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जनज्वार विशेष

जोशीमठ त्रासदी के बीच 13 जनवरी को PM मोदी बनारस में गंगा किनारे रेत पर बनी टेंट सिटी का करेंगे उद्घाटन!

Janjwar Desk
12 Jan 2023 5:16 AM GMT
जोशीमठ त्रासदी के बीच 13 जनवरी को PM मोदी बनारस में गंगा किनारे रेत पर बनी टेंट सिटी का करेंगे उद्घाटन!
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जोशीमठ त्रासदी के बीच 13 जनवरी को PM मोदी बनारस में गंगा किनारे रेत पर बनी टेंट सिटी का करेंगे उद्घाटन!

Joshimath Sinking : टेंट सिटी के नाम पर इस क्षेत्र के भूगोल को बदला गया होगा, समतल किया गया होगा। इस क्षेत्र में जो पर्यटक आयेंगे, वे अमीरजादे होंगे और जिन्हें गंगा नदी से कोई मतलब नहीं होगा। यह बनारस में पहले से प्रदूषित गंगा में प्रदूषण का एक नया स्त्रोत बन जाएगा....

जनता और पर्यावरण का नाश कैसे करती है सरकार, बता रहे हैं महेंद्र पाण्डेय

Destruction of environment for so called development is the idea of extreme capitalism and also of our government. जोशीमठ की त्रासदी के बीच 13 जनवरी को हमारे प्रधानमंत्री जी बनारस में गंगा किनारे रेत पर बनाए गए टेंट सिटी का उदघाटन करने वाले हैं। यही उदाहरण अपने आप में स्पष्ट कर देता है कि हमारी सरकार पर्यावरण को और इसके विनाश से होने वाली त्रासदी, जिसमें मानव त्रासदी भी शामिल है, को किस नजरिये से देखती है।

चरम दक्षिणपंथी विचारधारा केवल पूंजीपतियों का हित साधती है, जिनके लिए हरेक प्राकृतिक संसाधन महज एक कच्चा माल है जिससे मुनाफा कमाया जा सकता है और जनता महज एक अधिकार-विहीन श्रमिक है। टेंट सिटी का आईडिया और किसी का नहीं बल्कि हमारे प्रधानमंत्री जी का ही है, जिन्हें हरेक अंतरराष्ट्रीय मंच पर चढ़ते ही भारत की पर्यावरण संरक्षण की 5000 वर्षों की परम्परा ध्यान आती है।

बनारस में गंगा के एक तरफ शहर है और सारे घाट हैं, और दूसरी तरफ घुमावदार रेत का इलाका है। इसी रेत के इलाके पर प्रधानमंत्री जी का तथाकथित ड्रीम प्रोजेक्ट, टेंट सिटी को खड़ा किया गया है। प्रधानमंत्री जी को निश्चित तौर पर रेत का यह क्षेत्र महज एक खाली और बेकार जमीन नजर आई होगी और यह विचार आया होगा। मीडिया और तमाम मंत्री के साथ ही मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी इन पांच सितारा टेंट हाउस को देखकर गदगद हैं और पर्यटन के लिहाज से पूंजीवादी शब्दों में फायदेमंद बता रहे हैं।

गंगा का यह रेतीला क्षेत्र पूंजीवादी व्यवस्था के लिए खाली क्षेत्र हो सकता है, पर पर्यावरण के लिहाज से यह गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका महत्त्व गंगा के बहाव और गंगा के पानी की सफाई में भी है। यह क्षेत्र बनारस शहर को कुछ हद तक बाढ़ से भी बचाता है। जाहिर है, टेंट सिटी के नाम पर इस क्षेत्र के भूगोल को बदला गया होगा, समतल किया गया होगा। इस क्षेत्र में जो पर्यटक आयेंगे, वे अमीरजादे होंगे और जिन्हें गंगा नदी से कोई मतलब नहीं होगा। यह बनारस में पहले से प्रदूषित गंगा में प्रदूषण का एक नया स्त्रोत बन जाएगा।

यही पर्यटन को बढ़ावा देने की सोच और पहाड़ों को मनमर्जी से काटकर/तोड़कर वहां स्वच्छंद बहने वाली नदियों की धारा रोककर बांध खड़ा करने की मानसिकता ने हिमालय को इस हाल में पहुंचा दिया है। हिमालय का यह हाल केवल जोशीमठ तक ही सीमित हो ऐसा नहीं है। ऊपरी हिमालय का हरेक वो क्षेत्र जो नए हाईवे और पन-बिजली परियोजनाओं के इर्दगिर्द है, सबका यही हाल है, या फिर कुछ वर्षों में सारे ऊपरी शहर उत्तरकाशी में तब्दील हो जायेंगें। तमाम तिकड़मों और झूठ के सहारे जिस ड्रीम प्रोजेक्ट, आल-वेदर चारधाम हाईवे, को बनाया गया है, वही हाईवे लगातार भूस्खलन और हिमस्खलन की चपेट में रहता है और कई मौकों पर इसे बंद भी करना पड़ता है।

वर्ष 2022 के पर्यावरण प्रदर्शन इंडेक्स, यानि एनवायर्नमेंटल परफॉरमेंस इंडेक्स में कुल 180 देशों में भारत का स्थान 180वां है। इस इंडेक्स को वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के लिए येल यूनिवर्सिटी और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक संयुक्त तौर पर तैयार करते हैं और इसका प्रकाशन वर्ष 2012 से हरेक दो वर्षों के अंतराल पर किया जाता है। वर्ष 2020 के इंडेक्स में भारत 168वें स्थान पर था।

इस इंडेक्स में सबसे आगे डेनमार्क है और इसके बाद क्रम से यूनाइटेड किंगडम, फ़िनलैंड, माल्टा, स्वीडन, लक्सेम्बर्ग, स्लोवेनिया, ऑस्ट्रिया, स्विट्ज़रलैंड और आइसलैंड का स्थान है। इंडेक्स भारत पर ख़त्म होता है और भारत से पहले क्रम में म्यांमार, वियतनाम, बांग्लादेश, पाकिस्तान, पापुआ न्यू गिनी, लाइबेरिया, हैती, तुर्की और सूडान का स्थान है। एशिया के देशों में सबसे आगे जापान 25वें स्थान पर है। साउथ कोरिया 63वें, ताइवान 74वें, अफ़ग़ानिस्तान 81वें, भूटान 85वें और श्री लंका 132वें स्थान पर है। चीन 160वें, नेपाल 162वें, पाकिस्तान 176वें, बांग्लादेश 177वें, म्यांमार 179वें स्थान पर है। जाहिर है, हमारे सभी पड़ोसी देश हमसे बेहतर स्थान पर हैं। दुनिया के प्रमुख देशों में जर्मनी 13वें, ऑस्ट्रेलिया 17वें, न्यूज़ीलैण्ड 26वें, अमेरिका 43वें, कनाडा 49वें और रूस 112वें स्थान पर है। पर्यावरण प्रदर्शन इंडेक्स का आधार पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जनस्वास्थ्य, साफ़ पानी और स्वछता और जैव-विविधता जैसे सूचकों पर देशों का प्रदर्शन है।

वर्ष 2019 में केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में जो कुछ कहा उसका मतलब स्पष्ट था – भारत गरीब देश है और गरीब देश इंफ्रास्ट्रक्चर की चिंता करता है, पर्यावरण की नहीं। जनता का पैसा इंफ्रास्ट्रक्चर में लगने से विकास होगा, पर्यावरण से क्या फायदा होगा? नितिन गडकरी समेत पूरी सरकार का यही मूलमंत्र है। जब गंगा सफाई का काम नितिन गडकरी के जिम्मे था तब भी गंगा साफ़ तो नहीं हुई, पर गडकरी साहब ने उसमें जलपोत और क्रूज जरूर चला दिए थे। गडकरी जी और प्रधानमंत्री के लिए तो तीर्थयात्रा और पर्यटन के अतिरिक्त हिमालय का भी कोई महत्व नहीं है, तभी तमाम पर्यावरण विशेषज्ञों के विरोध के बाद भी आल-वेदर रोड का काम जोरशोर से चल रहा है। इस रोड का जब काम शुरू हुआ था तब हमारे अति-उत्साही प्रधानमंत्री जी ने नितिन गडकरी को आधुनिक श्रवण कुमार का खिताब दिया था।

हिमालय पर बड़ी परियोजनाओं द्वारा पर्यावरण विनाश और जलवायु परिवर्तन के असर का घातक प्रभाव बार-बार सामने आता है, पर सरकारें हरेक ऐसे प्रभाव को लगातार अनदेखा कर रही हैं। अब तक पर्यावरण स्वीकृति के नाम पर अधकचरे ही सही पर स्थानीय पर्यावरण का कुछ तो अध्ययन किया ही जाता था, परियोजनाओं के द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन किया जाता था – पर आगे ऐसा कुछ नहीं किया जाएगा।

हरेक छोटी-बड़ी परियोजना शुरू से अंत तक लगातार ठेकेदारों के इशारे पर चलती हैं, और कोई भी ठेकेदार केवल अपने मुनाफे के लिए काम करता है। पर्यावरण संरक्षण तो उसे अपने काम में बस बाधा नजर आता है। आगे हिमालय की परियोजनाओं के साथ यही होने वाला है। स्थानीय लोग अब अगर पर्यावरण विनाश की शिकायत भी करेंगे तो भी ऐसी शिकायतों को राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न बताकर शिकायतकर्ताओं को ही खामोश कर दिया जाएगा।

सरकार विकास करने चाहती है, पर पर्यावरण के विनाश की कीमत उसे क्यों नहीं नजर आती? हिमालय का विनाश, पानी का संकट, सूखी नदियाँ, मरती खेती, प्रदूषण से मरते लोग, सिकुड़ती जैव-विविविधता और सूखा – सब विकराल स्वरुप धारण कर चुके हैं। सरकार जिसे विकास मान कर चल रही है, उसी विकास के कारण लाखों लोग हरेक वर्ष मर रहे हैं और लाखों विस्थापित हो रहे हैं, पर पूंजीपतियों की सरकार को केवल बड़ी परियोजनाएं नजर आती हैं, फिर लोग मारें या जैव विविधता ख़त्म होती रहे, क्या फर्क पड़ता है।

प्रधानमंत्री जी जब हाथ हवा में लहराकर पर्यावरण संरक्षण पर प्रवचन दे रहे होते हैं, उसी बीच में हिमालय के कुछ क्षेत्र का विनाश हो जाता है, कुछ जंगल कट जाते हैं, कुछ लोग पर्यावरण के विनाश और प्रदूषण से मर जाते हैं, कुछ जनजातियाँ अपने आवास से बेदखल कर दी जाती हैं, कुछ प्रदूषण बढ़ जाता है और नदियाँ पहले से भी अधिक प्रदूषित हो जाती हैं।

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