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जनज्वार विशेष

डूब मरो बेशर्म टीवी पत्रकारो! सीबीआई ने भी माना सुशांत सिंह ने की थी आत्महत्या, रिया ने नहीं निकाला खाते से एक भी रुपया

Janjwar Desk
30 Oct 2020 10:00 AM IST
डूब मरो बेशर्म टीवी पत्रकारो! सीबीआई ने भी माना सुशांत सिंह ने की थी आत्महत्या, रिया ने नहीं निकाला खाते से एक भी रुपया
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File photo

देश के तमाम जरूरी मुद्दों को नजरंदाज कर ये चैनल स्वामीभक्त श्वान की तरह अपने स्वामी के हितों की रक्षा के लिए सर्कस करते रहे, इन्होंने टीवी पत्रकारिता को ऐसे गर्त में धकेल दिया है, जिसके चलते समझदार दर्शकों को इनसे घिन महसूस होने लगी है....

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की टिप्पणी

जनज्वार। अब जबकि सीबीआई ने भी मान लिया है कि फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की हत्या नहीं हुई थी और उन्होंने आत्महत्या की थी, साथ ही अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती ने उनके खाते से फूटी कौड़ी भी नहीं निकाली थी, तो क्या इस देश के बेशर्म टीवी एंकरों को शर्म के मारे चुल्लू भर पानी में डूब नहीं जाना चाहिए?

लगभग चार महीने तक ये एंकर सुशांत के मामले को लेकर फर्जी कहानी चलाते हुए पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों का श्राद्ध करते रहे। व्हाट्सएप विश्वविद्यालय पर भाजपा आईटी सेल के झूठे संदेशों को प्रचारित करता हुआ इस देश का लिजलिजा मध्यवर्ग उत्तेजना के मारे थरथराता रहा कि मोदी जी अब महाराष्ट्र की सरकार को गिरा देंगे और ठाकरे परिवार को खून के आरोप में फंसा देंगे।

इस लिजलिजे मध्यवर्ग को बिके हुए टीवी चैनलों ने चौबीस घंटे एक काल्पनिक मर्डर मिस्ट्री में इसीलिए उलझाकर रखा ताकि मोदीजी देश की सार्वजनिक सम्पत्तियों को निश्चिंत होकर बेच सकें। सुशांत की कहानी में देश को उलझाकर रखने का आदेश निश्चित रूप से इन चैनलों को अपने आका मोदी जी से ही मिला हुआ था। इसी अवधि में किसान बिल से लेकर तमाम जन विरोधी बिलों को आनन फानन में पास कर लिया गया।

नैतिकता और लोकतांत्रिक मूल्यों का तर्पण कर चुके टीवी चैनल के एंकर खूंखार भेड़िये की तरह रिया चक्रवर्ती का चरित्र हनन करने में जुटे रहे। किसी चैनल पर सुशांत की आत्मा से संपर्क करने वाले व्यक्ति से इंटरव्यू दिखाया गया तो किसी चैनल पर नौकर-नौकरानी का विशेष कवरेज दिखाया गया। ये एंकर खुद ही जांचकर्ता, वकील, फारेनसिक एक्सपर्ट और न्यायाधीश की भूमिका निभाते हुए नजर आए।

देश के तमाम जरूरी मुद्दों को नजरंदाज कर ये स्वामीभक्त श्वान की तरह अपने स्वामी के हितों की रक्षा के लिए सर्कस करते रहे। इन्होंने टीवी पत्रकारिता को ऐसे गर्त में धकेल दिया है, जिसके चलते समझदार दर्शकों को इनसे घिन महसूस होने लगी है।

टीवी एंकरों के मीडिया ट्रायल की शिकार बॉलीवुड स्टार रिया चक्रवर्ती को पिछले दिनों मुंबई की बाइकुला महिला जेल से 28 दिनों तक कैद रहने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया।

पिछले चार महीनों में वह एक मीडिया तमाशे का केंद्रबिन्दु बन गई थी जो भारत में एक राष्ट्रीय जुनून बन गया था। उन पर अपने प्रेमी 34 वर्षीय बॉलीवुड स्टार सुशांत सिंह राजपूत की मौत में भूमिका निभाने का आरोप था, जिन्होंने 14 जून को मुंबई में अपने अपार्टमेंट में खुदकशी कर ली थी।

उनकी मृत्यु की खबर के बाद राजपूत के मानसिक स्वास्थ्य पर विमर्श शुरू हुआ। लेकिन बाद के दिनों में षड्यंत्र के सिद्धांतों के तहत यह आरोप भी लगने लगा कि राजपूत को फिल्म उद्योग में प्रचलित भाई-भतीजावाद द्वारा मृत्यु के लिए प्रेरित किया गया था, जो उनसे बाहरी व्यक्ति होने के नाते नफरत करते थे।

सोशल मीडिया पर यह दावा किया गया कि उनकी हत्या कर दी गई थी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं द्वारा "सुशांत के लिए न्याय" अभियान शुरू कर दिया गया था।

पालतू मीडिया का ध्यान फिर चक्रवर्ती की ओर केन्द्रित हो गया। राजपूत के परिवार ने उनके खिलाफ एक मुकदमा दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि वही सुशांत की मौत की वजह बनी थी, और हालांकि कोई सबूत पेश नहीं किया जा सकता है, रिया के खिलाफ गोदी मीडिया की अगुवाई में नफरत का एक अभियान शुरू हो गया।

सितंबर में उनको नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा गिरफ्तार किया गया, जिसने राजपूत को ड्रग्स की आपूर्ति करने,तस्करी और "ड्रग सिंडिकेट" का हिस्सा होने का आरोप लगाया था।

वह अकेली नहीं थी। उनकी गिरफ्तारी के बाद एनसीबी ने कथित नशीली दवाओं से संबंधित गतिविधि के लिए बॉलीवुड के कुछ सबसे बड़े नामों पर भी सवाल उठाया।

लेकिन चक्रवर्ती ने अपने प्रेमी की मौत और एनसीबी के आरोपों के संबंध में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया, और पिछले दिनों अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने एक ऑटोप्सी रिपोर्ट जारी की जिसमें पुलिस की जांच की पुष्टि की गई कि राजपूत की मौत आत्महत्या की वजह से हुई। हत्या के किसी भी संदेह को खारिज किया गया।

कुछ समय बाद ही मुंबई की एक अदालत ने फैसला सुनाया कि चक्रवर्ती, जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था, किसी सिंडिकेट का हिस्सा नहीं थी और एनसीबी द्वारा लगाए गए कथित रूप से अवैध मादक पदार्थों की तस्करी से जुड़े आरोप साबित नहीं किए जा सकते थे। इसलिए उनको जमानत पर रिहा कर दिया गया।

जैसे-जैसे षडयंत्र सिद्धांत विज्ञान के सामने और सबूत के कानूनी विश्लेषण के सामने उजागर हो रहे हैं, सारा खेल सामने आ गया है। मुंबई पुलिस, जिसने मामले की लीपापोती से संबंधित ऑनलाइन आरोपों की बदनामी झेली है, ने भारत के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत दो रिपोर्टें दर्ज कीं, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी जांच को पटरी से उतारने के लिए 80,000 से अधिक फर्जी सोशल मीडिया खातों का इस्तेमाल किया गया।

माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भाजपा के नेताओं ने राजनीतिक लाभ के लिए सुशांत की मौत के आसपास साजिश के सिद्धांतों को गढ़ने में भूमिका निभाई।

आंकड़ों के मुताबिक भाजपा राजनेताओं ने विपक्षी शिवसेना पार्टी को बदनाम करने की कोशिश के तहत राजपूत की मौत के इर्द-गिर्द ऑनलाइन अभियान चलाने में मदद की। यह प्रचारित किया गया कि सुशांत की मौत में शिवसेना शामिल थी, और मुख्यमंत्री मामले को छिपाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल कर रहे थे।

माइक्रोसॉफ्ट की रिपोर्ट के निष्कर्षों में जिसमें ट्विटर, यूट्यूब और व्यापक रूप से साझा फर्जी खबरों के एक संग्रह के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया कि कैसे भाजपा नेताओं ने आत्महत्या के मामले को 'हत्या' के रूप में संदर्भित करके काल्पनिक अभियान चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बाद के हफ्तों में भाजपा नेताओं द्वारा ट्वीट में बार-बार 'हत्या' कीवर्ड का उपयोग बढ़ रहा था। कुल मिलाकर डेटा दृढ़ता से सुझाव देता है कि भाजपा ने 'हत्या' के आरोप पर विशेष रूप से ज़ोर दिया। रिपोर्ट में बताया गया कि यह "संयोग की बात नहीं है कि आत्महत्या के बाद ट्रोल की जा रही कई हस्तियां ऐसी थीं, जो अतीत में सरकार के आलोचक थे।"

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय मांगने का दावा करने वाले ऑनलाइन समूहों के बीच शोधकर्ताओं ने पाया कि "अतिवाद, जातिवाद, मुसलमानों के प्रति अविश्वास और कुशासन का एक प्रमुख मिश्रण है।"

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