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जनज्वार विशेष

सांप्रदायिकता के गुजरात मॉडल के रास्ते प्रधानमंत्री बने मोदी, अब इसके यूपी मॉडल से योगी बनेंगे देश के पीएम

Janjwar Desk
17 Oct 2020 4:15 PM IST
सांप्रदायिकता के गुजरात मॉडल के रास्ते प्रधानमंत्री बने मोदी, अब इसके यूपी मॉडल से योगी बनेंगे देश के पीएम
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एक ऐसा मॉडल जिसमें गोधरा काण्ड विकास का एक मार्ग बन गया। एक ऐसा विकास जिसमें कातिल सरकार के लिए पूजनीय बन गए और जिसने भी आवाज उठाई वे सभी संजीव भट्ट बन गए...

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

वर्ष 2014 में हमारे देश में राजनीतिक स्तर पर अभूतपूर्व परिवर्तन हुए। एक राज्य के लम्बे समय तक रहे मुख्यमंत्री लच्छेदार और धाराप्रवाह झूठ, विपक्ष पर मनगढ़ंत आरोप और हरेक के अकाउंट में 15 लाख रुपये जैसे जुमले गढ़कर प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हो गए। एक ऐसे विकास का मॉडल पर अपनी पीठ थपथपाते रहे, जिसमें जनता का विकास नहीं था, प्राकृतिक संसाधन नहीं थे, बस राजमार्ग थे, उद्योग थे और बंदरगाह थे।

एक ऐसा मॉडल जिसमें गोधरा काण्ड विकास का एक मार्ग बन गया। एक ऐसा विकास जिसमें कातिल सरकार के लिए पूजनीय बन गए और जिसने भी आवाज उठाई वे सभी संजीव भट्ट बन गए। गोधरा काण्ड एक ऐसा खुला खेल था, जिसमें राज्य सरकार यह आजमाना चाहती थी कि सबकुछ करने के बाद भी न्यायालयों से अपने मान-मुताबिक़ फैसला लिखवाया जा सकता है या नहीं और अनेक बेगुनाहों का क़त्ल करवाकर भी पाकसाफ रहा जा सकता है या नहीं।

एक दूसरा प्रयोग यह भी था कि राज्य की और देश की जनता कितना बर्दाश्त कर सकती है। प्रयोग सफल रहे, खुलेआम क़त्ल करने वाले बरी होते रहे, क़त्ल का हुक्म देने वाले राजनीति में पहले से अधिक तेजी से बढ़ते रहे, बेगुनाहों से जेल भरती रही और जनता धर्म और जाति में उलझती रही।

जाहिर है कुख्यात गुजरात मॉडल को साकार बनाने वाले अब जब पूरे देश की सत्ता संभाल रहे हैं तब पूरे देश को ही ऐसा बना दिया है। दूसरी तरफ संघ के इशारे पर नाकाबिल और अनेक आपराधिक मामलों में लिप्त योगी जी अचानक से अंतिम समय में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए और इसके बाद से जो इस राज्य के हालात हैं, उससे तो यही लगता है कि वे अब प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने लगे हैं।

जनता की आवाज कुचलना, प्रश्न पूछने वाले को राजद्रोही बताना, पुलिस को अपराधियों से भी अधिक दुर्दांत अपराधी बल में बदल देना, संगीन अपराधियों की तरफदारी करना और पीड़ितों की ह्त्या करना, जनता को जाति और धर्म के आधार पर बाँट देना – यही पहले गुजरात मॉडल था और अब उत्तर प्रदेश मॉडल है, और इसी के सहारे एक दिन योगी प्रधानमंत्री बन चुके होंगे। उनका विकास भी अखिलेश यादव की अधूरी परियोजनाएं हैं, बनने वाला भव्य मंदिर है और परेशानियों से जूझता समाज है।

योगी जी जब सत्ता में आये थे तब पुलिस ने मनमाने तरीके से एनकाउंटर किया और उसके बाद सत्ता का सुख भोगती मीडिया ने इसे महान उपलब्धि बताया। कई दिनों तक लगातार गुंडों के आत्मसमर्पण की खबरें चलती रहीं। अगर यह मान लें कि सारी खबरें सही थीं कि गुंडे उत्तर प्रदेश से ख़त्म हो गए तब तो यह भी मानना पड़ेगा कि इसके बाद जितने भी बलात्कार हुए, जितनी भी हत्याएं हुईं या जितनी भी गुंडागर्दी हो रही है वह सब सरकार और पुलिस के संरक्षण में की जा रही है।

वैसे यह तथ्य तो पूरी तरह से सही है कि सरकार पूरी तरह से गुंडों को संरक्षण दे रही है, और बीजेपी के अगली कतार के नेता किसी भी अपराध को अंजाम देने के लिए स्वतंत्र हैं या फिर किसी अपराधी की मीडिया के सामने वकालत करने के लिए स्वतंत्र हैं। सरकारी व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाने वाला हरेक व्यक्ति सरकार के लिए डॉ कफील खान है।

देश के प्रधानमंत्री जब खुले तौर पर योगी सरकार की तारीफ़ करते हैं, तब सबकुछ स्पष्ट हो जाता है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के लिए देश की आदर्श व्यवस्था क्या है? देश को कोंग्रेस मुक्त करते-करते मोदी और योगी ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से भी बदतर हालात में खड़ा कर दिया है। अंग्रेज भी सड़कें, पुल, शहर, परिवहन के साधन विकसित करते रहे थे पर जनता उनकी नजर में गुलाम ही थी। आज का दौर भी ऐसा ही है, जहां दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बागडोर अपराधियों के हाथ में है, और अब शासन का मकसद अपराधियों द्वारा, अपराधियों के लिए रह गया है।

आश्चर्य यह है कि इन दिनों दुनिया के अनेक देशों में लोकतंत्र बचाने के लिए बड़े आन्दोलन चल रहे हैं – बेलारूस में अनेक महीनों से सरकार के विरुद्ध आन्दोलन किये जा रहे हैं, थाईलैंड में राजशाही के विरुद्ध आन्दोलन किया जा रहा है, किर्गिस्तान में जनता के विरोध के चलते चुनावों के नतीजे वापस कर दिए गए, अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर आन्दोलन पूरी दुनिया महीनों से देख रही है – पर हमारे देश में जनता और विपक्ष ने खामोशी की एक अजीब सी चादर ओढ़ ली है। अब विद्रोह दो-तीन ट्वीट तक सीमित रह गया है। ऐसे में किसी दिन योगी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे हों तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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