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हाशिये का समाज

देश में हर 77 मिनट में होती है एक महिला की निर्मम हत्या, ज्यादातर नृशंस हत्याओं को अंजाम देते हैं परिजन-रिश्तेदार

Janjwar Desk
24 Nov 2022 12:36 PM IST
देश में हर 77 मिनट में होती है एक महिला की निर्मम हत्या, ज्यादातर नृशंस हत्याओं को अंजाम देते हैं परिजन-रिश्तेदार
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साल 2021 में हर घंटे औसतन 5 से अधिक महिलाओं की हत्या परिवार के सदस्यों द्वारा की गयी, जिन 81000 महिलाओं को मौत के घाट उतारा गया, उनमें से 56 प्रतिशत यानि 45000 हत्याएं परिवार के सदस्यों द्वारा की गईं...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

At the global level, more than 5 girls or women are killed every hour by family members in 2021. हमारे देश में इस समय आफताब पूनावाला द्वारा श्रद्धा की हत्या सबसे बड़ा समाचार है। हालांकि इस समाचार के बीच में ही अनेक इस प्रकार की हत्याओं की खबरें आईं, पर उनपर किसी ने ध्यान नहीं दिया या फिर उन्हें जानबूझ कर अनदेखा कर दिया। दूसरी तरफ श्रद्धा/आफताब का मामला लगातार जिन्दा है क्योंकि इसमें हिन्दू धर्म के साथ एक दूसरा धर्म भी जुड़ा है।

हमारे देश में कुछ महिलाओं की हत्या विभिन्न कारणों से बस समाचार बनते हैं, मीडिया उन्हें दिन रात दिखाता है, पर हमारे समाज की हालत ऐसी है कि इन्हीं समाचारों के बीच में ही अनेक महिलाओं की हत्या हो जाती है, और कोई समाचार नहीं आता। समाज के तौर पर हम ऐसे मामलों पर संवेदनहीन हो चुके हैं। सरकार, प्रशासन, न्यायालय और पुलिस तो महिलाओं के सन्दर्भ में तो पहले से ही संवेदनहीन रहे हैं। हमारे देश में महिलाओं और मानवाधिकार के बात करने वाले जेलों में ठूंसे जाते हैं और बलात्कारी, हत्यारे और आतंकवादी बेल पर बाहर घूमते हैं, चुनाव प्रचार करते हैं, प्रवचन देते हैं और सत्ता में भागीदारी निभाते हैं।

आफताब और श्रद्धा का मामला केवल महिला हत्या का ही नहीं है, बल्कि पार्टनर या पति द्वारा महिला की हत्या का है। पति, पार्टनर या सम्बन्धियों द्वारा महिलाओं की हत्या एक विश्व्यापी समस्या बन चुका है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 के दौरान हरेक घंटे औसतन पांच से अधिक महिलाओं की हत्या परिवार के सदस्यों द्वारा की गयी। पिछले वर्ष पूरी दुनिया में 81000 महिलाओं की हत्या की गयी, जिसमें से 56 प्रतिशत यानि 45000 हत्याएं परिवार के सदस्यों द्वारा की गईं।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार परिवार के सदस्यों द्वारा महिलाओं की हत्या के आंकड़े इससे कहीं अधिक होंगे, क्योंकि ऐसी हरेक 10 में से 4 हत्या के सबूत पूरे नहीं होते। परिवार या सम्बन्धियों द्वारा महिलाओं की हत्या के सन्दर्भ में सबसे खतरनाक क्षेत्रों में अफ्रीका को आना जाता है, जहां प्रति एक लाख महिलाओं में से 2.5 की हत्या घर वाले ही करते हैं। इसके बाद अमेरिका में प्रति एक लाख महिलाओं में 1.4 की हत्या, ओसेनिया में 1.2, एशिया में 0.8 और यूरोप में 0.6 हत्याएं होती हैं, पर वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार परिचितों द्वारा महिलाओं की सबसे अधिक हत्याएं एशिया में की गईं, जहां इस तरह की 17800 हत्याएं की गईं।

हत्याओं के सन्दर्भ में देखें तो दुनिया में होने वाली कुल हत्याओं में से लगभग 81 प्रतिशत हत्याएं पुरुषों द्वारा की जाती हैं, पर इस संख्या में से महज 11 प्रतिशत हत्याएं परिचितों द्वारा की जाती हैं। हमारी दुनिया में जब एक समस्या का समाधान नहीं होता, बल्कि पहले से अधिक विकराल होती जाती है तब उस समस्या से ध्यान भटकाने के लिए उसे एक नए कलेवर में प्रस्तुत किया जाता है।

वर्ष 1970 के दशक से दुनिया वायु प्रदूषण और महिला अधिकारों पर चर्चा कर रही है, खूब चर्चाएँ की गईं, पर कोई असर नहीं निकला। महिलाओं की हत्या (femicide) एक विश्व्यापी समस्या है और धीरे-धीरे इतनी सामान्य हो चली है कि अब तो कोई समाचार भी नहीं बनता। साल दर साल महिला हत्या का दायरा व्यापक होता जा रहा है, पर दुनिया अब लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की चर्चाओं में महिला हत्या का मुद्दा भूल गयी है।

हमारे देश में नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में देश में 6795 महिलाओं की हत्या केवल दहेज़ कारणों से की गयी, यानी हरेक 77 मिनट में एक हत्या। यह केवल दहेज़ मामलों की हत्याओं की संख्या है, इसके अतिरिक्त देश भर में हरेक दिन 77 बलात्कार होते हैं और इनमें से बहुत सारी पीड़िताओं की हत्या साक्ष्य छुपाने के लिए कर दी जाती है। कई बार तो पुलिस और अस्पताल भी बलात्कार पीडिता की हत्या में शरीक रहते हैं। हॉनर किलिंग या परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर हमारे देश में लगभग 100 महिलाओं की हत्या हरेक वर्ष कर दी जाती है। आश्चर्य यह है कि सरकारी नीतियाँ और मीडिया महिला हत्या के सन्दर्भ में खामोश रहते हैं, और क़ानून व्यवस्था पूरी तरह से लचर है।

एमनेस्टी इन्टरनेशनल की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मेक्सिको में हरेक दिन औसतन 10 महिलाओं की हत्या कर दी जाती है। मेक्सिको में पिछले तीन वर्षों से हरेक तबके की महिलायें इसके विरोध में प्रदर्शन कर रही हैं पर हत्याओं के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार मेक्सिको में पिछले 5 वर्षों के दौरान महिलाओं की ह्त्या के मामलों में 137 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गयी है। दक्षिण अमेरिकी देशों में यह समस्या बहुत विकराल है। कोलंबिया में हरेक महीने औसतन 15 महिलाओं की हत्या कर दी जाती है। दक्षिण अमेरिका के 25 देशों में से 14 देशों में यह समस्या बहुत विकराल है।

महिलाओं की प्रति एक लाख आबादी के सन्दर्भ में एल साल्वाडोर में 6.1 हत्याएं, होंडुरस में 5.1 हत्याएं, ब्राज़ील में 1.1 और अर्जेंटीना में भी 1.1 हत्या होती है। अफ्रीका महाद्वीप के देशों के लिए यह संख्या 3.1 हत्या है। महिलाओं की हत्या के सन्दर्भ में विश्व औसत प्रति एक लाख महिला आबादी में 2.17 हत्या है। दक्षिण अफ्रीका में हरेक दिन औसतन 6 महिलाओं की ह्त्या कर दी जाती है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में औसतन हरेक वर्ष 87000 महिलाओं की ह्त्या वर्ष 2019 तक होती थी, पर वर्ष 2020 में कोविड 19 के कारण विश्व्यापी लॉकडाउन के बाद यह समस्या और भी गंभीर हो गयी है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार महिलाओं की कुल हत्या में से विभिन्न देशों में 50 से 90 प्रतिशत तक हत्याएं पति, पूर्व पति, पुरुष दोस्त या फिर दूसरे ऐसे जानने वालों द्वारा की जाती है, जिन्हें महिलायें अपना विश्वस्त या भरोसेमंद मानती हैं।

हमारे देश में इस तर्क को समझाना आसान है, क्योंकि दहेज़ कारणों से की जाने वाली सभी हत्याओं में पति और उनके रिश्तेदार शामिल रहते हैं। इसके अतिरिक्त सभी तथाकथित हॉनर-किलिंग में भे पिता, भाई या अन्य रिश्तेदार शामिल रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में हरेक वर्ष 50000 से अधिक महिलाओं की हत्या उनके पहचान वालों या सम्बन्धियों द्वारा की जाती है।

यूनाइटेड किंगडम में वर्ष 2019 तक औसतन 120 महिलाओं की हत्या प्रतिवर्ष की जाती थी, पर वर्ष 2020 के मार्च से अगस्त महीनों के बीच ही 180 हत्याएं दर्ज की गईं थीं। वर्ष 2021 के मार्च से सितम्बर तक वहां 81 महिलाओं की हत्या की जा चुकी थी। यूनाइटेड किंगडॉम की एक जागरूक महिला, करेन इंगला स्मिथ, सोशल मीडिया पर ब्लॉग के माध्यम से एक मुहिम चलाती हैं, काउंटिंग डेड वीमेन।

इस ब्लॉग में वे उन महिलाओं की पूरी जानकारी बताती हैं जिनकी हत्या की गयी है। मार्च 2021 के शुरू में ही सारा एड्वर्ड नामक महिला की हत्या ड्यूटी पर तैनात एक पुलिस ऑफिसर ने बलात्कार के बाद की थी, और इसकी चर्चा मीडिया और समाज में बहुत की गयी थी। करेन इंगला स्मिथ के अनुसार इसके बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और इसके बाद के 28 सप्ताह में ही 81 और महिलाओं की हत्या की जा चुकी थी।

उनकी सूची में 5 भारतीय मूल की महिलाओं – सुखजीत उप्पल, तमारा पदी, सुखजीत बदिअल, स्मिता मिस्त्री और गीतिका गोयल – के नाम भी शामिल हैं। करेन इंगला स्मिथ के अनुसार महिलाओं की ह्त्या किसी वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह श्वेतों, अश्वेतों, अप्रवासी, गरीब अमीर, हरेक वर्ग में है, हालांकि श्वेत, युवा और मध्यमवर्गीय वर्ग की महिलाओं की हत्या जब अनजान लोगों द्वारा की जाती है, तब इसकी चर्चा सर्वाधिक की जाती है।

फ्रांस में वर्ष 2021 में अगस्त तक 80 से अधिक महिलाओं की हत्या की जा चुकी थी। हाल में ही फ्रांस के बौर्डिओक्स शहर में पुलिस के बड़े अधिकारियों पर इस सम्बन्ध में लापरवाही के आरोप से सम्बंधित मुक़दमा भी दायर किया गया है। चाहिनेज़ बौटा नामक एक महिला ने स्थानीय पुलिस से अपने पति के खिलाफ मार्च में शिकायत दर्ज कराई थी, शिकायत के अनुसार उसके पति मौनिर बौटा उसके साथ मारपीट करते और जान से मारने की धमकी भी देते थे, पर पुलिस ने इस शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की और दो महीने बाद ही उसके पति ने चाहिनेज़ बौटा को पहले गोली मारी और फिर बीच सड़क पर उसके शरीर पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी, जिससे उसकी मौत हो गयी। शुरुआती जांच से पता चला है कि पुलिस ने उसकी शिकायत ठीक से नहीं लिखी थी और जिस पुलिस अधिकारी ने शिकायत दर्ज की थी वह भी घरेलू हिंसा के आरोप में सजा काट चुका है।

भारत, फ्रांस, अफ़ग़ानिस्तान, टर्की, होंडुरास और मेक्सिको जैसे देश तो महिला हत्या के संदर्भ में दुनियाभर में बदनाम हैं, पर अमेरिका में भी यह समस्या बहुत गंभीर स्वरुप ले चुकी है। सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल के अनुसार 19 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं में होने वाली मौतों में हत्या चौथा सबसे बड़ा कारण है, जबकि 20 से 44 वर्ष की उम्र की महिलाओं में मृत्यु का यह पांचवां सबसे बड़ा कारण है। बदनाम फ्रांस में वर्ष 2018 में 120 महिलाओं की हत्या की गयी, जबकि उसी वर्ष अमेरिका में 1014 महिलाओं की ह्त्या की गयी। वर्ष 2019 में अमेरिका में स्थिति और भी खराब थी। इस वर्ष बदनाम टर्की में 474 महिलाओं की हत्या की गयी थी, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 2991 तक पहुँच चुका था।

जिस तरीके से हमारे देश में पिछड़ी जातियों और आर्थिक स्तर पर कमजोर लोगों में महिला हत्या की समस्या शेष आबादी से अधिक विकराल है, उसी तरह अमेरिका में भी अश्वेतों और जनजातियों में यह समस्या अधिक गंभीर है। नेशनल इंडिजेनस विमेंस रेस्पोंस सेंटर के आंकड़ों के अनुसार अश्वेतों और जनजातियों में यह समस्या श्वेत महिलाओं की तुलना में 6 गुना अधिक है। पुलिस इनके मामलों में लापरवाह भी रहती है। लापता श्वेत लोगों में से 81 प्रतिशत का सुराग पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने के एक सप्ताह के भीतर ही लगा लेती है, जबकि अश्वेतों के लिए यह संख्या 61 प्रतिशत ही है।

फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन के अनुसार अमेरिका में 92 प्रतिशत महिलाओं की हत्या उनके जानने वालों द्वारा की जाती है, जबकि 63 प्रतिशत हत्याएं तो वर्तमान पति द्वारा ही की जाती हैं। अमेरिका में एक नर्स, डौन विलकॉक्स निजी तौर पर ऐसी महिलाओं का रिकॉर्ड एकत्रित करती हैं जिनकी ह्त्या की गयी हो, उनके अनुसार यह समस्या समाज में इतनी गहराई तक पसरी है कि इसे हम सामान्य समझने लगे हैं और इस पर कोई आवाज नहीं उठती। कानून की समस्या यह है कि अधिकतर हत्याएं पति या फिर अंतरंग मित्रों द्वारा की जाती हैं, जिन पर महिलायें भरोसा करती हैं – ऐसी हत्याओं का कोई गवाह नहीं होता, और महिला की मृत्यु हो चुकी होती है।

महिला समानता और महिला सशक्तीकरण का नारा बुलंद करते-करते समाज में महिला हत्या एक नया सामान्य हो चला है। यह दुनिया भर की समस्या है, पर महिलाओं की हत्याओं की संख्या के सन्दर्भ में हम सही मायने में विश्वगुरु हैं। यहाँ की महिलाओं की स्थिति को प्रधानमंत्री मोदी के बयानों से अच्छी तरह समझा जा सकता है।

प्रधानमंत्री लगातार अपने आप को तीन तलाक, उज्वला योजना, शौचालय निर्माण इत्यादि के माध्यम से महिलाओं का मसीहा साबित करने पर तुले रहते हैं, तो दूसरी तरफ बलात्कार में शीर्ष पर और महिला अपराधों के संगर्भ में दूसरे स्थान पर काबिज राज्य उत्तर प्रदेश के क़ानून व्यवस्था को सभी राज्यों से बेहतर बताते हैं। दुनिया के देश अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं पर आंसू बहाकर अपने देश की स्थिति पर आसानी से पर्दा डाल लेते हैं।

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