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पूरे देश में एक वोटर लिस्ट तैयार करने की कवायद शुरू, पीएमओ ने की उच्च स्तरीय बैठक

Janjwar Desk
29 Aug 2020 4:14 AM GMT
पूरे देश में एक वोटर लिस्ट तैयार करने की कवायद शुरू, पीएमओ ने की उच्च स्तरीय बैठक
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एक वोटर लिस्ट तैयार करने की सिफारिश विधि आयोग ने पहले भी की है। चुनाव आयोग भी इसकी सालों पहले पैरोकारी कर चुका है। कहा जा रहा है कि इससे भ्रम की स्थिति खत्म होगी...

जनज्वार। केंद्र सरकार देश में हर तरह के चुनाव के लिए एक ही वोटर लिस्ट तैयार करने की दिशा में आगे बढती दिख रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसी महीने काॅमन वोटर लिस्ट तैयार करने को लेकर एक बैठक में चर्चा की है। यह लिस्ट लोकसभा, विधानसभा से लेकर स्थानीय निकाय के चुनाव में प्रभावी रहेगी। सरकार की इस कवायद को एक साथ चुनाव कराने की कोशिश का हिस्सा माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार एक साथ चुनाव कराने की बात कहते रहे हैं।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा की अध्यक्षता में 13 अगस्त को एक बैठक हुई थी, जिसमें दो विकल्पों पर चर्चा हुई है। पहला संविधान के अनुच्छेद 243के और 243जेडए में बदलाव किया जाए ताकि देश में हर तरह के चुनाव के लिए काॅमन वोटर लिस्ट आवश्यक हो जाए। दूसरा राज्य सरकारों को अपने कानूनों में बदलाव के लिए मनाया जाए जिससे वे नगर निगम व पंचायत निकाय के चुनाव में चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट का इस्तेमाल करने के लिए राजी हो जाए।

पीके मिश्रा की अध्यक्षता में हुई बैठक में कैबिनेट सचिव राजीब गौबा, विधान सचिव जी नारायण राजू, पंचायती राज सचिव सुनील कुमार और चुनाव आयोग के तीन प्रतिनिधि शामिल हुए।

फिलहाल राज्यों के पास स्थानीय निकायों का चुनाव कराने व मतदाता सूची तैयार करने का अधिकार है। इसके लिए अनुच्छेद 243के और 243जेए में प्रावधान हैं। राज्यों को स्थानीय निकाय के चुनाव के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग से अनुमति लेने की जरूरत फिलहाल नहीं है, इसके लिए उनके पास एक पृथक आयोग भी होता है। वहीं, भारत निर्वाचन आयोग के पास संविधान के अनुच्छेद 324-1 के तहत संसद व विधानसभाओं के चुनावों के लिए वोटर लिस्ट तैयार करने और उस पर नियंत्रण रखने का अधिकार है।

हालांकि वर्तमान में ज्यादातर राज्य केंद्रीय चुनाव आयोग का प्रयोग कर ही स्थानीय निकाय का चुनाव कराते हैं। शायद इससे उनके अतिरिक्त संसाधन खर्च नहीं करने पड़ते हों, लेकिन उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, असम, ओडिशा, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड व जम्मू कश्मीर के पास चुनाव आयोग से अलग अपना वोटर लिस्ट है। अगर केंद्र सरकार कानून में बदलाव करती है तो इन राज्यों का यह वोटर लिस्ट निष्प्रभावी हो जाएगा।

एक मतदाता सूची तैयार करना का प्रस्ताव कोई नई बात नहीं है। विधि आयोग ने 2015 में अपनी 255वीं रिपोर्ट में इसकी सिफारिश की थी। चुनाव आयोग इस तरह की पैरोकारी 1999 व 2004 में कर चुका है। केंद्र व राज्य की अलग-अलग एजेंसियों से दो अलग-अलग मतदाता सूची बनाने से भ्रम की स्थिति बनती है, क्योंकि एक सूची में एक व्यक्ति का नाम हो सकता है और दूसरे में नहीं। इससे कई प्रकार की दिक्कतें उत्पन्न होती हैं। इससे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति भी बनती है।

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