वरित कदम नहीं उठाएगी। केंद्र सरकार ने 1 सितंबर से बर्खास्तगी आदेश लागू करने की मांग करते हुए एक आवेदन किया था। इस बीच केंद्र की ओर से बयान जारी किया गया कि कार्यवाही समाप्त हो चुकी है और कोर्ट ने फाइनल ऑर्डर पारित करने की इजाजत दी है जिसका कार्यान्वयन कोर्ट के आदेश तक अंतिम रूप से लागू नहीं होगा।
7 सितंबर को हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को बर्खास्तगी का आदेश लागू करने की अनुमति दे दी लेकिन यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को 19 सितंबर तक मोहलत दी जाए ताकि वह कानून के हिसाब से आदेश के खिलाफ विकल्प देख सके। इसके बावजूद बर्खास्तगी का आदेश जारी पर दिल्ली हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय के आदेश पर रोक लगा दी। उसके बाद आईपीएस एससी वर्मा ने गृह मंत्रालय के आदेशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।