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जनज्वार विशेष

Gujarat Election 2022 : गौरक्षकों की हिंसा के शिकार ऊना कांड के दलितों की न्याय की आस में पथरायी आंखें, आज भी अत्याचार जारी

Janjwar Desk
20 Oct 2022 12:31 PM GMT
Gujarat Election 2022 : गुजरात के ऊना फर्जी गौहत्या कांड 2016 के पीड़ित अनुसूचित जाति के लोगों को अभी भी नहीं मिला न्याय
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Gujarat Election 2022 : गुजरात के ऊना फर्जी गौहत्या कांड 2016 के पीड़ित अनुसूचित जाति के लोगों को अभी भी नहीं मिला न्याय

Gujarat Election 2022 : ऊना कांड के पीड़ित वसराम ने जनज्वार से बातचीत करते हुए बताया कि ऊना कांड के 6 साल बाद भी वो न्याय के लिए भटक रहे हैं, गुजरात सरकार से मदद की गुहार लगाने पर भी सुनवाई नहीं हो रही है, बीजेपी के 27 साल के शासन में दलितों पर अत्याचार बढ़ा है...

Gujarat Election 2022 : गुजरात में इस साल चुनाव होने वाले हैं। जल्द ही चुनाव की तारीख भी घोषित कर दी जाएगी। इस राज्य में पिछले 27 साल से भाजपा की सरकार है। केंद्र की मोदी सरकार आए दिन गुजरात मॉडल का जिक्र करती रहती है। इस समय गुजरात में भाजपा की डबल इंजन की सरकार है। ऐसे में गुजरात मॉडल पर गुजराती जनता का क्या मत है और उनका चुनावी मूड क्या है, यह जानने के लिए जनज्वार की चुनावी यात्रा चल रही है। गुजरात में 27 साल के भाजपा के शासन में दलितों के साथ कितना न्याय हुआ है, यह जानने के लिए जनज्वार ने ऊना कांड के पीड़ित से बात की और जाना कि भाजपा की सरकार में उनको अब तक क्या न्याय मिला है। गुजरात में भाजपा के 27 साल के राज के बाद भी उन अनुसूचित जाति के पीड़ितों को न्याय नहीं मिला है।

बता दें कि 11 जुलाई 2016 को गुजरात के गिर सोमनाथ जिले की एक बस्ती के कुछ कथित लोगों और बजरंग दाल के कार्यकर्ताओं और हिंदू कट्टरपंथियों ने गोरक्षा के नाम पर दलित समुदाय के 7 लोगों को बहुत बुरी तरह से पीटा और फिर उनके कपड़े फाड़कर बस्ती में लोगों के सामने घुमाया गया। इसके साथ ही उन्हें घसीटते हुए थाने भी ले जाया गया था। इनमें से चार लोगों को मारे जाने का विडियो बनाकर सोशल मीडिया में डाला गया। इस विडियो को बाद में इन्टरनेट पर काफी लोगों ने देखा और वह वायरल हो गया। इस घटना और दलितों के खिलाफ हो रहे अन्यायों के विरोध में ऊना में एक बडा आंदोलन भी खड़ा हुआ। पढ़िए जनज्वार के संपादक अजय प्रकाश से ऊना कांड के पीड़ित वसराम की एक्सक्लूसिव बातचीत

रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करना धार्मिक उन्माद का कारण बनी थी, ऊना कांड के सालों बाद दलितों की क्या स्थिति है?

साल 2016 में जो हमारे साथ अत्याचार हुआ, वो गौ रक्षकों ने किया था। तब हमारे घर पर पूरे देश भर के नेता लोग आए थे। तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल भी आए थे और हमें आश्वासन देकर गए थे लेकिन तब से अब तक कुछ नहीं हुआ है। जो हमारी स्थिति पहले थी, आज भी हमारी वैसी ही स्थिति है। हमारे जीवन में कुछ जीवन में कुछ फर्क नहीं पड़ा है। हमारे जीवन में सिर्फ इतना फर्क पड़ा है कि हमारे साथ जो अत्याचार हुआ उसके खिलाफ हम 6 साल से लड़ रहे हैं। न्याय के नाम पर सरकार से कुछ नहीं मिला है।

ऊना कांड के बाद सरकार की तरफ से मुआवजा और सरकारी नौकरियां मिलती हैं, आप लोगों को क्या सहायता मिली?

ऊना कांड के बाद न्याय को लेकर जो हमारी मांगी थी, सरकार को उसमें जो देना चाहिए था, वह भी हमें नहीं मिला है। हमने रोजगार छोड़ दिया है। हमारे ऊपर अत्याचार होता है तो कानून के तहत जो हमको मिलना चाहिए, वह हमें नहीं मिला है। कानून के तहत एट्रोसिटी एक्ट में जो सहायता मिलनी चाहिए, उसमें से एक मदद मिली है। दूसरी मदद के तौर पर हमें जमीन मिलनी चाहिए और रोजगार के लिए नौकरियां मिलनी चाहिए लेकिन वह कुछ नहीं मिला है। हम बार-बार 6 साल से सरकार को लेटर लिख रहे हैं लेकिन सरकार हमें कुछ उत्तर नहीं दे रही है और सरकार हमारी कुछ मांगे पूरी नहीं कर रही है।

ऊना कांड की घटना क्या थी और कैसे हुई?

2016 में दलितों को बुरी तरह पीटे जाने की जो घटना हुई थी, उसका कारण गाय थी। आरोप लगाया गया था कि दलितों ने गौहत्या की है, मगर वह गाय पहले से मरी हुई थी। शेर ने उसे मारा था और यह बात कोर्ट के अंदर साबित भी हुई है। एफएसएल रिपोर्ट भी आई हुई है कि गाय मरी हुई ही थी। मरी हुई गाय में से हम लोग चमड़ा निकाल रहे थे, जो हमारा पहला रोजगार था और इस रोजगार से ही हमारे परिवार की रोजी-रोटी चलती थी, लेकिन इन गौ रक्षकों ने हमारे ऊपर झूठा इल्जाम लगा दिया। हमारे ऊपर अत्याचार किया और कहा कि आप लोग मुस्लिम समुदाय के लोग हैं और जिंदा गाय काट रहे हैं। हमने उन्हें बोला कि हम दलित हैं, चमार है। हम जिंदा गाय काट नहीं रहे हैं। हमें मत मारो। हमारे साथ ऐसा अत्याचार मत करो, फिर भी हमारी कुछ उन्होंने सुनी नहीं और हमारे साथ मारपीट करते रहे।

घटना के दौरान ऐसा क्या हुआ कि वहां गौरक्षकों की काफी भीड़ इकट्ठी हो गई?

11 जुलाई 2016 को जिस जगह हम गाय का चमड़ा निकाल रहे थे, उस समय वहां गौ रक्षकों की गाड़ी आई। उन्होंने हमें चमड़ा निकालते हुए देख लिया और इस जगह की लाइव लोकेशन अपने गौ रक्षकों के ग्रुप में सेंड कर दी। देखते ही देखते आस-पास के गांव से सभी गौ रक्षक इकट्ठे हो गए और भारी भीड़ लग गई। वहां भारी संख्या में पहुंचे लोगों ने हमारे साथ अत्याचार किया।

इस मुल्क में संविधान, सरकार और पुलिस भी है, ऊना कांड को याद करते हुए इस देश के बारे में क्या विचार आते हैं ?

जब यह घटना हम यूट्यूब की वीडियो या कोई फोटो में देखते हैं और हमारी मांगे भी जब सरकार के सामने रखते हैं तो हमें ऐसा दर्द होता है कि इस देश के अंदर संविधान के तौर पर सबको नागरिकता का दर्जा दिया है लेकिन हमारे दलित समुदाय को कहीं भी नागरिकता का दर्जा नहीं मिलता है। उनके साथ छुआछूत का भेदभाव अभी भी होता है। दलित समुदाय के लोग अभी इस देश के अंदर आजाद नहीं हुए हैं। बाबासाहेब आंबेडकर ने सब लोगों को समानता का दर्जा दिया है लेकिन हमें ऐसा लगता है कि हम अभी ऐसी जिंदगी जी रहे हैं तो हमारी आने वाली पीढ़ी इस देश के अंदर कैसे अपनी जिंदगी गुजारेंगे।

गाय का चमड़ा छिलने की वजह से यह वारदात हुई थी तो क्या आपके समुदाय ने वह काम छोड़ दिया?

पहले हमारा समाज इस देश के अंदर की गंदगी को साफ कर रहा था, लेकिन गंदगी साफ करने के बाद भी उनके साथ अत्याचार होता था तो हमारे समाज के लोगों ने यह अत्याचार सहन किया लेकिन उसके बाद यह काम छोड़ दिया। हम इस देश की गंदगी साफ करते हैं लेकिन उसके बावजूद हमारे साथ यह अत्याचार होता है इसलिए यह काम हमारे समुदाय ने छोड़ दिया है। 2016 के बाद हमारे दलित समुदायों ने यह काम छोड़ दिया है। अगर कहीं भी गाय, भैंस या कोई जानवर मरता है तो उसका मालिक उसे उठाकर कहीं भी फेंक देते हैं लेकिन हम अब यह काम नहीं करते हैं।

यह काम छोड़ देने से दलित समाज को आर्थिक नुकसान हुआ?

यह काम हमारे समुदाय के लिए रोटी रोजी का जरिया था, लेकिन इस काम के बिना भी दूसरा काम मिलता है। बाबासाहेब आंबेडकर ने भी बोला था कि गांव छोड़ दो शिक्षित बनो और संगठित बनो और दूसरे काम करो, यह काम मत करो। फिर भी समाज को किसी भी जगह पर धंधे का या नौकरी का, रोजगार का ऑप्शन नहीं मिलता था तो वह लोग उसके बाद यह काम करते थे। उसके बाद उनके ऊपर यह अत्याचार हुआ तो उन्होंने यह काम छोड़ दिया और आज भी यह काम नहीं कर रहे हैं क्योंकि इस धंधे में मान सम्मान नहीं मिलता है, भाईचारा नहीं है तो यह काम क्यों करना है, इसलिए इस काम को हमारे समुदाय ने छोड़ दिया है।

ऊना कांड को 6 साल हो चुके हैं तो इतनी बड़ी वारदात के बाद क्या बदलाव आए हैं ?

हमारे परिवार की स्थिति और हमारी आर्थिक स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ा है लेकिन हमारे जीवन के अंदर ऐसा परिवर्तन आया है कि समाज क्या है, हमारा हक और अधिकार क्या है ? हमारे साथ इस देश के अंदर क्या हो रहा है ? यह सब हमारे साथ अत्याचार हुआ तो हमें पता चला कि यह लोग हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं। हिंदू लोग हिंदू के ही सामने है। हिंदू आमने सामने लड़ रहे हैं और मारपीट रहे हैं तो हमें ऐसा एहसास होता है कि क्यों इस देश के अंदर हमारे साथ अत्याचार होता है। हिंदू होते हुए भी हम लोगों पर अत्याचार होता है तो बाद में हमने ऐसा सोचा कि हम लोग हिंदू नहीं है। इस देश के अंदर हम दलितों को हिंदू धर्म के अंदर स्थान नहीं मिलता है।

बीजेपी और संघ कहती है सभी हिंदू एक है, यह नारा कितना सच है?

इस नारे को सुनकर हम लोगों को एहसास होता है कि ऐसी बातें बोलकर हमारे समाज को गुमराह किया जाता है और हमारे समाज के लोगों को ही आपस में लड़ाया जाता है सिर्फ कुर्सी की वजह से और उस सत्ता की कुर्सी पर बैठकर लोगों को आपस में लड़ा कर राजनीति की रोटियां पकाते हैं। कुर्सी पर बैठकर भाषण देते हैं। हमें गुमराह करते हैं। इसके अलावा इस नारे का कुछ फर्क नहीं पड़ता है।

भाजपा के 27 साल के शासन में गुजरात में दलितों की क्या स्थिति है?

ऊना कांड के पहले 2012 में एक गांव में दलित समुदाय के एक लालजी भाई को जिंदा जला दिया गया था। थानगढ़ के अंदर दलित समुदाय के तीन लड़कों को फायरिंग करके मार दिया गया था। उसके बाद भानु भाई वनकर ने अपना जीवन समाज को समर्पित कर दिया है। उनके बाद भी कई हत्याएं हुई। कई रेप हमारे समाज के बहन-बेटियों के साथ हुआ है, फिर भी किसी लोगों को अभी तक न्याय नहीं मिला है। केवल सभी न्याय के लिए जूझ रहे हैं। हमारे घर पर तो सीएम भी आए, राहुल गांधी आए, केजरीवाल आए लेकिन हम 6 साल से केवल न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। न्याय के तौर पर हमें रहा नहीं मिली है।

ऊना कांड में कितनी सुनवाई हुई और कितने आरोपियों को सजा मिली है?

ऊना कांड में 45 आरोपी है लेकिन अभी तक किसी को सजा नहीं मिली है। कोर्ट के अंदर अभी केस शुरू है। लोगों के बयान होते हैं और कुछ लोगों के बयान होने बाकी हैं। हमारा केस अभी 2 साल और चलेगा। अभी इस मामले में किसी को सजा नहीं मिली है। 6 आरोपी 6 साल से जेल में थे लेकिन उन्हें हाई कोर्ट से जमानत मिली है। अभी सभी 45 आरोपी बाहर है।

आरोपियों ने समाज या परिवार पर जान की धमकी देते हुए समझौते का दबाव बनाया?

नहीं, आरोपियों की तरफ से ऐसा कोई समझौता करने का दबाव नहीं बनाया गया है लेकिन हमें डर है कि हम कहीं भी बाहर होते हैं तो यह लोग किसी भी तरह से हम पर हमला कर सकते हैं। हमें अपने जीवन को लेकर एक डर लगता है। अभी हमारे पास पुलिस वाला भी है। 6 साल से प्रोटेक्शन भी है। हमारे साथ ऊना की 2 पुलिस भी है।

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