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नीतीश से सीखिए सियासी गुर, शराबबंदी के जरिए विरोधियों का ऐसे डुबा देते हैं लुटिया

Janjwar Desk
3 Dec 2021 10:13 AM GMT
नीतीश से सीखिए सियासी गुर, शराबबंदी के जरिए विरोधियों का ऐसे डुबा देते हैं लुटिया
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नीतीश कुमार व चिराग पासवान के बीच के खुशनुमा दिनों की एक तस्वीर।

शराबबंदी की हकीकत पर आलोक कुमार की रिपोर्ट

पटना। बिहार में सालों से जारी शराबबंदी अब सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सियासी छवि के लिए नाक का सवाल हो गया है। मानें या न मानें, सभी सियासी दलों के नेता चाहते हैं कि बिहार में शराबबंदी कानून समाप्त हो जाए, लेकिन नीतीश कुमार इस मुदृे पर विचार नहीं करेंगे। ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार का पूरा सियासी अस्तित्व इससे जुडा है। सीएम हर हाल में शराबबंदी को सफल बनाना चाहते हैं। यह एक ऐसा पहलू है, जिसे हकीकत में तब्दील करना संभव नहीं है।

इसके बावजूद शराबंदी पर अमल करने और अवैध शराब के कारोबार पर पूर्ण रोक को लेकर उन्होंने एक उच्च स्त्रीय बैठक की। मैराथन बैठक करीब सात घंटे तक चली। सीएम नीतीश ने एक-एक बिंदू पर समीक्षा की। इस महत्वपूर्ण बैठक में सभी मंत्री से लेकर अधिकारी और जिलों के डीएम-एसपी जुड़े थे। अंत में थानेदार पर पूरी जिम्मेदारी थोपते हुए कहा गया कि जिनके क्षेत्र में शराब बरामद होगी उनकी थानेदारी जाएगी।

यहां तक शराबबंदी प्रशासनिक मामला लगता है, लेकिन इस नीति का दुष्परिणाम यह सामने आया है कि थानेदारों ने खुद को लिए बचाने के लिए जो रास्ता अख्तियार किया उससे लोजपा, हम व अन्य पार्टियों का गणित आने वाले दिनों में बिखर जाएगा। इसका अंदाजा अभी नेताओं को नहीं लगा है, लेकिन जैसे लगेगा तो वहां पर शराबबंदी को लेकर नया बखेडा हो सकता है। जानें कैसे...

सारी जिम्मेदारी थानेदार की ही क्यों?




दरअसल, शराब के अवैध कारोबार में सीधी भूमिका होने पर थानेदार को 10 सालों तक थानेदारी से वंचित होना पड़ेगा। हालांकि, डीजीपी ने कहा कि सिर्फ थानेदार ही नहीं बल्कि ऊपर के अधिकारियों पर भी शो-कॉज होगा। फिर क्या था, यहीं से शुरु हुई खुद को बचाने की कहानी। और अब थानेदार महादलितों में मुसहर समुदाय और उनके ठौर को निशाने बना रहे हैं। यह सिलसिला जारी रहा तो कई नेताओं का करियर दांव पर लग सकता है। फिलहाल, थानेदार अपनी नौकरी बचाने में लग गए हैं। यहां पर सवाल यह है कि क्या थानेदार चाह ले तो बिहार में नीतीश कुमार की शराबंदी कानून सफल हो जाएगा? क्या शराब के अवैध कारोबार का सारा पैसा उसी के जेब में जाता है?

निशाने पर मुसहर और गरीब

राजधानी पटना की ही बात करें तो कभी मालदह आम से विख्यात दीघा क्षेत्र में एक थाना दीघा है। इन दिनों इस थाने के थानाध्यक्ष हैं राजेश कुमार सिन्हा। थानेदारी पर गाज न गिरे सो थानाध्यक्ष ​सक्रिय हो गए। बलवान शराब माफियाओं से टकराने के बदले गिरिजनों को ही टार्गेट बनाने लगे। सिन्हा साहेब लगातार दीघा मुसहरी पर धावा बोलने लगे। शराब न बनाओं, शराब न बेचो और शराब न पीयो के तहत महादलितों में से मुसहर समुदाय को 50 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुके हैं। अभी भी 16 पुरुष और 02 महिला जेल में बंद हैं।

दीघा मुसहरी के महादलितों के 145 परिवार यहां से पलायन कर गए

शराबबंदी के कारण जेल में बंद एक तिहाई हिस्सा गरीब का है। इस एक्शन के बाद दीघा थानाध्यक्ष राजेश कुमार सिन्हा के खौफ से बचने के लिए लोग दीघा मुसहरी वाला घर को छोड़कर अपने परिजनों के घर चले गए। यानि शराबबंदी के नाम पर दीघा मुसहरी बस्ती सुनसान में तब्दील हो गया। जानकारी के अनुसार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 145 महादलित परिवार झोपड़ी में रहते थे।

महादलितों को दलदल में डाला

इन लोगों की समस्याओं को दूर करने करने के लिए समाजसेवियों ने मीडिया का सहारा लिया। इसका परिणाम सामने आया। पटना नगर निगम के अधिकारियों ने इन लोगों की सुधि लेकर राजीव आवास योजना के तहत परिवेश सुधारने व घर निर्माण करवाने का संकल्प लिया। 2015 से घर निर्माण होना शुरू हुआ। आज महादलितों के पास पक्का मकान है। लेकिन सूबे में 2016 से पूर्ण शराबबंदी ने महादलितों को समस्याओं के दलदल में डाल दिया। महुआ और गुड़ से बनाने वाले रोजगार पर वज्रपात हो गया। रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई। शराब का धंधा बंद है। शराब छोड़ मुसहर समुदाय ने रद्दी कागज आदि चुनकर और बेचकर जीविकोपार्जन करने लगे। कूड़ाें के ढेर से किस्मत चमकाने वाले इन लोगों को केस में फंसाने सिलसिला जो शराबबंदी के नाम जारी हुआ वो आज भी जारी है। इसमें पढ़ने वाले स्टूडेंट्स भी शामिल हैं।

चौंकाने वाली बात, दीघा मुसहरी जीतन राम मांझी का समधियाना है

चौंकाने वाली बात यह है कि दीघा मुसहरी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के सुप्रीमो सह पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के समधियाना है। जबकि आबकारी विभाग और दीघा पुलिस की युगलबंदी से रोजाना गरीबों पर कहर बरपाया जा रहा है। पुलिसिया जुल्म इस कदर हावी है कि पटना नगर निगम की ओर से राजीव आवास योजना के तहत निर्मित मकान को छोड़कर राेड पर रहने के लिए मजबूर हैं। उसी नीतीश सरकार में जीतन राम मांझी मंत्री हैं। बावजूद इसके दीघा मुसहरी श्मशान घाट की तरह सुनसान हो चला है।

हाल यह है कि पुलिसवाले शराब माफियाओं को कुछ नहीं कर पा रहे है, पर महादलित समुदायों के घर का दरवाजा तोड़ जेवरात व पैसा तलाशने लगते हैं। पटना नगर निगम के बांकीपुर अंचल में कार्यरत दैनिक सफाईकर्मी बुधनी देवी, पति सुखू मांझी का दस हजार रुपए उड़ा ले गए। दर्जनों गरीबों का एलपीजी सिलेंडर उठा ले गए। नल, सबमरसिबल, अलमारी व अन्य सामान यहां लेकर चलते बनते हैं।

शराबबंदी के नाम पर हो रहा ये सब

स्थानीय पुलिस ये सब काम शराबबंदी के नाम पर नीतीश के राज में करती है। दलित समुदाय के लोगों का आरोप है कि पुलिसवाले नवयुवतियों को उठाकर ले जाने की धमकी तक देते हैं। पुलिसकर्मियों का कहना कि जबतक सरकार के द्वारा सख्ती रहेगा तबतक हम लोग यहां पर पुलिसिया कार्रवाई करते रहेंगे। भले ही लोग शराब पीने का धंधा बंद कर दें।

हकीकत क्या है?

1. इन सबके बीच अहम सवाल यह है कि क्या शराबंदी के नाम पर बिहार में यही हो रहा है? अगर आम आदमी से पूछेंगे तो उसका जवाब हां में होगा।

2. शराबबंदी के दौर में अवैध शराब का नेटवर्क शहर, कस्बा, गांव से मोहल्ले तक पहुंच चुका है। अब पहले से ज्यादा लोग नशे की लत में आ चुके हैं।

3. युवा अपने ही गांव और मोहल्लों में रात को चोरी की घटनाओं अंजाम देते हैं और मारपीट करते हैं।

जहां तक बात विरोधियों को निपटाने की है, तो आपको बता दें कि शराबबंदी के नाम पर पुलिस प्रशासन की सख्ती का निशाना, गरीब, दलित, महादलित, छोटे जात के लोग, मजदूरों व पिछड़ों को बनाया जाता है। इन जातियों के लोग लोक जनशक्ति पार्टी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, विकासशील पार्टी के समर्थक हैं। बता दें कि लोजपा यानि रामविलास पासवान की पार्टी का कोर वोट बैंक यही है। इसी को उनके बेटे चिराग पासवान नए सिरे से सहेजने में लगे हैं। जीतन राम मांझी और विकास सहनी का वोट बैंक भी इसी तबके के मतदाता हैं। अहम यह है कि ​चिराग के अलावा मांझी और सहनी नीतीश् सरकार में शामिल हैं, पर उनके भरोसे के आदमी नहीं हैं। नीतीश के शराबबंदी अभियान से इन्हीं का सबसे ज्यादा सियासी नुकसान हो रहा है।

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