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रामदेव मोदी सरकार को सौंपें उन 1000 डॉक्टरों की लिस्ट, जिनकी वैक्सीन लगने के बाद हुई मौत, ताकि परिजनों को मिले मुआवजा

Janjwar Desk
25 May 2021 4:33 PM GMT
रामदेव को हाईकोर्ट की कड़ी फटकार - आयुर्वेद के नाम पर लोगों को गुमराह करना बंद करो
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रामदेव को हाईकोर्ट की कड़ी फटकार - आयुर्वेद के नाम पर लोगों को गुमराह करना बंद करो

सरकार की प्राथमिकता बस एक थी, कोई भी कोविड 19 के भारतीय नए संस्करण को इंडियन वैरिएंट न कहे, कोविड गोबर से ठीक होता है, गौमूत्र से ठीक होता है, कोरोनिल से ठीक होता है, हनुमान चालीसा पढ़ने से ठीक होता है या फिर आप एलोपैथी पर लगातार सवाल उठा सकते हैं – बस आप इसे इंडियन वैरिएंट नहीं कह सकते...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। हमारे देश में कोविड 19 का दौर सरकार ने एक भद्दे चुटकुले जैसा हास्यास्पद बना दिया है। पहले दौर में शुरू की गयी लीपापोती और आंकड़ों की बाजीगरी अभी तक जारी है। दरअसल, यही पूंजीवाद है, पूंजीवाद हमेशा कट्टरपंथियों और छद्म राष्ट्रवादियों को सत्ता में पहुंचाता है और फिर जनता को बस मरना होता है।

हमारे देश में तो यह सब और भी स्पष्ट है, याद कीजिये कोविड 19 का पहला दौर, जब सैकड़ों लोग रास्ते में ही मर गए। इसके बाद इस वर्ष दूसरा दौर आया, जिसमें हजारों लोग सुविधाओं के अभाव में मर गए। विश्वगुरु हरेक दिन जनता की मौत के आंकड़ों में अपने ही रिकॉर्ड तोड़ता रहा। हरेक मौत सबके लिए दुखद नहीं होती और इस सरकार के लिए तो कतई नहीं। नदियाँ और नदी किनारे लाशों से भर गए, श्मशान और कब्रिस्तान लाशों से भर गए – यह सरकार के लिए आपदा में अवसर है। वर्तमान हालात को देखकर अब कम से कम जनता और मीडिया की याददाश्त से पिछले वर्ष की प्रवासी मजदूरों की तस्वीर हट गयी।

यकीन मानिये, जब कोविड 19 की अगली लहर आयेगी तब इससे भी बुरी हालत हमारे सामने होगी और हम आज के दौर की सारी तस्वीर भूल जायेंगे। क्या आपको इस सरकार ने कभी भी एक छोटी भी समस्या का हल दिया है? इस सरकार के पास हरेक समस्या का हल एक ही होता है – पहले से भी बड़ी समस्या से जनता को घेर दो, जाहिर है इसके बाद पहले की समस्याएं फीकी पड़ने लगेंगी। यही सत्तालोभी शासकों की परिपाटी है।

दूसरी लहर के समय जब पूरा देश हरेक समस्या से जूझता रहा, सरकार की प्राथमिकता बस एक थी – कोई भी कोविड 19 के भारतीय नए संस्करण को इंडियन वैरिएंट न कहे। आपको कहना है तो कह सकते हैं – कोविड 19 गोबर से ठीक होता है, गौमूत्र से ठीक होता है, कोरोनिल से ठीक होता है, हनुमान चालीसा पढ़ने से ठीक होता है या फिर आप एलोपैथी पर लगातार सवाल उठा सकते हैं – बस आप इसे इंडियन वैरिएंट नहीं कह सकते। सरकार शायद कहना चाह रही है, यदि इसे यह नाम नहीं देते तो कोविड 19 की दूसरी लहर आती ही नहीं। सरकार की नज़रों में कोविड 19 भारतीय संस्करण एक पालतू कुत्ते जैसा है, जिसे पुकारते ही सामने आ गया।

सरकार का यह रवैया यूके, साउथ अफ्रीकन और ब्राज़ालियन वैरिएंट के बारे में नहीं है। इसी वर्ष 16 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एक ट्वीट किया था, 'RTPCR Tests being used in India DON'T miss UK, Brazil, SA & Double Mutant #coronavirus varients.'

जनवरी के शुरू में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफ़ेसर कृष्णास्वामी विजय राघवन ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि, "मैं जानता हूँ कि लोगों के मन में शंकाएं हैं, पर वायरस में आया बदलाव उतना प्रभावी नहीं है कि वह वैक्सीन को बेअसर कर दे। वैक्सीन से शरीर में अनेक प्रकार के एंटीबॉडीज बनते हैं जिनसे रोग-प्रतिरोधक तंत्र मजबूत होता हैI ऐसा अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है जिससे स्पष्ट हो कि वर्तमान भारतीय वैक्सीन यूनाइटेड किंगडम और दक्षिण अफ्रीकी नए वैरिएंट के विरुद्ध असफल रहेंगीं।"

30 मार्च को आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा था, देश में अब तक 11064 नमूनों की जीनोमिक सिक्वेंसिंग की गयी है, जिसमें 807 मामले यूके वैरिएंट के, 47 मामले साउथ अफ्रीकन वैरिएंट के और एक मामला ब्रज़िलियन वैरिएंट का था। टीवी डिबेट में बैठे बीजेपी प्रवक्ता भी लगातार इन वैरिएंट की चर्चा कर रहे थे। यकीन रखिये, जैसे ही हम इंडियन वैरिएंट लिखना बंद करेंगें, कोविड 19 देश छोड़कर भाग जाएगा।

पिछले वर्ष तक भारत सरकार कोविड 19 के कम्युनिटी स्प्रेड को नकारती रही थी, अभी तो यह भी नहीं पता है कि 3 लाख से अधिक मौतों (वास्तविक आंकड़े कई गुना अधिक है) के बाद भी सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसे स्वीकार किया है भी या नहीं। जिस तरह से कंगना रानौत ने एक ट्वीट कर गुजरात के 2002 दंगों में शामिल लोगों की याद ताजा करा दी थी, उसी तरह से पूंजीपति रामदेव ने भी एक हालिया वीडियो क्लिप में कम से कम ये तो बता ही दिया है कि देशभर में इस वर्ष फरवरी से अबतक 1000 से अधिक चिकित्सकों की मौत हो चुकी है।

इस वीडियो क्लिप में रामदेव कहते हैं कि वैक्सीन की डबल डोज लेने के बाद भी देश में 1000 से अधिक डॉक्टर मर चुके हैं। जाहिर है, रामदेव पिछले वर्ष होने वाली मौतों की बात नहीं कर रहे हैं। वैक्सीन जनवरी से शुरू की गयी थी और जिन्होंने शुरू में ही वैक्सीन ली होगी उन्हें दूसरे डोज़ फरवरी में दी गयी होगी – इसलिए वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी 1000 से अधिक डौक्टर मर चुके हैं, यह वक्तव्य फरवरी से अब तक के बीच का ही आंकड़ा बतायेगा।

आईएमए के अनुसार दूसरी लहर में अब तक 420 चिकित्सकों की मृत्यु दर्ज की गयी है। ऐसी मौतों के सन्दर्भ में सबसे आगे 100 मौतों के साथ दिल्ली है। इसके बाद बिहार में 96, उत्तर प्रदेश में 41, गुजरात में 31, आंध्र प्रदेश में 26 और तेलंगाना में 20 मौतें दर्ज की गयी हैं। रामदेव को उन अतिरिक्त 580 मौतों के बारे में जरूर बताना चाहिए।

वैसे भी रामदेव जो कहते हैं, वह सरकारी वक्तव्य ही तो है। रामदेव को हरेक सरकारी आयोजन में बुलाया जाता है, और रामदेव के किसी आयोजन में रामदेव के साथ केन्द्रीय मंत्री, विशेष तौर पर दुनिया के सबसे निकम्मे स्वास्थ्य मंत्री जरूर नजर आते हैं। राम मंदिर शिलान्यास की वीडियो देखिये – जब उत्तर प्रदेश में मास्क नहीं पहनने पर आम जनता पर लाठियां बरसाई जा रहीं थीं और करोड़ों रुपये वसूले जा रहे थे, तब रामदेव मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के करीब बिना मास्क के ही बैठे थे।

दूसरी तरफ जब कोरोनिल को रामदेव रीलॉंच कर रहे थे, तब एक तरफ हर्षवर्धन और दूसरी तरफ नितिन गडकरी खड़े थे और तालियाँ बजा रहे थे। प्रधानमंत्री समेत पूरी सरकार इसी तरह हरेक मौत पर तालियाँ बजाती है, पर इस बार तालियाँ बजाते-बजाते हाथ भी थक गए होंगे। रामदेव को उन 1000 से अधिक चिकित्सकों की लिस्ट सरकार को देनी चाहिए, जिससे सरकार उन्हें मुवावजा तो दे सके, वरना आईएमए की लिस्ट पर तो मुवावजा मिलता नहीं। रामदेव यदि मृतक चिकित्सकों की सूची सरकार को नहीं देना चाहते, तो एक खुले पत्र के माध्यम से भी बता सकते हैं जैसा वे आजकल सवालों के लिए कर रहे हैं।

किसी भी समस्या का समाधान करने के अनेक तरीके होते हैं – समस्या समझकर उसका विशेषज्ञों से गहन विमर्श कर समाधान खोजना, इसकी कल्पना हमारे देश में तो की ही नहीं जा सकती। दूसरा तरीका है, सरकार समस्या से उदासीन रहे, समाधान का कोई कदम नहीं उठाये और जनता को समस्या से खुद लड़ने दे – दुखद यह है की हमारी सरकार ने यह भी नहीं किया, वर्ना हम बेहतर स्थिति में होते। पूंजीवादी, राष्ट्रवादी और दक्षिणपंथी समाधान है – समस्या को और विकराल करते जाना और मौतों पर अट्टाहास करना, फिर कैमरे के सामने जाकर आंसू बहाने का अभिनय करना। हमारे देश में, जो दुर्भाग्य से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, यही किया गया है।

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