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Ground Report : बर्बादी के बाद अब जिन्दगी की जद्दोजहद में रमने की कोशिश करते चुकुम गांव के लोग
भारी बरसात के बाद मची तबाही के बाद जिंदगी को वापस पटरी पर लाने की कोशिश करते चुकुम गांव के लोग
चुकुम गांव से लौटकर सलीम मलिक की रिपोर्ट
Ground Report Uttarakhand Flood। नैनीताल जिले (Nainital) की रामनगर तहसील का दुर्गम चुकुम गांव आपदा का हफ्ता गुजरते-गुजरते अब लड़खड़ाते हुए अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करने लगा है। पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक लोगों की चहलकदमी का समापन आपदा के एक हफ्ते बाद गांव पहुंचे स्थानीय भाजपा विधायक (BJP MLA) के साथ हो चला है। फौरी मदद के तौर पर सरकार की तरफ से मकान बहने वाले ग्रामीणों को 3,800 रुपये का मुआवजा दिया जा चुका है। बिजली विभाग ने कई दिन की मशक्कत के बाद गांव की बिजली बहाल कर दी है, जिससे ग्रामीणों के घर दीपावली की रात कुछ उजियारा हो सके।
हर मौसम में कोसी नदी (Kosi River) की धारा को पैदल ही पार कर चुकुम गांव (Chukum Village) पहुंचने की शर्त वाले इस गांव का इन दिनों उफनाई कोसी नदी की बाढ़ के कारण 'पैदल कोसी नदी पार करने' वाला अध्याय भी बंद होने के कारण गांव जाने के लिए इलाके में एडवेंचर एक्टिविटीज़ चलाने वाले ढिकुली निवासी दीप गुणवंत की राफ्ट ही इन दिनों एक मात्र सहारा बनी हुई है। कांग्रेस के रणजीत रावत हों या नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, स्वास्थ्य विभाग की टीम हो या तहसील प्रशासन की टीम, सबके लिए गांव पहुंचाने के लिए राफ्टरमेन राकेश, भीम, सुन्दर, सतीश ही तारणहार बने हुए हैं। ये लोग बिना किसी प्रशासनिक मदद के दीप गुणवंत के साथ एजी अंसारी के 'कबीला' के कोसी छोर से लोगों को चुकुम लाने ले जाने के काम में जुटे हैं।
उत्तराखंड : हर बरसात में काला पानी की सज़ा भुगतते हैं चुकुम गांव के यह वाशिंदे
गांव में पहुंचते ही बिजली के टूटे तारों को जोड़ने के लिए बिजली विभाग (Electricity Department) के कर्मचारी बिजली पोल पर चढ़े दिखाई देते हैं। उनके कमाण्डर के तौर पर अधिशासी अभियंता विवेक काण्डपाल भी कोसी नदी के किनारे ही डेरा जमाए अपने कर्मचारियों की हौसला अफजाई के लिए मौके पर मौजूद हैं।
करीब ढाई किलोमीटर लंबाई के टुकड़े में जहां-तहां बने घरों से होते हुए 'जनज्वार' टीम गांव के दक्षिण में वहां पहुंची, जहां इस बार कोसी की धारा ने अपने बहने की जगह को बदलते हुए इस चुकुम गांव के किनारों को बहाते हुए तबाही मचाई थी। ग्रामीण नदी में बहे अपने मकान-घरों के खिड़की-दरवाजा, लोहा-लक्कड़ वगैरह के अवशेषों को ढूंढकर फिर से अपना आशियाना बनाने की जुगत में लगे थे।
इसी जगह मुन्नी बिष्ट ने आपदा की रात की घटना का वह भयावह खाका खींचा, जिससे भुक्तभोगी के अतिरिक्त सब अनभिज्ञ हैं। अपने घर-बार अपनी आंखों के सामने बहने की व्यथा सुनाते-सुनाते मुन्नी बताती हैं, 'ढोरों (पशुओं) को रात में गौशाला से निकालकर उनकी भी रस्सियां काट दी गईं, जिससे जानवर भाग-दौड़ कर अगर खुद को बचा सकें तो बचा लें।
सामने से आते आधा दर्जन लोग जो गांव के नहीं लग रहे, पास आने पर अपने को स्कूल का स्टॉफ बताते हैं। स्कूल से घर, घर से स्कूल आने-जाने कठिन डगर की चर्चा के साथ अध्यापकों का यह समूह गांव के मुश्किल हालात की जानकारी देता है कि किस तरह वह घने जंगल में बाघ-हाथियों के साथ आंख-मिचौली करते हुए जान का खतरा उठाकर रोज स्कूल आना-जाना करते हैं, यह आप वीडियो में भी सुन सकते हैं। अभी यह अध्यापक गांव में आई आपदा के बाद स्कूली बच्चों के लिए कॉपी-किताबें, ड्रेस-जूते वगैरह का इंतज़ाम अपने व बाहरी सहयोग से करने में भी जुटे हैं। प्रधानाध्यापक एसएस रिज़वी बताते हैं कि सौ स्वेटर का इंतज़ाम हो चुका है। बाकी भी कर रहे हैं धीरे-धीरे।
नदी के किनारे-किनारे चलते ग्रामीण रमेश राम का घर आता है, जो पानी की मार से अपनी खोखली बुनियाद पर टिका है। कभी भी धराशाई होने के खतरे के बाद भी रमेश मजबूरी में इस मकान में रह रहे हैं। निशा उनकी बेटी का नाम है, जो मोहान इंटर कॉलेज (कोसी पार गांव, चुकुम गांव में हाई स्कूल ही है) की छात्रा है। आपदा के बाद से उसका स्कूल जाना बन्द हो चुका है। स्कूल कब जाना होगा पर वह निरुत्तर हो जाती है।
यहीं एक बच्चा दीपू मिलता है जो अभी तक मिली मदद का पूरा ब्यौरा देता है। बच्चे का वीडियो देखकर अंदाजा लगता है कि मदद में क्या मिला। घर के लिए पीने का पानी ले जा रही सुनीता देवी बता रही हैं कि कोसी नदी की धारा ने कैसे अपना रुख गांव की दिशा में करते हुए उनके खेत-खलिहान की ज़मीन को लील लिया।
इससे कुछ दूरी पर दो किशोर बालक मदद के तौर पर मिले तिरपाल को बांधकर अपने परिवार के लिए सिर छिपाने का बंदोबस्त करते मिले। उन्हें यह तिरपाल गांव में सबसे पहले राहत सामग्री लेकर पहुंचने वाले कांग्रेस अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत (Ranjeet Singh Rawat) की ओर से मिला था। गांव के बीच की गूल पार का जो टुकड़ा पहाड़ी हिस्से से जुड़ा है, वह आपदा की इस मार से कुछ अछूता रहा। यहां महिलाएं अपने सामान्य काम-काज में जुटी थीं।
जिन परिवारों का घर पूरी तरह बाढ़ की भेंट चढ़ गया, उनके रहने के लिए भी इसी हिस्से में तिरपाल आदि के सहारे व्यवस्था की गई है। गांव में कुछ नए चेहरे भी नज़र आ रहे हैं जो कि तहसील के कर्मचारी हैं। वह गांव में हुए नुकसान की व्यापक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। इसी रिपोर्ट के आधार पर ग्रामीणों को मुआवजा मिलेगा। सूरज धीरे-धीरे पश्चिम की ओर सरकते हुए छिपने की कोशिश में है कि फोन की घंटी घनघना उठी। नदी किनारे अपनी राफ्ट के साथ मौजूद दीप गुणवंत के थके-मांदे साथी घर जाना चाहते हैं। लिहाजा नदी पार करने के लिए जल्दी कोसी किनारे का बुलावा था। राफ्टिंग छोड़ दें तो फिर रात के अंधेरे में नौ किमी. का दुर्गम जंगली जानवरों वाले घने जंगल का रास्ता पैदल चलकर कुनखेत होते हुए नेशनल हाईवे पहुंचना हमारे लिए सम्भव नहीं था। लिहाज़ा जनज्वार टीम ने ग्रामीणों से विदा ले ली।
कोसी नदी के दूसरे किनारे जिस होटल से गलियारे से गुजरकर मुख्य सड़क तक आना था, वह पूरा परिसर किसी होटल का न लगकर स्टोन क्रेशर सरीखा लग रहा था। बाकायदा जेसीबी लगाकर बरसात में आये हज़ारों टन मलवे और रेत को साफ किया जा रहा था। फोटो होटल मैनेजर के इसरार पर नहीं लिया गया।