धरती के भगवान : डिलीवरी के बाद रक्तस्राव के कारण मौत के मुंह में जाती महिला की डॉक्टर ने ऐसे बचायी जान
डॉक्टर ने मौत के मुंह में समाती नवप्रसूता की जान बचाकर पेश की मिसाल, हर कोई कर रहा वाह वाह (photo : social media)
जनज्वार। कहते हैं धरती के भगवान डॉक्टर हैं, जो किसी मरीज को नई जिंदगी देते हैं। कई मामलों में डॉक्टर हालांकि पैसे के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं, मगर कई इंसानियत को जिंदा रखने वाली ऐसी मिसालें पेश करते हैं जो सबके सामने आदर्श कायम करते हैं। ऐसा ही एक मामला बांदा से सामने आया है। डिलीवरी के दौरान बहुत ज्यादा रक्तस्राव हो जाने के बाद जब एक प्रसूता लगभग मौत के मुंह में जा चुकी थी, तो उसकी डिलीवरी करवाने वाली डॉक्टर नीलम ही भगवान बनकर उसके सामने आयी।
खबरों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के बांदा के मरका गांव में रहने वाले प्रदीप की पत्नी मीना देवी पत्नी को परिजन प्रसव पीड़ा होने पर 6 अक्टूबर की रात लगभग 10 बजे राजकीय मेडिकल कॉलेज बांदा ले गये, जहां उसने बच्चे को जन्म दिया। मीना की जच्चगी ऑपरेशन से उसी रात को 2 बजे डॉक्टर नीलम सिंह ने करवायी। डॉ. नीलम बताती हैं कि मीना देवी के 9 माह से पहले प्रसव पीड़ा होने लगी थी। इसके पहले भी उसका पहला बेटा भी ऑपरेशन से हुआ था, इससे पहले ऑपरेशन के टांकों पर दर्द होने लगा था।
ऐसे में ऑपरेशन ही एक विकल्प था, ऑपरेशन के बाद बच्चा कम दिनों का होने के कारण कमजोर था। जिसे 2 दिन तक एनआईसीयू में रखा गया लेकिन परिजन उसे चिल्ड्रन हॉस्पिटल प्रयागराज ले जाने की मांग कर रहे थे, जिससे बच्चे को प्रयागराज रेफर कर दिया गया। इस दौरान पति ससुर वह अन्य परिजन प्रयागराज चले गए।
डॉक्टर नीलम ने बताया, 'यहां महिला मरीज की देखभाल के लिए वृद्ध पिता राजेंद्र तिवारी निवासी ग्राम दोहा देहात कोतवाली मौजूद थे। इस बीच महिला को खून की कमी हो गई उसे तत्काल खून की जरूरत थी। ऐसी स्थिति में मरीज की जान बचाना मेरा कर्तव्य था। मैंने तत्काल अपना खून देकर मरीज को चढ़ाया।'
गौरतलब है कि हर रोज देश के सरकारी अस्पतालों में होने वाली अव्यवस्थाएं और अमानवीयताएं अक्सर की मीडिया की सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन इन अस्पतालों के स्टॉफ और डॉक्टर कई बार मानवता की मिसाल कायम करने वाले कार्य कर जाते हैं, जिसकी कोई चर्चा नहीं हो पाती है।
यूपी में करीब 40 वर्षों तक सरकारी डॉक्टर के तौर पर सेवा दे चुके राकेश सिंह कहते हैं, 'डॉक्टर नीलम की पहल साबित करती हैं कि लाख अव्यवस्थाओं के बावजूद सरकारी अस्पताल आज भी देश के 80 फीसदी लोगों के लिए बेहतर इलाज की जगह हैं। साथ ही मैं अपने लंबे अनुभव से बता सकता हूं कि मैंने स्टॉफ और डॉक्टर की ऐसे हजारों उदाहरण देखें हैं जब उन्होंने व्यक्तिगत पहल और कोशिशों के जरिए यानी अपने ड्यूटी दायरे से बाहर जाकर मरीजों की जान बचाई है। यह दीगर बात है कि कभी इस काम के लिए उन्हें कहीं पुरस्कृत नहीं किया गया, यहां तक कि कभी याद भी नहीं किया जाता।'
इस घटना के प्रकाश में आने के बाद पूरे शहर और इलाके में डॉक्टर नीलम की इस सकारात्मक पहल की नागरिक समाज प्रशंसा कर रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश के राजकीय मेडिकल कॉलेज बांदा के प्रिंसिपल डॉ. मुकेश यादव ने कहा कि निश्चित रूप से डॉक्टर नीलम ने ऐसा सराहनीय कार्य कर मानवता की मिसाल पेश की है, जिससे अन्य चिकित्सकों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए।