झारखंड के मनिका में 256 मनरेगा मजदूरों को नहीं मिला बेरोजगारी भत्ता, दोषियों पर नीलाम पत्र दायर
(झारखण्ड नरेगा वाच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने बताया - पिछले साल 2020 से अब तक मनरेगा योजनाओं में हो रहा व्यापक भ्रष्टाचार)
विशद कुमार की रिपोर्ट
जनज्वार। भले ही सरकार जनहित में लाख योजनाएं बना ले, लेकिन जबतक उसका ईमानदारी से क्रियान्वयन नहीं होगा, तबतक वह हमेशा 'ढाक के तीन पात' साबित होता रहेगा। आए दिन इसके कई उदाहरण मिलते रहे हैं। हाल में ही इसी कड़ी में झारखंड के लातेहार जिला अंतर्गत मनिका प्रखंड की पांच पंचायतों के 256 मनरेगा मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता का भुगतान नहीं किए जाने का मामला प्रकाश में आया है।
मामले पर चर्चा करने से पहले बताना होगा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा/MNREGA) भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसके अंतर्गत एक परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 कार्य दिवस के रोजगार की गारंटी दी गई है, चाहे उस परिवार में एक वयस्क सदस्य हो या एक से अधिक। इसे 7 सितंबर 2005 को अधिनियमित किया गया था। यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है।
बता दें कि इस योजना के लाभ के लिए परिवार के वयस्क सदस्यों द्वारा आवेदन किया जाता है। इसके 15 दिन के अंदर रोजगार प्रदान किया जाता है। यदि किसी कारणवश 15 दिन के अंदर रोजगार प्राप्त नहीं होता है, तो सरकार के द्वारा उसे बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जाता है। यह भत्ता पहले 30 दिन के मजदूरी का एक चौथाई होता है। इसके बाद न्यूनतम मजदूरी दर का पचास प्रतिशत प्रदान किया जाता है। मतलब 30 दिन के बाद भी अगर काम नहीं दिया गया तब 50 फीसदी राशि बेरोजगारी भत्ते के रूप में दी जाती है। उदाहरण के लिए, लगातार 40 दिनों तक किसी को काम नहीं दिया गया, तो उसे शुरू के 30 दिनों के लिए तय मजदूरी का 25 फीसदी और शेष 10 दिन के लिए तय मजदूरी का 50 फीसदी राशि बेरोजगारी भत्ते के रूप में प्राप्त होगा।
कहना ना होगा कि सरकारी सिस्टम में बैठे अधिकारी, सार्वजनिक मंचों से लाख, मजदूरों को उनके क़ानूनी अधिकार दिलाने की घोषणा कर लें। लेकिन व्यवहारिक धरातल पर वे ऐसा क्रियान्वित नहीं करते, यह कई बार देखा गया है। लातेहार जिले के मनिका प्रखंड के पांच पंचायतों के 256 मजदूरों को मनरेगा अंतर्गत बेरोजगारी भत्ता भुगतान मामले में प्रशासनिक ढुलमुल रवैये से तो यही साबित होता है।
मालूम हो कि सितम्बर माह 2017 से पूर्व विभिन्न तिथियों में उक्त पांच पंचायतों के मजदूरों ने मनरेगा के तहत काम की मांग की थी। लेकिन प्रखंड प्रशासन उन मजदूरों को काम देने में पूरी तरह विफल रहा था। फिर मजदूरों ने प्रावधान के तहत सबूतों के साथ बेरोजगारी भत्ते का दावा कर दिया। इसके बाद इस बीच जिले के कई उप विकास आयुक्तों के द्वारा भी इस बाबत दोषी कर्मियों से राशि वसूली कर मजदूरों को भुगतान करने के आदेश निर्गत होते रहे। लेकिन कर्मियों ने उच्चाधिकारियों की एक न सुनी और नतीजा यह रहा कि सभी 256 मजदूरों के कुल 2 लाख 73 हजार 463 रूपये 5 साल से बकाया है।
इस बावत जिला प्रशासन से अपेक्षित न्याय न मिल पाने के विरुद्ध झारखण्ड नरेगा वाच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने भारत सरकार व राज्य सरकार को पक्ष बनाते हुए झारखण्ड उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है। जिसमें न्यायालय से निर्धारित अवधि में मजदूरों को मजदूरी का भुगतान, काम न देने पर बेरोजगारी भत्ता, ग्राम सभाओं से ही योजनाओं को पारित कराने, शिकायतों के त्वरित निष्पादन हेतु मनरेगा लोकपालों की नियुक्ति कराने जैसे क़ानूनी प्रावधानों को लागू कराने की प्रार्थना की गई है।
बेरोजगारी भत्ता मुद्दे पर न्यायालय में जवाब दाखिल करने हेतु राज्य सरकार ने जिला प्रशासन से अनुपालन प्रतिवेदन की मांग (N) 346 दिनांक, 04-03-2021 के माध्यम से की। बावजूद इसके दोषी कर्मी सरकारी आदेशों की अवहेलना करते रहे। अब प्रखंड विकास पदाधिकारी मनिका ने अंचल कार्यालय, मनिका में दोषी कर्मियों के विरुद्ध 16 जुलाई 2021 को नीलाम पत्र दायर कर दिया है। दायर नीलाम पत्र के अनुसार तत्कालीन रोजगार सेवक डोंकी पंचायत के सुरेन्द्र उराँव से 84,136 रूपये, जान्हों पंचायत के रवि रंजन से 87,010 रूपये, शुद्धदेव भगत दुन्दु एवं कोपे पंचायत से क्रमश: 23,007 व 8,229 रूपये तथा विशुनबाँध पंचायत से 71,079 रूपये वसूलनीय है।
जेम्स हेरंंज बताते हैं कि पिछले साल 2020 से लेकर अब तक मनरेगा योजनाओं में व्यापक रूप से भ्रष्टाचार किया जा रहा है। ठेकेदार, बिचौलये और स्थानीय प्रशासनिक कर्मी आपस में साठगाँठ कर योजनाओं की राशि को दुधारू गाय की तरह दूह रहे हैं और उच्च स्तरीय सरकारी नुमाईन्दे एसी रूम में बैठ कर तमाशा देख रहे हैं, यदि ईमानदारी से एक - एक योजनाओं और मजदूरों की जाँच की जाए तो अरबों रुपये की हेरा फेरी उजागर होगी।
वहीं दूसरी तरफ लातेहार जिले के मनिका प्रखंड में ही मनरेगा के तहत पांच डोभा निर्माण योजनाओं की जांच में अनियमितता बरतने में का मामला सामने आया है। जांच में डोभा निर्माण में भारी गड़बड़ी का खुलासा होने के बाद लातेहार डीडीसी ने मनिका बीडीओ को दोषी लोगों से अर्थ दंड सहित 12 लाख 72,311 रुपये की वसूली करने का निर्देश दिया है।
जिन लोगों से राशि की वसूली की जानी है, उनमें मेट रम्भा देवी, रोजगार सेवक पूनम देवी, पंचायत सचिव घुरा राम, मुखिया उषा देवी, मुखिया शोभा देवी, जेई विवेक जायसवाल, जेई अजय उरांव, सहायक अभियंता विवेक जायसवाल, बीपीओ मनु उरांव, जनसेवक शत्रूधन राम, चंदन कुमार, रोजगार सेवक परमेश्वर उरांव, प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी कैलाश रजक, अरविंद पांडेय आदि कर्मी शामिल हैं। राशि वसूली से सम्बन्धित जारी की गई चिट्ठी के अनुसार मनिका ग्राम में विशुन्ति कुंवर, उमेश पासवान, कृष्णा पासवान, सुनील पासवान और संतु पासवान के डोभा निर्माण में अनियमितता की शिकायत प्रो. ज्यां द्रेज ने डीसी से की थी। डीसी ने जांच टीम का गठन कर डोभा को इन योजनाओं को स्थलीय जांच कराई। जांच में विशुन्ति कुवर के दोभा निर्माण में अनियमितता की पुष्टि हुई थी।
इस डोमा निर्माण से सम्बंधित सात लोगों से एक—एक हजार रुपये अर्थदंड सहित प्रति व्यक्ति 9,558 रुपये के हिसाब से 65,667 रुपये की वसूली करने का निर्णय लिया गया। वहीं उमेश पासवान के डोभा निर्माण में भी अनियमितता बरते जाने पर अर्थ दंड सहित प्रति व्यक्ति 9,558 रुपये के हिसाब से 66,906 रुपये, कृष्णा पासवान के डोमा निर्माण में धांधली बरतने पर 14 लोगों से अर्थ दंड की राशि सहित प्रति व्यक्ति 33,349 रुपए हिसाब से 4,66,886 रुपये की वसूली होगी। सुनील पासवान के भी डोमा निर्माण में लापरवाही बरतने की पुष्टि होने के कारण अर्थ दंड सहित प्रति दोषी व्यक्ति से 41,667 रुपये के हिसाब से 4,58,337 रुपये वसूलने का निर्देश जारी किया गया है।
वहीं संतु पासवान के डोभा निर्माण में गड़बड़ी होने की पुष्टि के बाद 7 लोगों से अर्थ दंड के साथ प्रति दोषी से 30,645 रुपये के हिसाब से 2,14,515 रुपये वसूली की जाएगी। जांच में दोषी पाये लोगों से 3 जुलाई 2021 से तीन दिनों के अंदर राशि को प्रखण्ड कार्यालय के नजारत में जमा करने का निर्देश बीडीओ को दिया गया है।