पूर्व IPS ने कहा किसान से माफी मांगे मोदी सरकार, देश विरोधी कानूनों को तुरंत ले वापस
लखनऊ। आजादी के बाद देश में किसी आंदोलन पर सबसे ज्यादा आंसू गैस के गोले चलाने, किसान नेताओं पर हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कराने, सड़कों को खोदकर उनका रास्ता रोकने, उन पर लाठी चलाने वाली और उन्हें बदनाम करने के लिए अपमानजनक आरोप लगाने वाली मोदी सरकार को किसानों से माफी मांगनी चाहिए।
मोदी सरकार को बिना किसी शर्त के तत्काल देश विरोधी तीनों कानूनों को वापस लेना चाहिए। कम से कम उसे हर हाल में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों की फसल खरीद की शर्त को शामिल करने की घोषणा करनी चाहिए। यह मांग आज 29 नवंबर को किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए लिए राजनीतिक प्रस्ताव में आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने उठाई।
इस प्रस्ताव को प्रेस में जारी करते हुए एआईपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आई जी एस. आर. दारापुरी ने कहा कि यह दुखद है कि आज जब सरकार के प्रति उपजे गहरे अविश्वास के कारण किसान सड़कों पर हैं, तब भी प्रधानमंत्री द्वारा की गई "मन की बात" में इन कानूनों को वापस लेने और किसानों के साथ किए दुर्व्यवहार पर एक शब्द नहीं बोला गया। उलटे वह अभी भी देशी विदेशी वित्तीय पूंजी और कारपोरेट घरानों के मुनाफे के लिए देश की खेती किसानी को बर्बाद करने वाले अपनी सरकार द्वारा लाए कानूनों का बचाव ही करते रहे।
उनके गृहमंत्री शर्तें रखकर किसानों को वार्ता के लिए बुला रहे हैं, जबकि किसानों की मांग साफ है कि देश विरोधी तीनों कानूनों को सरकार को वापस लेना चाहिए और कम से कम कानून में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीद की बाध्यता का प्रावधान जोड़ना चाहिए। ऐसी स्थिति में सरकार को किसानों की मांग पर अपना पक्ष स्पष्ट करना चाहिए, न कि किसानों और उनके आंदोलन को बदनाम करने और उसका दमन करने में अपनी ऊर्जा लगानी चाहिए।
एआईपीएफ ने अपने प्रस्ताव में कहा कि 90 के दशक में आर्थिक नीतियों में किए गए बदलाव भी एक हद तक देश की खेती किसानी को बर्बाद करने वाले इन कानूनों के लिए जिम्मेदार हैं। हालत इतनी बुरी है कि जिस काम के घंटे आठ करने के लिए पूरी दुनिया में मजदूरों का संघर्ष हुआ और शिकागो में तो इसके लिए मजदूरों ने अपने खून को बहाकर अपना झंडा ही लाल कर दिया, उसे भी नए श्रम कोड में मोदी सरकार ने बदल कर 12 घंटे कर दिया है।
आज लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले राजनीतिक दलों, सामाजिक और नागरिक संगठनों का फर्ज है कि वह किसानों के जारी आंदोलन के साथ मजबूती से खड़े होकर सरकार को इन कानूनों को वापस लेने के लिए बाध्य करें, साथ ही इन हालातों के लिए जिम्मेदार वित्तीय सम्राटों के पक्ष में बन रही नीतियों को पलटने के लिए भी राजनीतिक पहल करें।