रंगों में छुपा है सेहत का राज़ : मानव शरीर के स्वास्थ्य का राज छुपा है इनमें और रोगों का कारण भी
अवतार सिंह जसवाल का लेख
क्या आप जानते हैं कि सफेद और अन्य हल्के रंग पहनने से अधिक वजन वाले लोगों को खाने में कैलोरी की मात्रा कम करने में मदद मिलती है? या सर्दी के मौसम में कोई व्यक्ति सारा दिन अगर लाल मोज़े पहनकर रहे, तो रात को वह गर्म पैरों के साथ बिस्तर में जाता है? या फिर उच्च रक्तचाप वाला व्यक्ति अगर नीले रंग के पानी में तैरता है, तो उसका बढ़ा हुआ रक्तचाप अस्थायी रूप से कम हो जाता है? यही नहीं, सफ़ेद अंडे देने वाली मुर्गी को अगर लगातार लाल मिर्ची खिलाई जाए, तो उसके अंडों का रंग लाल हो जाता है। क्यों? कारण है, पृथ्वी पर मौजूद जीवन पर रंगों का प्रभाव। वैज्ञानिक भाषा में इसे प्लेसबो इफेक्ट (placebo effect) कहते हैं। यह प्रभाव अंतरिक्ष से आने वाली किरणों के कंपनों के कारण पैदा होता है, जिन्हें प्राकृतिक रंग भी कह सकते हैं। यही रंग मानव शरीर के स्वस्थ्य का आधार होते हैं और वही उसके रोगों का कारण भी बनते हैं।
ज़रा अपने बचपन के दिनों को, खास कर उस दिन को याद कीजिए, जब जीवन में पहली बार आपने वर्षा के बाद आकाश में इंद्रधनुष को देखा था। कैसा महसूस किया था तब आपने? निश्चय ही आप खुशी, आश्चर्य और रोमांच से भर उठे होंगे ! इंद्रधनुष के वही सात रंग (लाल, नारंगी, पीला, हरा, हल्का आसमानी, गहरा नीला और बैंगनी), जो वास्तव में सूर्यकिरण के हैं, धरती पर प्रकृति की हर वस्तु में मौजूद हैं। मानव शरीर भी उसका अपवाद नहीं है। सच कहा जाए, तो मनुष्य ही नहीं, पृथ्वी पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं की जीव रचना का श्रेय इन ब्रह्मांडीय कंपनों के सात रंगों को ही जाता है।
रंग मानव जीवन को कैसे प्रभावित करता है, डॉ. मॉर्टन वॉकर कैलिफोर्निया के सांता बारबरा में वैगनर इंस्टीट्यूट फॉर कलर रिसर्च के निदेशक कार्लटन वैगनर के हवाले से बताते हैं, जो रंग की प्रतिक्रिया के बारे में कहते हैं :
"आपके माता-पिता से विरासत में मिले न्यूरोट्रांसमीटर की वजह से आपका अंतःस्रावी तंत्र रंग के लिए एक निश्चित तरीके से प्रतिक्रिया करता है। रंग आपके हार्मोनल स्राव में कैसे भूमिका निभाता है; आप एक रंग देखते हैं, यह आपके मस्तिष्क में पंजीकृत होता है और आपका मस्तिष्क उपयुक्त अंतःस्रावी ग्रंथि से एक निश्चित हार्मोनल प्रतिक्रिया के लिए एक ची संदेशवाहक (एक न्यूरोट्रांसमीटर) भेजता है। एक अंतःस्रावी ग्रंथि (एक वाहिनीहीन ग्रंथि) एक या एक से अधिक हार्मोन बनाती है और उन्हें सीधे रक्तप्रवाह में प्रवाहित करती है। अंतःस्रावी ग्रंथियों में पिट्यूटरी, थायरॉइड, पैराथायरायड, और अधिवृक्क ग्रंथियां शामिल हैं; अंडाशय और वृषण; अपरा; और अग्न्याशय का हिस्सा। अंतःस्रावी ग्रंथियां आपके मस्तिष्क द्वारा स्वीकार किए गए रंगों पर प्रतिक्रिया करती हैं। उदाहरण के लिए, लाल रंग मानव मस्तिष्क में उत्तेजना पैदा करता है; इसलिए न्यूरोट्रांसमीटर शरीर में एड्रेनालाईन को पंप करने के लिए अधिवृक्क ग्रंथियों को उत्तेजित करते हैं।"
रंग पांच महाभूतों और मनुष्य की पांच ज्ञानेन्द्रियों के बीच बुनियादी अंतर्संबंध हैं। ये ज्ञानेन्द्रियाँ भी उपरोक्त सात रंगों से ढकी हैं। उदाहरण के लिए, लाल ब्रह्मांडीय किरण या रंग से दृष्टि, हरे रंग से गंध, बैंगनी रंग से स्पर्श, नीले रंग से ध्वनि और नारंगी रंग से स्वाद जुड़ा है। इसके अलावा, पीला और नीला रंग मानव शरीर में क्रमशः गर्मी और ठंडक का कारण बनता है।
इंद्रियां भी इन रंगों से संबंधित हैं। यदि प्रिज़्म ग्लास के माध्यम से देखा जाए, तो आँखें लाल, त्वचा बैंगनी, नाक की नोक हरे रंग की, जीभ नारंगी और कान सहित सभी छेद नीले रंग के रूप में पाए जाते हैं। ज्ञानेन्द्रियों पर रंगों की उपस्थिति हमारे लिए दृष्टि, गंध, ध्वनि, स्पर्श और स्वाद की विभिन्न संवेदनाओं को प्राप्त करना संभव बनाती है। रंगों या ब्रह्मांडीय किरणों के बिना, हम अपने शरीर, इंद्रियों, सुविधाओं और यहां तक कि कोशिकाओं और ऊतकों के बारे में भी नहीं सोच सकते।
मानव शरीर कोशिकाओं और कोशिकाओं के समूहों से बना है और प्रत्येक कोशिका सात ब्रह्मांडीय स्पंदनों या रंगों से बनी है। हमारे स्वस्थ शरीर का रहस्य स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों के समूहों पर निर्भर करता है। कोशिकाओं और ऊतकों का स्वास्थ्य पूरी तरह से कोशिकाओं में एक विशेष अनुपात में मौजूद इन कॉस्मिक किरणों या रंगों के संतुलन पर निर्भर करता है। जब यह संतुलन बिगड़ जाता है, तो किन्हीं कारणों से हमारे शरीर पर रोग आक्रमण कर देते हैं। मानव शरीर ऐसा है कि एक या दो रंगों के असंतुलन से सामान्यतया कोई रोग प्रकट नहीं होता है। लेकिन यदि तीन-चार या अधिक रंग कोशिकाओं में अधिक समय तक असंतुलित रहते हैं, तो कैंसर, मधुमेह, पोलियो, पक्षाघात आदि गंभीर/दीर्घकालिक रोग मानव शरीर पर आक्रमण कर देते हैं।
चिकित्सा अनुसंधानकर्ता और वैज्ञानिक अभी तक उपरोक्त गंभीर बीमारियों के लिए कोई विश्वसनीय उपचार नहीं दे सके हैं। इन्हें अभी भी ला-इलाज बीमारियों के रूप में समझा जाता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग के युग में ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि मेडिकल साइंस मानव शरीर के निर्माण में ब्रह्मांडीय स्पंदनों (रंगों) की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका को नहीं पहचान पाई है। दूसरी ओर, एक रंग चिकित्सक यह अच्छी तरह से जानता है कि किसी गंभीर रोग का मुख्य कारण शरीर में लंबे समय से चल रही रंगों की गड़बड़ी होती है। उसीसे शरीर में विघटन शुरू होता है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।
डॉ. मॉर्टन वाकर ने अपनी पुस्तक ' The Power Of Color ' में मानव जीवन में रंग की प्रकृति और कार्य पर वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ सफलतापूर्वक वर्गीकरण, परीक्षण और प्रस्तुतीकरण किया है। वे कहते हैं: 'रंग हमारे अस्तित्व की समग्रता को प्रभावित करता है - प्रत्येक दिन हमारे जीवन की संपूर्ण गुणवत्ता, हमारे दैनिक अस्तित्व के दौरान, रंग उच्च विशिष्टता, महान भव्यता, महत्वपूर्ण शक्ति, अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति और बड़े परिणाम प्रस्तुत कर सकते हैं। वे हमें शारीरिक बीमारी, पुराने के दृश्य संकेतों का अनुभव करा सकते हैं। मानसिक बीमारी के लक्षण, भावनात्मक अस्थिरता के सामान्य संकेत, आध्यात्मिक प्रेरणा का संभावित उत्थान, परिचित परिवेश के लिए एक सशर्त प्रतिक्रिया, शारीरिक कल्याण में धीमी वृद्धि और उनके आठ महत्वपूर्ण कारकों के आधार पर विभिन्न अन्य प्रतिक्रियाएं।'
रंग की कमी या भूख मनुष्य की पांच इंद्रियों की कार्यक्षमता में गिरावट पैदा करती है। उन्हें स्वास्थ्य की बहाली के लिए विशिष्ट रंग कंपन की आवश्यकता होती है। इस भूख को सूर्योदय के समय पीठ पर आधा घंटा धूप लेने से प्राकृतिक तौर पर पूरा किया जा सकता है और गिरते स्वास्थ्य को बहाल किया जा सकता है। गंभीर रोगों की स्थिती में रंगों की पूर्ति के लिए रंग चिकित्सा का सहारा लिया जा सकता है। अत: अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी मानव शरीर में सात कॉस्मिक किरणों या रंगों के संतुलन में निहित है।
शरीर में विशिष्ट रंग की भूख या रोगों के मूल कारण को उपयुक्त रंग/रत्न के प्रयोग से शरीर में पुनर्स्थापित कर जड़ से मिटाया जा सकता है। उदाहरण के लिए : शरीर में लाल रंग की कमी होने पर ज्वर, शारीरिक दुर्बलता, स्फूर्ति का नाश आदि रोग हमारे शरीर पर आक्रमण करते हैं। लाल रंग की रोशनी या माणिक्य रत्न के द्वारा, जो कि लाल स्पंदन (रंग) छोड़ते हैं है, इन रोगों की गर्दन को तोड़ा जा सकता है। लगातार लाल रोशनी में नहाने या माणिक्य धारण करने से लाल रंग की मात्रा शरीर में बढ़ने लगती है और व्यक्ति उससे संबंधित रोगों से मुक्त हो जाता है। लेकिन यदि शरीर में लाल रंग की अधिकता हो जाए, तो सिर दर्द, फोड़े-फुंसी, ट्यूमर, पागलपन, अनिद्रा, लू लगना आदि रोग शुरू हो जाते हैं।
रोग की गंभीरता कोशिकाओं और ऊतकों में रंग किरणों की संख्या में (जो सात हैं यानि बैंगनी, नील, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल) गड़बड़ी की डिग्री पर निर्भर करती है। किसी भी कारण कोशिकाओं में हुई रंग-गड़बड़ी से पैदा हुए रोगों को कोशिकाओं और ऊतकों में रंगों का संतुलन ठीक कर रोगों को दूर किया जा सकता है। शरीर में किसी भी बीमारी को इस तरह ठीक करके फिर से स्वस्थ लाभ प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि वास्तव में शरीर में रोग का कारण कीटाणु या बैक्टीरिया नहीं होता, जैसा कि मेडिकल साइंस कहती है बल्कि कोशिकाओं और ऊतकों में सूर्यकिरण के सात रंगों के आदर्श अनुपात का बिगड़ना होता है। इसकी अनदेखी होने के कारण कई गंभीर बीमारियों का इलाज नहीं हो पाता है। इसी कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वास्थ्य संगठन W.H.O का कहना है कि एलोपैथिक मेडिसिन का प्रभाव केवल 30 से 50 प्रतिशत रोगियों तक सीमित रहता है।
रोग और रोगी ब्रह्मांडीय किरणों या कंपनों की मानव शरीर में भूख के सिवा कुछ नहीं हैं। आकाश में इंद्रधनुष में जो सात रंग दिखाई देते हैं, वे हमारे जीवन और स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इन्हीं रंगों में हम जन्म लेते हैं, इन्हीं में हम जीते और विकसित होते हैं और जब इनकी ऊर्जा समाप्त हो जाती है, तो हम मर जाते हैं। हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका इन्हीं सात रंगों द्वारा निर्मित होती है। इस तथ्य की पुष्टि आप अपने शरीर के किसी भी हिस्से के डिजिटल एक्सरे द्वारा कर सकते हैं।
मानव शरीर में कोशिकाओं का स्वास्थ्य उनमें रंगों के संतुलन की स्थिति और उनकी प्रचुरता पर निर्भर करता है। कोशिकाएं यदि कुपोषित हैं, या उन्हें आवश्यक रंगकंपन नहीं मिलता है, तो यह स्थिति उनमें एक या अधिक रंगों की भूख पैदा करती है। रंग की भूख जब अधिक बढ़ जाती है, तो खुद को वह (उस रंग से संबंधित) रोग के रूप में प्रकट करती है। मतलब, उस रोग की जड़ में कोई बैक्टीरिया नहीं होता बल्कि शरीर की कोशिकाओं में रंगो की कमी होती है। रोग कितना भी गंभीर क्यों न हो, उसके रंगों की भूख का पता लगाकर, अगर उन रंगों को शरीर में धीरे-धीरे मजबूत किया जाए, तो निश्चित तौर पर उस रोग को जड़ से उखाड़कर फेंका जा सकता है। यह कोई कल्पना नहीं, लेखक के तीस वर्षों के रत्न-रंग चिकित्सा के अनुभव का निष्कर्ष है।
(लेखक का दावा है कि उनका यह लेख उनके रत्न रंग चिकित्सा का अनुभव का निष्कर्ष है।)