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बिहार

Siwan News: तिहरा हत्याकांड के बाद चर्चा में खान ब्रदर्स, आतंक के पर्याय रहे शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत पर नजर तो नहीं

Janjwar Desk
6 Jan 2022 6:47 PM IST
Siwan News: तिहरा हत्याकांड के बाद चर्चा में खान ब्रदर्स, आतंक के पर्याय रहे शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत पर नजर तो नहीं
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पूर्व सांसद मो. शहाबुदिन व तिहरा हत्याकांड में आरोपी अयूब खान

Siwan News: अपराध के रास्ते बिहार की राजनीति में तीन दशक पूर्व इंट्री व चंद माह में ही लालू प्रसाद यादव के दुलरुवा बन बैठे मो शहाबुद्दीन अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन राजनीति के अपराधीकरण का इतिहास जब जब याद किया जाएगा तब बिहार में प्रमुखता से मोहम्मद शहाबुद्दीन का नाम लिया जाते रहेगा।

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

Siwan News: अपराध के रास्ते बिहार की राजनीति में तीन दशक पूर्व इंट्री व चंद माह में ही लालू प्रसाद यादव के दुलरुवा बन बैठे मो शहाबुद्दीन अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन राजनीति के अपराधीकरण का इतिहास जब जब याद किया जाएगा तब बिहार में प्रमुखता से मोहम्मद शहाबुद्दीन का नाम लिया जाते रहेगा। सीवान में एक बार फिर हुए तिहरा हत्याकांड व इसमें खान ब्रदर्स के नाम आने के बाद राजनीतिक तापमान तेज हो गया है। अब लोगों के बीच इसको लेकर चर्चा तेज हो गई है कि शहाबुद्दीन के इंतकाल के बाद उनके विरासत पर खान ब्रदर्स का कब्जा होगा या गुजरे जमाने का इतिहास नीतीशराज मेें दोहराने की बात कोरा कल्पना मात्र है।

खान ब्रदर्स के रूप में कुख्यात अयूब खान के तिहरा हत्याकांड में नाम आने व उनके छोटे भाई रईस खान के जिला परिषद की नवनिर्वाचित अध्यक्ष संगीता यादव के साथ प्रमुखता से नजर आने का फोटो वायरल होने को लेकर है। दो संदर्भ दो हालात को बयां कर रहे हैं। एक में अपराध की पराकाष्ठा व दूसरे में राजनीति में प्रमुखता से हस्तक्षेप की झलक नजर आ रही है। इस पर जिक्र करने के पूर्व मो. शहाबुद्दीन व खान ब्रदर्स के साथ जुड़े संदर्भों पर चर्चा करने से बहुत सारी बातें स्पष्ट हो जाएंगी। मो. शहाबुद्दीन का छात्र जीवन से ही अपराध से नाता रहा। इस बीच पहली बार सीवान के जीरादेई विधानसभा क्षेत्र से शहाबुद्दीन निर्दलीय चुनाव जीत कर सदन में पहुंचे।इसके बाद इनका राजनीति व अपराध से बराबर का रिश्ता रहा। तकरीबन डेढ़ दशक विधान सभा से लेकर लोकसभा तक का प्रतिनिधित्व करते हुए शहाबुद्दीन की राजनीति में इतनी धाक हो गई की कभी ये लालू प्रसाद यादव के नजर में दुलरूवा बन गए तो कभी लालू के आंखों में खटकते भी रहे। इन सबके बावजूद लालू की पार्टी के लिए ये अनिवार्य बन गए। हालांकि बाद के वर्षों में कानून का सिकंजा कसता गया तो जीवन के अंतिम समय तक उबर नहीं पाए। आखिरकार कोरोनो से जीवन का जंग हार गए। इस दौरान जिले की राजनीति में भाकपा माले के खिलाफ खड़ी ताकतों के लिए सुरक्षा कवच बनकर खड़े हुए मो. शहाबुद्दीन एक बड़े जनाधार का नेता बने रहे। उस दौरान कानून भी उनका था व अदालत भी व न्यायाधीश भी वही बन बैठे थे।

सिवान में जिला परिषद की नवनिर्वाचित अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के साथ कुख्यात रईस खान

अब हम बात करते हैं खान ब्रदर्स की। खान ब्रदर्स मतलब सिसवन थाना क्षेत्र के ग्यासपुर निवासी कमरूल हक के तीन पुत्र अयुब,रईस व चांद। जरायम की दुनिया में कभी तीनों की समान भागीदारी रही। लिहाजा इन्हें अपराध की दुनिया में खान ब्रदर्स के रूप में पहचान मिली। हालांकि चांद खान इधर कई वर्षों से अपराध से दूर रहकर राजनीति में भाग्य आजमाते रहे हैं। इस दौरान खान ब्रदर्स की शहाबुद्दीन से अदावत ही रही। सिवान नगर थाना के लक्ष्मीपुर ढाले से वर्ष 2005 में 9 फरवरी को सिसवन थाना क्षेत्र के ग्यासपुर निवासी व खान ब्रदर्स के पिता कमरूल हक का अपहरण कर लिया गया था। कमरूल हक उस समय रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। वहीं इस सीट से आरजेडी के उम्मीदवार और उस समय के शहाबुद्दीन समर्थक विक्रम कुंवर उम्मीदवार थे। कमरूल के अपहरण मामले में शहाबुद्दीन गैंग के ध्रुव प्रसाद, मनोज दास, मनोज सिंह, सोबराती मियां, विक्रम कुंवर व अन्य आरोपित बनाए गए थे। इसमें मो. शहाबुद्दीन पर साजिश का आरोप लगा था। इस घटना को आज भी याद करते हैं। हालांकि नाटकीय ढंग से अपहरकर्ताओं के चंगुल से सुरक्षित कमरूल हक बाहर निकल आए।

अब कुछ लोगों का कहना है कि समय के साथ बदलते हालात में चांद खान के बाद रईस खान ने भी अपराध से मूंह मोड़ लिया है। हालांकि एक समय था कि कुख्यात रईस खां के अपराध का साम्राज्य राज्य से लेकर देश की राजधानी तक फैला हुआ था। जिले में दारोगा बीके यादव की हत्या से लेकर झारखंड के गोडा जिले के कार्यपालक अभियंता के अपहरण सहित 50 से अधिक संगीन अपराध में रईस वांछित रहा है। उसकी करतूतों से पुलिस महकमा परेशान रहता था। उस पर 50 हजार का इनाम सरकार ने घोषित कर रखा था। वर्ष 2004 में रईस ने अपने साथियों के साथ मिल कर पूर्व सांसद के नजदीकी कहे जानेवाले सुरेंद्र सिंह पर जानलेवा हमला किया था। इसमें सुरेंद्र सिंह बाल-बाल बच गये, पर उनके दो साथी मारे गये। वर्ष 2002 में रईस ने पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के करीबी मनोज को हुसैनगंज थाने के छपिया में मार गिराया। इसके बाद कथित रूप से पूर्व सांसद के इशारे पर जेल में बंद रईस के भाई अयूब खान पर हमले की बात सामने आयी थी। तत्कालीन मंत्री विक्रम कुंवर उस समय पूर्व सांसद के काफी करीबी माने जाते थे। इस अदावत में रईस ने तत्कालीन मंत्री के फुलवरिया स्थित मकान पर हमला किया, जिसमें संदीप सिंह मारा गया। वर्ष 2002 में ही पूर्व सांसद के और तीन समर्थकों की हत्या में रईस का नाम सामने आया था। वर्ष 2003 में चैनपुर ओपी प्रभारी बीके यादव की हत्या, वर्ष 2002 में सिसवन थानाध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद पर रात्रि गश्त के दौरान जानलेवा हमला, वर्ष 2004 में फिरौती के लिए राजकुमार प्रसाद व सोनी का अपहरण व उसका विरोध करने पर अनिल कुमार सिंह की हत्या की घटना को अंजाम दिया गया। वर्ष 2007 में जानलेवा हमला के अलावा आधा दर्जन से अधिक लूट के मामले रईस पर रहे।

ओडिशा के राउरकेला में व्यवसायी दंपती के अपहरण की कोशिश में चालक की हत्या हुई थी। इसमें पुलिस रईस खां को आरोपित बनाते हुए तलाश कर रही थी। रईस खान वर्ष 2016 में गिरफतार होने के बाद जमानत पर बाहर आए तथा उसके बाद से सामाजिक राजनीतिक जीवन में सक्रिय हैं। हाल ही में भाजपा जदयू गठबंधन से जिला परिषद अध्यक्ष के पद पर दोबारा निर्वाचित हुई संगीता यादव के साथ रईस खान की तस्वीर वायरल हुई है। जिससे लोग जिला परिषद अध्यक्ष के करीबीयों के रूप में रईस का आकलन कर रहे हैं।

तिहरा हत्याकांड में आया अयूब खान का नाम

सीवान जिले में सात नवंबर से लापता तीन युवकों के मामले में पुलिस ने पहले एक शख्स को गिरफ्तार किया। जिसके बाद इस मामले में अयूब खान का नाम सामने आया। गिरफ्तार युवक का नाम संदीप है । वह सिवान के नगर थाना क्षेत्र के शुक्ल टोली का रहने वाला है। उसने पुलिस को दिए बयान में बताया कि लापता विशाल सिंह, अंशु सिंह, परमेंद्र यादव के साथ ये खुद भी अयूब खान के लिए काम करते थे। अयूब खान ने विशाल को काले रंग की स्कॉर्पियो भी दी थी। विशाल सिंह अयूब खान के बताए गए ठिकानों से पैसे वसूलने का काम करता था। अभी हाल के दिनों में वो पैसों में बेईमानी करने लगा और अयूब खान के नाम पर रंगदारी मांगने लगा था। इससे अयूब खान खफा हो गया और विशाल को खत्म करने की साजिश रची।

संदीप के अनुसार, सात नवंबर को वो अपने विशाल, अंशु और उसके ड्राइवर परमेंद्र के साथ बड़हरिया थाना क्षेत्र के बीबी के बंगरा गांव पहुंचा. वो नीचे सिगरेट पीने के लिए रुक गया। करीब दो घंटे बाद जब वो ऊपर गया तो देखा कि चाय पीते-पीते तीनों गिर गए। तब अयूब खान आए और अपने साथियों से कहा कि इन तीनों को ठिकाने लगा दो। इसके बाद संदीप को धमकी देकर छोड़ दिया गया। इस मामले में संदीप को जेल भेजकर पुलिस बाकी आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी कर रही है।

इस बीच 1 जनवरी को पुलिस ने इस मामले में खान ब्रदर्स गिरोह के बड़े भाई अयुब खान को एसटीएफ की मदद से पूर्णिया से गिरफ्तार किया गया। अयुब पर बिहार और दूसरे राज्यों में 42 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। अयुब ने तीनों युवकों के अपहरण व हत्या की कहानी स्वीकार कर ली है। बताया जा रहा है कि अयुब खान के इशारे पर शहर के शुक्लटोली का रहने वाला संदीप कुमार, विशाल सिंह और अंशु सिंह को लेकर बड़हरिया थाना क्षेत्र के बीबी का बंगरा गांव पहुंचा। उनके साथ डाइवर परमेंद्र यादव भी था। बीबी के बंगरा गांव में धोखे से तीनों विशाल सिंह, अंशु और ड्राइवर परमेंद्र को चाय में नशीला पदार्थ देकर बेहोश कर दिया गया। इसके बाद गमछा से गला घोंट कर हत्या कर दी गई। बाद में साक्ष्य को छिपाने के लिए तीनों के शवों का टुकड़ा-टुकड़ा कर सरयू नदी में फेंक दिया गया। पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त दाब और शव को ले जाने वाली टाटा सफारी और बोलेरो कार को बरामद कर लिया है।

नई पीढ़ी को नहीं है अपराधिक राजनीति से वास्ता

मो.शहाबुद्दीन के अपराध से राजनीति में कदम रखने के इतिहास को खान बदर्स द्वारा दोहराने की लगाई जा रही कयास को नई पीढ़ी मानने के लिए तैयार नहीं हैं। तेलहटटा बाजार निवासी नसरूददीन कहते हैं कि अपराध का वह जमाना वापस लौट कर आए,यह कोई नहीं चाहता है। नई पीढी अपराध के बजाए अपने कैरियर को संवारने में लगी है। इस उम्र में जीन युवकों के हाथों में असलहा होता था, अब इस उम्र में ये लैपटाॅप व टैब लेकर अपने सुनहरे सपने को संवारने में लगे हैं। यही बात विवेकानंद नगर के रमेश सिंह भी कहते हैं। उन्होंने कहा कि भाकपा माले का वह अब वर्गसंघर्ष की राजनीति भी नहीं रही। सामंतवाद बनाम गरीबों की लड़ाई में एक तबके के साथ खड़ा होकर शहाबुद्दीन ने अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश की व उसमें सफलता भी मिलती रही। अब न वह संघर्ष और न ही मात्र अपराध के बल पर राजनीति पर कब्जा करने के हालात हैं। ऐसे मेें हर बार इतिहास दोहराए जाने की बात भले ही की जाती रही है,लेकिन मो.शहाबुददीन की राजनीति विरासत खान ब्रदर्स के रूप में रईस व चांद खान के संभालने की संभावना कम है पर असंभव नहीं।

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