Chamoli News : इस नीली झील की खूबसूरती में छिपी है भविष्य की बर्बादी की खौफनाक तस्वीर, मलवा डंपिंग से बहाव के विपरीत बनी झील
(धौली नदी पर बनी खूबसूरत झील )
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Chamoli News। आपदाओं के मद्देनजर संवेदनशील उत्तराखण्ड (Uttarakhand) के चप्पे-चप्पे पर विकास के नाम पर जिन भविष्य की आपदाओं की पटकथा लिखी जा रही है। उनके सामने आने पर एक ही सवाल कौंधता है, "काश...., उसी समय इस पर ध्यान दे दिया होता"। बेहद मामूली सी चूक के चलते कई आपदाओं को झेल चुका उत्तराखण्ड नामक इस हिमालयी राज्य में अब भी ऐसी अनगिनत चूक धड़ल्ले से हो रहीं हैं, जो आने वाले समय में भारी विपदा की वजह बन सकती हैं। ऐसी ही एक जगह जोशीमठ (Joshimath) से लगभग 80 किलोमीटर आगे नीति मलारी सीमा की तरफ नीति गांव से डेढ़ किलोमीटर पहले धौली नदी पर बनी एक खूबसूरत झील है।
देखने में आंखों को बेहद सुकून देने वाली यह मनमोहक झील लगभग 20 से 30 मीटर लम्बी व 15 से 20 मोटर चौड़ी है। यह झील देखने में सुंदर व साफ नीले रंग के पानी की है। उच्च हिमालय क्षेत्र में इस तरह की झील का बनना कोई खास अचरज की बात नहीं। प्राकृतिक वजहों से ऐसी झीलों का बनना-बिगड़ना यहां आम बात है। लेकिन यह झील प्राकृतिक वजह से नदी के स्वभाविक बहाव पर नहीं बनी।
देखने-पढ़ने-सुनने में यह बात अजीब लग सकती है, लेकिन इस झील की कड़वी सच्चाई यही है कि यह झील नदी के बहाव के विपरीत बनी है। कुछ और ज्यादा गहराई में जाकर बताया जाए तो साफ-साफ यह समझ लीजिए कि इस झील को हमने अनजाने में बनाया है।
झील बनने का कारण है सड़क निर्माण का मलबा। जो किसी निर्धारित डंपिंग जोन में डाले जाने के बजाय सीधे नदी के हवाले किया जा रहा है। नदी से ऊपरी हिस्से में बनने वाली सड़क के लिए होने वाले कटाव से निकले मलवे और पत्थरों को सड़क बनाने वाली एजेंसी ने मलवा निपटारा करने वाले किसी निर्धारित डंपिंग ज़ोन में फेंकने की बजाय सड़क से सीधे नीचे नदी में ही गिरा दिया है। जिस वजह से इस झील के आगे नदी के रास्ते में जगह-जगह बड़े बड़े बोल्डरों व मलवे के ढेर के ढेर लगे हैं। जो किसी भी समय नदी के पूरे बहाव को रोककर यहां बांध सरीखी स्थिति पैदा कर सकते हैं। पत्थरों और मिट्टी के मलवे का जब यह बांध जमा हुए पानी के दबाव को झेलने में असमर्थ होगा तो यहां से एक झटके से निकलने वाले पानी से नदी के किनारे वाले इलाकों में जो तबाही होगी, उसकी फिलहाल कल्पना की जा सकती है।
जिस तबाही की कल्पना इस झील के आलोक में की जा रही है, वह किसी भारी और लम्बी बरसात की मोहताज नहीं है। छोटी सी बरसात भी इस बड़े खतरे की वजह बन सकती है।
2013 की आपदा के बाद गठित चोपड़ा कमेटी ने साफ तौर पर इस बात को कहा कि आपदा की विभीषिका को बढ़ाने में जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा नदियों में डाले गए मलवे की बड़ी भूमिका थी।
किसी भी आपदा को यह मलवा कई गुना बढ़ा सकता है। नीति घाटी पूर्व में इसी तरह की आपदाओं की गवाह रही है। इसी साल फरवरी माह की आपदा को बीते अभी 9 माह ही बीते हैं। इस आपदा में 200 से अधिक लोगों ने प्राण गंवाए थे।
भाकपा माले राज्य कमेटी सदस्य अतुल सती ने इस स्थान का दौरा करने के बाद कहा कि यह परिघटना किसी भी दिन बड़ा रूप ले सकती है। नदी में डंप किया जा रहा मलवा बड़ी तबाही का कारण बन सकता है।
अतुल सती ने क्षेत्र की तस्वीरें उपलब्ध कराते हुए सरकार से इस पर तुरंत कार्यवाही करने की मांग और इसके लिए दोषी जिम्मेदार इकाइयों व लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही करने की भी मांग की है। सती का कहना है कि वन विभाग जिस पर इन सब नदियों की देखरेख की जिम्मेदारी है, को भी इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार मानते हुए उसकी लापरवाही पर भी कार्यवाही की जानी चाहिए।