अडानी समेत चंद कॉर्पोरेट घरानों को तरह तरह के फायदे पहुंचाती मोदी सरकार मनरेगा और अन्य सामाजिक-खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को लगातार कर रही कमजोर
विशद कुमार की रिपोर्ट
वैसे तो पूरे देश में ऐतिहासिक रोजगार गारन्टी कानून मनरेगा को कमजोर किये जाने को लेकर मनरेगा मजदूरों में असंतोष है और सभी अपनी अपनी तरह से इसका विरोध भी कर रहे हैं। इसी विरोध के आलोक में पिछले दो माह से दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश के विभिन्न क्षेत्रों के मनरेगा मजदूर और मनरेगा मजदूर संगठन धरना दे रहे हैं।
पिछले दिनों लातेहार जिला के मनिका प्रखंड में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के ऐतिहासिक मौके पर सैकड़ों मनरेगा मजदूर, पारम्परिक ग्राम प्रधान, पंचायत जनप्रतिनिधि एवं मजदूर संगठन से जुड़े लोगों ने केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए ग्राम स्वराज मजदूर संघ, मनिका के बैनर तले प्रखंड कार्यालय पर एक मजदूर सम्मेलन किया गया। जिसमें अगले एक साल तक चलने वाले आन्दोलन की विस्तृत रूपरेखा की घोषणा की गई। जिसमें कहा गया कि पर्चा और पोस्टर के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा देश के ऐतिहासिक रोजगार गारन्टी कानून मनरेगा को कमजोर किये जाने का पर्दाफाश किया जयेगा l सिर्फ इतना ही नहीं लगातार विभिन्न स्तरों पर सम्मेलन, विचारगोष्ठियां भी आयोजित की जाएंगीl अवसर पर मजदूरों ने राज्यपाल के नाम एक मांग पत्र बीडीओ के माध्यम से दिया गया।'
वहीं दूसरी तरफ 2 मई को राजभवन (रांची) के समक्ष एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन किया गया। झारखंड नरेगा वॉच द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में झारखंड के विभिन्न जिलों से खासकर 5वीं अनुसूची जिलों से सैंकड़ों मनरेगा मजदूर, पारंपरिक ग्राम प्रधान, पंचायत जनप्रतिनिधि व मज़दूर संगठन से जुड़े लोग शामिल हुए। बताते चलें कि 23 फ़रवरी 2023 से 2 मई 2023 के बीच राज्य में 2.23 लाख जॉबकार्ड डिलीट किए गए हैं और केवल 51,783 नए कार्ड बने हैं, जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि मजदूरों का जाॅब कार्ड फिर से आधार से न जुड़े, यह वजह दिखाकर ABPS न हुए कार्ड को डिलीट किया जा रहा है। नरेगा वॉच द्वारा 237 ऐसे परिवारों के सर्वेक्षण में पता चला है कि उनमें से 77% को तो पता ही नहीं था कि उनका जॉब कार्ड रद्द किया गया है।
अवसर पर नरेगा वॉच के लातेहार जिले के मनोज भुइयां ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2023 -24 के लिए केन्द्रीय बजट में सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित कर मनरेगा मजदूरों, दलितों, आदिवासियों तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर चोट किया है। यह पिछले साल की तुलना में 33% कम है। जीडीपी के अनुपात में यह आवंटन कार्यक्रम के इतिहास में सबसे कम है।
भुइयां के कहा कि इस साल ऑनलाइन मोबाइल हाजरी प्रणाली (NMMS) और आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) को अनिवार्य कर मनरेगा मजदूरों को बंधुआ मजदूरी करने के लिए धकेल दिया गया है। इन दोनों तकनीकों के कारण बड़े पैमाने पर मज़दूर काम व अपने मज़दूरी से वंचित हो रहे हैं।
लोहरदगा से आई अरकोसा पंचायत की मनरेगा मेट शीला कुमारी ने बताया कि NMMS के कारण मज़दूरों की परेशानियां और बढ़ गयी है। अब काम ख़त्म होने के बाद भी फोटो के लिए मज़दूरों को सुबह और दोपहर कार्यस्थल पर रहना पड़ता है। NMMS में विभिन्न तकनीकि समस्याओं व इन्टरनेट नेटवर्क की अनुपलब्धता के कारण कई बार न हाजरी चढ़ पाती है और न फोटो। इसके कारण मज़दूरों द्वारा की गई मेहनत पानी हो जाता है और वे अपनी मज़दूरी से वंचित हो जाते हैं। रांची जिले के कांके से आई मनरेगा मज़दूर शीला देवी ने स्पष्ट कहा कि पहले हाजिरी कागज़ में बनता था जो सब मज़दूरों को दिखता था। अब तो मोबाइल में क्या होता है, समझ में नहीं आता है।
पश्चिमी सिंहभूम के संदीप प्रधान ने मज़दूरों की समस्याओं को साझा करते हुए कहा कि एक ओर मोदी सरकार आधार से हो रहे फायदे का फर्जी प्रचार में व्यस्त हैं और दूसरी ओर ABPS के कारण मज़दूर अपने काम व मज़दूरी से वंचित हो रहे हैं। अगर मस्टर रोल में कुल मज़दूरों में केवल एक भी ABPS लिंक्ड नहीं है, तो सभी मज़दूरों का भुगतान रोक दिया जा रहा है। राज्य के लगभग 1 करोड़ मज़दूरों में केवल आधे ही ABPS लिंक्ड हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व आयुक्त के सलाहकर बलराम ने कहा कि आज राज्यपाल के समक्ष धरना देकर मांग की जा रही है कि राज्यपाल परिस्थिति में हस्तक्षेप करे, खास कर पांचवी अनुसूची क्षेत्र के लिए वे मुख्यतः ज़िम्मेवार है। चाहे NMMS हो या ABPS हो, ये कानून के विपरीत राज्य आदिवासी सलाहकार परिषद में बिना चर्चा व अनुमोदन के लिए लागू कर दिया गया है। यह ग्राम सभा, पांचवी अनुसूचि और लोकतंत्र का अपमान है।
रांची के कांके सहायता केंद्र की अर्पणा बारा ने सवाल किया कि अगर सरकारी पदाधिकारियों के लिए सातवां वेतन आयोग सिफारिश लागू कर लाखों रुपए तनख्वाह मिल रहा है, तो मोदी सरकार मज़दूरों को तुच्छ मज़दूरी क्यों दे रही है? मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों ने मनरेगा को ICU में डाल दिया है और मज़दूरों को सड़क पर ला दिया है।
वक्ताओं ने कहा कि झारखंड समेत पूरे देश के मनरेगा मज़दूर 13 फ़रवरी से 100 दिनों तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर इन मुद्दों पर धरना दे रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार का मज़दूर विरोधी रवैया जारी है। झारखंड किसान परिषद के अम्बिका यादव ने कहा कि एक तरफ मज़दूर अपने पेट के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं और दूसरी ओर मोदी सरकार मनरेगा को ख़त्म करके मज़दूरों को मारने पर तुली है।
सामाजिक कार्यकर्ता सिराज दत्ता ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ अडानी व चंद कॉर्पोरेट घरानों को तरह तरह के फायदे पहुंचा रही है और दूसरी तरफ मनरेगा समेत अन्य सामाजिक व खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को लगातार कमज़ोर कर रही है।
बगईचा के टॉम कावला ने कहा कि अगर रोजगार के लिए आदिवासी बेबस होकर गांव से दूसरे राज्यों में पलायन करें, तो उनका जल, जंगल, ज़मीन लूटना आसान होगा। यही सरकार की असली साजिश है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि 2006 से ही झारखंड के लगभग एक करोड़ मनरेगा मज़दूरों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मनरेगा योजना एक महत्त्वपूर्ण जीवनरेखा रही है। लेकिन पिछले कुछ सालों से खास कर 2023 में देश के मजदूरों सहित ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर मोदी ने सीधा हमला कर दिया है।
नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि यह दुःख की बात है कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, इससे मजदूरों, दलितों, आदिवासियों एवं कमजोर वर्गों का सरकार के उदासीन रवैये से मोह भंग होना लाजिमी है। 2019 चुनाव के पहले वर्तमान सत्तारूढ़ी दलें बढ़चढ़ कर मनरेगा मज़दूरों के अधिकारों की बात करती थी, लेकिन अब चुप्पी साधी हुई हैं। अभी मज़दूरों को काम की ज़रूरत है लेकिन राज्य के अनेक गावों में कई महीनों से एक भी कच्ची योजना का कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि राज्य में केंद्र की इन नीतियों व प्रशासनिक उदासीनता के कारण व्यापक पैमाने पर मज़दूरी भुगतान बकाया है। गढ़वा से आए रामदेव भुइयां ने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि उनके गांव के अनेक मज़दूर फ़रवरी से भुगतान के इंतज़ार में हैं।
लेकिन प्रशासनिक उदासीनता का यह हाल है कि मजदूरों को बिना कोई कारण बताये जॉबकार्ड रद्द कर दिया ज रहा है, जिससे वे काम कर ही न पाएं, लोहरदगा से आई साबित एक्का ने कहा कि कार्ड रद्द करने के कारण में यह कहा गया कि “मज़दूर काम करने में इच्छुक नहीं है” जबकि मज़दूर तो गांव में काम के इंतज़ार में बैठे हैं।
धरने के अंत में सभी ने दृढ संकल्प लिया की मनरेगा की लड़ाई को तब तक चालू रखेंगे जब तक मांग पूरी नहीं होगी। धरना के अंत में राज्यपाल को संबोधित एक 6 सूत्री मांग पत्र दिया गया।
धरने में अमृता उरांव, अम्बिका यादव, अफज़ल अनीस, अर्पणा बारा, बुधनी उरांव, बलराम, देवंती, जेम्स हेरेंज, जयप्रकाश टोप्पो, जयंती मेलगंडी, हेलेन सुंडी, कौशल्या हेम्ब्रम, लाल बिहारी सिंह, मनोज भुइयां, मुन्नी देवी, मुग़ले आज़म, मखलदेव सिंह, नन्द किशोर गंझु, , रामचंद्र माझी, रामदेव भुइयां, सनियारी, शीला देवी, सबिता एक्का, संदीप प्रधान, टॉम कावला समेत कई वक्ताओं ने भी अपनी बात रखी।