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Ground Report : सत्ता की रैलियों में एक साल पहले उजाड़े गये गणेश प्रतिमा के मूर्तिकार, जानिए दूसरे रामराज्य में क्या है उनका हाल !
Ground Report : सत्ता की रैलियों में एक साल पहले उजाड़े गये गणेश प्रतिमा के मूर्तिकार, जानिए दूसरे रामराज्य में क्या है उनका हाल !
मनीष दुबे की ग्राउंड रिपोर्ट
Ground Report : नोएडा में ट्विन टॉवर्स ध्वस्त कर दिये गये। गोदी मीडिया के लीजेंड्स को दो-तीन दिन का मसाला मिल गया। विडंबना देखिये की लाखों करोड़ रूपया भष्म होने के बाद लोग ताली पीटते दिखे। खैर यह दुनियादारी है। चलती रहती है। कल उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या कानपुर आय़े थे। उन्होने यहां के साकेत नगर स्थित निराला नगर रेलवे ग्राउण्ड के बगल की एक दुकान से गणेश प्रतिमा खरीदी। साथ में तमाम लोकल नेता भी थे। हो सकता है किसी स्थानीय नेता ने उन्हें यह बताया हो कानपुर में एक तिहाई आबादी गणेश भक्त है, जिसके चलते केशव मौर्या ने मूर्ति खरीदी हो। गणेश भक्तों में जनाधार बढ़ाने के लिए।
केशव प्रसाद मौर्या द्वारा भगवान गणेश की मूर्ति खरीदना कोई बड़ी बात नहीं है, बल्कि बड़ी बात यह की केशव प्रसाद मौर्या ने जहां जिससे गणेश प्रतिमा खरीदी उन्हें बीते वर्ष विधानसभा चुनाव 2022 से पहले परिवार समेत उजाड़ दिया गया था। यह रिपोर्ट आपको भले किसी ने न दिखाई हो, लेकिन जनता की मीडिया जनज्वार ने इस पर ग्राउण्ड रिपोर्ट कर मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। इस ग्राउण्ड में एक के बाद एक कई रैलियां हुईं और भाजपा फिर से सत्ता में काबिज हो गई। उम्मीद थी की इन या यूपी में इन जैसे अन्य गरीबों की जिंदगी बहाल होगी।
कल शनिवार 27 अगस्त जब केशव मौर्या का काफिला यहां रूका तो गरीबों, मजदूरों और मूर्तिकारों में उत्साह देखा गया, लेकिन उनके जाते ही बरसात के उफनाए नाले की तरह धीरे-धीरे सब बह गया। केशव मौर्या ने यहां जिस दुकान से मूर्ति खरीदी थी, हमने उससे भी मुलाकात की। पूछा की कितने की मूर्ति खरीदी? तो अपना नाम आकाश गौतम बताकर कहा गया 400 रूपये की। हालांकि केशव मौर्या ने 400 वाली मूर्ति की कीमत दुकानदार आकाश को 1000 रूपये देकर चुकाई। आखिर सरकारी विजिट थी, तो हो सकता है यह व्यय सरकारी मद में ट्रांसफर हो जाए। जाता ही क्या है।
हमने आकाश से आगे पूछा कि डीसीपी साउथ कार्यालय से लेकर दीप तिराहे तक बने आशियाने जो एक साल पहले उजाड़े गये थे, क्या उप मुख्यमंत्री साहब ने उनकी बसावट के लिए कोई आश्वासन दिया है। जिसपर आकाश ने हमें बताया, 'जब उनका काफिला यहां रूका तो हम लोग डर गये थे। लगा कि कहीं ये लोग हमें दुकान खाली करने या भगाने के लिए तो नहीं आए हैं। लेकिन उनने जब दुकान में आकर हमें बुलाया और एक मूर्ति का दाम पूछा तब शरीर में सांस आई। मूर्ति लेकर उनका काफिला चला गया। बाकी किसी को बसाने या अन्य कोई आश्वासन देकर नहीं गये हैं।'
हमें कुछ वो लोग भी यहां मिले जिनसे पिछली बार उजड़ते समय मुलाकात हुई थी। बुजुर्ग राजू रामसनेही मूर्तिकार ने हमसे बात करते हुे कहा, 'कल आए तो थे हमें नहीं पता कौन थे। लेकिन भइया अब हमें इनसे एक पैसे का भरोसा नहीं है कि हमारे लिए कुछ किया भी जाएगा। जब झोपड़िया हटवाई गईं थी तब कहा था कि सबको पक्का मकान दिया जाएगा, लेकिन पूरी सर्दी और बरसात कभी इस कोने तो कभी पेड़ के नीचे परिवार को छुपाकर काट दी। भाजपा को ही वोट दिया दिया था। लगा कि जीतकर कुछ करेंगे लेकिन हम और गड्ढे में चले गये।'
यहीं के मूर्तिकार हरिकृष्ण हमें बताते हैं कि, 'वे यहां 15 से अधिक वर्षों से गणेश महोत्सव के समय मूर्ती की दुकान लगाते हैं। कभी दिवाली में गणेश लक्ष्मी की मूर्ती भी लगा लेते हैं। लेकिन पिछले साल यहां से सबको हटा दिया गया। हमें यह कहकर हटाया गया था कि सभी को स्थानीय व्यवस्था कराई जाएगी। स्थानीय तो हुई नहीं और ना ही वे लोग दुबारा नजर आए जिन्होंने आश्वासन ही दिया था। गनीमत यही है कि स्थानीय प्रशासन ने हमें विसर्जन वाले दिन तक यहां अस्थाई तौर पर मूर्ती लगाने का आदेश दिया। अन्यथा मुश्किल हो जाती। कुल मिलाकर ये सरकार की नाकामी को दर्शाता है।'
बुजुर्ग महिला बिरजू नातिन मुन्नी के साथ बैठकर कस्टुमर की राह देख रही थीं। कोई आता तो कांखने की आवाज के साथ उठकर खड़ी हो जाती हैं। घर के बाहर टांगने वाले काले-काले भूतनुमा नजर काटने वाले स्टेच्यू बेचती मिलीं। पूछने पर कहती हैं, 'का करें भईया बहुत परेशानी होती है। गरीब की सुनने वाला कोई नहीं। उनने हमसे सवाल दागा की कल नहीं आये थे। कल तो नेता साहब आए थे। बहुत फोटो खींचने वाला आया था। जिसपर हमने उन्हें बताया कि हम सब बढ़िया-बढ़िया नहीं लिख छाप पाते इसलिये नहीं आये थे। कल हम आपसे मिल भी नहीं पाते, जिसपर वो बोलीं हां या बात तौ ठीक काहत हौ।'
हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी। बाहर रखी आदमकद गणेश प्रतिमाओं को त्रिवेणी दौड़-दौड़कर पन्नियों से ढ़क रहा था। मूर्तियों को ढ़कने के बाद उसने जनज्वार से बात करते हुए कहा, 'ऐसेही खुले आसमान के नीचे पन्नी डालकर परिवार पाल रहे। अब आप ये बताओ क्या हम पाकिस्तान या अफगानिस्तान से आये हैं। हैं तो इसी देश के रहने वाले। इस सरकार की जिम्मेदारी है हमें पालने की। लेकिन ये लोग वोट लेने के समय आते हैं और वोट लेने के बाद काम निकालकर निकल लेते हैं। दुबारा सामने से निकलते हुए कसम है जो रूक भी जाएं। भईया जनता को मूर्ख बनाने का जमाना अब बहुत ताकत से आगे बढ़ रहा है।'
रैलियों के समय जो पार्क सजाया संवारा गया था वह अब फिर से बदबूदार हो चुका है। जब पहले यहां बसावट थी तो कुछ बहुत साफ हो हुवा जाता था, लेकिन अब अनदेखी का शिकार है। त्रिवेणी बताता है, 'इस ग्राउण्ड में रात बिरात मर्डर तक हो जाता है। हम लोग पहले रहते थे तो कुछ जनशर रहती थी। अब सून हो गया है। हम लोग अब सस्ता मद्दा किराये का मकान लेकर रहने लगे। 31 तारीख को जब हम लोग दुकाने हटा लेंगे तो यहां और सूनसान हो जाएगा। फिर तो और अपराध होगा। बाकी पुलिस तो आप देख ही रहे हैं।' त्रिवेणी ने कुछ दूर बने डीसीपी कार्यालय की तरफ इशारा करते हुए हमसे कहा।
कहावत है कि 'गरीब के सुख का कोई मौसम नहीं होता।' उनका सुख तो उनकी मेहनत मजदूरी में निहित रहता है। इसी किसी गणेश प्रतिमा या होली दिवाली का वक्त होता है जब फुटपाथ पर बैठकर 4 पैसे कमा खा लेते हैं। लेकिन अब उन्हें यहां से उजाड़ देने के बाद मजदूरी भी काफी अधिक मुश्किल भरी हो गई है। मूर्ति के लिए पंडाल बनाना। फिर देर रात तक जागकर मूर्ति निर्माण, देखरेख और दिन में ग्राहकों का इंतजार तकलीफ देह हो चुका है। उसके बाद विसर्जन वाले दिन फिर से अपने अपने पंडालों को समेटकर जाना बेहद थकाने वाला होता है। लेकिन इन मजबूर, मजदूरों मूर्तिकारों को यह भी समझना होगा कि जिनकी कार का दरवाजा तक खोलने के लिए खाता पीता मुलाजिम लगा हो उनका भला उनकी किल्लत भरी जिंदगी से क्या राब्ता।