Begin typing your search above and press return to search.
समाज

दलित कार्यकर्ता ने सोनिया गांधी को लिखा पत्र, राजस्थान हाईकोर्ट के भीतर से हटवाओ 'मनु' की मूर्ति

Janjwar Desk
25 Jun 2020 3:23 PM IST
दलित कार्यकर्ता ने सोनिया गांधी को लिखा पत्र, राजस्थान हाईकोर्ट के भीतर से हटवाओ मनु की मूर्ति
x
दलित कार्यकर्ता ने कहा कि प्रतिमा सिर्फ दलित उत्पीड़न का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह महिलाओं और शूद्रों के उत्पीड़न का प्रतीक है...

जनज्वार ब्यूरो। एक दलित मानव अधिकार कार्यकर्ता मार्टिन मैकवान ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर राजस्थान उच्च न्यायालय के परिसर में स्थापित मनु की मूर्ति को हटाने की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि मनु की प्रतिमा 'भारतीय संविधान और दलितों का अपमान' है और यह डॉ. भीमराव अम्बेडकर के भारत को जाति के रूप में एक राष्ट्र के रूप में विकसित होने के आह्वान को कमजोर करता है।

मैकवान नवसर्जन ट्रस्ट के संस्थापक हैं जो गुजरात में जमीन स्तर पर एक दलित संगठन है। वह कहते हैं, प्रतिमा सिर्फ दलित उत्पीड़न का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह महिलाओं और शूद्रों के उत्पीड़न का प्रतीक है। कुल मिलाकर, यह भारत की आबादी का लगभग 85 प्रतिशत है।'

'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, मैकवान ने कहा कि यह प्रतिमा एक दमनकारी अतीत का प्रतीक है और भारत में दलितों और महिलाओं की जीवित वास्तविकता को नुकसान पहुँचाती है, जिसका जीवन अभी भी 'मनुस्मृति' में डाले गए भेदभावपूर्ण कानूनों से प्रभावित है।'

मैकवान आगे कहते है, 'इस प्रतिमा को अमेरिका से लाया गया था। यह 31 साल पहले कुछ अधिवक्ताओं द्वारा लगाया गया था जिन्होने मनु को भारत में कानून लिखने वाले शुरूआती लोगों के रूप में देखा और इसलिए उस विरासत को स्थापित करना चाहते थे।'

मैकवान ने आगे कहा, '2020 में हम न केवल आजादी के 73 साल मना रहे हैं, बल्कि 93 साल से मनुस्मृति को जला रहे हैं जबसे डॉ. अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया था। मैकवान कहते हैं कि हमें उस प्रतिमा से छुटकारा पाने में बहुत समय लग गया है।

मैकवान और नवसर्जन ट्रस्ट के सदस्यों ने राजस्थान में कांग्रेस सरकार को एक अल्टीमेटम दिया है, जिसमें कहा गया है कि अगर 15 अगस्त तक मूर्ति नहीं हटाई गई तो वे आंदोलन की अपील करेंगे।

बता दें कि भारतीय संविधान के शिल्पकार बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सबसे पहले 25 जुलाई 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले (अब रायगढ़) के महाद में मनु की लिखी हुई किताब मनुस्मति को सार्वजनिक तौर पर जलाया था। डॉ. अंबेडकर ने अपनी किताब 'फिलोसफी ऑफ हिंदूइज्म' में भी इसका जिक्र किया है।

किताब में डॉ. अंबेडकर लिखते हैं, 'आंबेडकर अपनी किताब 'फ़िलॉसफ़ी ऑफ हिंदूइज़्म' में लिखते हैं, 'मनु ने चार वर्ण व्यवस्था की वकालत की थी। मनु ने इन चार वर्णों को अलग-अलग रखने के बारे में बताकर जाति व्यवस्था की नींव रखी। हालांकि, ये नहीं कहा जा सकता है कि मनु ने जाति व्यवस्था की रचना की है। लेकिन उन्होंने इस व्यवस्था के बीज ज़रूर बोए थे।'

उस समय तक दलितों और महिलाओं को एक सामान्य ज़िंदगी जीने का अधिकार नहीं था। इसके साथ ही ब्राह्मणों के प्रभुत्व की वजह से जाति व्यवस्था का जन्म हुआ। डॉ. अंबेडकर ने अपनी किताब 'कौन थे शूद्र' और 'जाति का अंत' में भी मनुस्मृति का विरोध किया है।

अंबेडकर के मुताबिक जाति व्यवस्था एक कई मंजिला इमारत जैसी होती है जिसमें एक मंजिल से दूसरी मंजिल में जाने के लिए कोई सीढ़ी नहीं होती है। वर्ण व्यवस्था बनाकर सिर्फ कर्म को ही विभाजित नहीं किया गया बल्कि काम करने वालों को भी विभाजित कर दिया।

Next Story

विविध