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हत्या के जुर्म में 14 साल जेल में बिता चुके शख्स को किया गया बरी, इलाहाबाद कोर्ट ने कहा झूठा था आरोप

Janjwar Desk
6 March 2021 11:49 AM GMT
हत्या के जुर्म में 14 साल जेल में बिता चुके शख्स को किया गया बरी, इलाहाबाद कोर्ट ने कहा झूठा था आरोप
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कोर्ट ने कहा शायद आरोपियों से दुश्मनी के कारण चार्जशीट दाखिल की गई, लेकिन फायर करने के आरोपी मुकेश का कोई संबंध ही नहीं था....

​जनज्वार, इलाहाबाद। पिछले दिनों यूपी से एक ऐसे शख्स की कहानी सामने आयी थी, जिसने दलित महिला के बलात्कार के जुर्म में जेल में 20 साल बिता दिये थे और बाद में पता चला कि उस पर झूठा आरोप लगा दिया गया था। अब ऐसा ही एक मामला यूपी से ही फिर सामने आया है, जहां हत्या के जुर्म मेुं 14 साल सलाखों के पीछे रह चुके शख्स को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है।

मीडिया में आई जानकारी के मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी मुकेश तिवारी को लगभग 14 साल जेल में बिताने के बाद बरी कर दिया है। कोर्ट ने मुकेश के अलावा दो अन्य आरोपियों इंद्रजीत मिश्र और संजीत मिश्र को भी बरी कर दिया है। हालांकि ये दोनों पहले से ही जमानत पर थे।

तीनों हत्यारोपियों को निर्दोष ठहराते हुए कोर्ट ने कहा कि घटना के समय चश्मदीद गवाहों की मौजूदगी संदेहास्पद है, इसलिए उन्हें निर्दोष मानते हुए बरी किया जाता है।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा, साथ ही सत्र न्यायालय ने साक्ष्यों को समझने में गलती की है। यह निर्णय न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति एसके पचौरी की खंडपीठ ने मुकेश तिवारी, इंद्रजीत मिश्र व संजीत मिश्र की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया।

अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि प्रताप शंकर मिश्र व उनकी पत्नी मनोरमा देवी घर पर कमरे में सोये थे। दो भाई बरामदे में सोये थे। पत्नी मनोरमा देवी ने कहा कि आरोपी हॉकी, चाकू व पिस्टल लेकर आए और हमला कर दिया, जबकि अब कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में शरीर पर हॉकी की चोट के निशान नहीं हैं। गोली गले में लगी है। यही नहीं पत्नी समेत अन्य चश्मदीद के कपड़ों पर खून नहीं है।

तब आरोप लगाया गया था कि हमलावर शोर सुनकर बाउंड्री कूदकर भाग गए, मगर सवाल यह उठा कि किसी ने आरोपियों को पकड़ने की कोशिश क्यों नहीं की और बाउंड्री कूदकर भागते भी किसी ने उन्हें क्यों नहीं देखा। कोर्ट ने कहा गवाहों की इस दलील से लगता है कि चश्मदीद गवाह हत्याकांड के बाद वहां पहुंचे। घायल को गाड़ी से रेवती थाने ले गए और मजरूबी चिट्ठी लिखी गई। मजरूबी चिट्ठी कब किसने लिखी, यह स्पष्ट नहीं हो पाया। केवल साथ गए चश्मदीद के हस्ताक्षर सही पाए गए थे। फिर घायल को बलिया सदर अस्पताल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।

गौरतलब है कि मृतक की पत्नी मनोरमा देवी के अलावा अन्य चश्मदीद गवाहों को कोर्ट में पेश ही नहीं किया गया था। कोर्ट ने कहा कि शायद आरोपियों से दुश्मनी के कारण चार्जशीट दाखिल की गई, लेकिन फायर करने के आरोपी मुकेश का कोई संबंध ही नहीं था।

सामने आया कि मुकेश तिवारी का मृतक प्रताप शंकर मिश्र की दूसरे को बेची गई जमीन खरीदार से खरीदना चाहता था। उसका उनसे कोई झगड़ा भी नहीं था।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले में प्राथमिकी देरी से दर्ज हुई थी, जबकि पीड़ित दो बार थाने गए, अस्पताल जाते समय और अस्पताल से लौटते समय वे एफआईआर दर्ज करा सकते थे। इसके अलावा मजरूबी चिट्ठी लिखे जाने का दिन व समय स्पष्ट नहीं हो पाया है और बयान भी विरोधाभाषी है। आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं है, हत्या की काल्पनिक कहानी गढ़ी गई।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हत्याकांड की घटना की कई संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। हो सकता है मृतक प्रताप शंकर मिश्र बरामदे में चारपाई पर सोए हों और घायल होने पर कमरे की तरफ भागे हों तथा कमरे में खून गिरा हो। दोनों भाई आंगन के बरामदे में सोए थे या सहन के बरामदे में, स्पष्ट नहीं हो पाया। हो सकता है, वे बाद में आए हों। पत्नी व भाई के कपड़े पर खून न होने से लगता है चश्मदीदों ने घायल प्रताप शंकर मिश्र को छुआ तक नहीं। ऐसा कैसा हो सकता है कि एक घायल इंसान तड़प रहा हो और उसकी पत्नी और भाई खड़े-खड़े देखते रहें। कोर्ट ने कहा विचारण न्यायालय ने शायद इन बिंदुओं पर विचार ही नहीं किया और सजा सुना दी। कोर्ट ने सत्र न्यायालय की सजा रद्द करते हुए हत्या के जुर्म की सजा काट रहे आरोपियों को बरी करने का निर्देश दिया।

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