Ground Report: उत्तर प्रदेश की सरकारों की गलत नीतियों ने चलते-फिरते अस्पताल को बनाया कबाड़
(दवा प्रदान करने से लेकर उपचार करने तक में यह वाहन कारगर साबित होता रहा, लेकिन बसपा सरकार के जाते ही समाजवादी पार्टी और बाद में भाजपा सरकार ने आते ही इस वाहन को पूरी तरह से किनारे कर दिया।)
संतोष देव गिरी की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। कहते हैं विकास एक ऐसी धुरी है जो निरंतर क्रियाशील होती है, यदि इस पर विराम लगा दिया जाए तो विकास थम जाता है जिसका सीधा खामियाजा किसी एक नहीं बल्कि अनगिनत लोगों को भुगतना पड़ जाता है। मसलन, उस विकास-योजना को लागू करने वाले व्यक्ति, उससे जुड़कर रोजगार पाने वाला तथा उससे लाभान्वित होने वाले जनसामान्य के लोग भी अछूते नहीं होते हैं।
याद होगा उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती बसपा सरकार के दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने अन्य ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सुदूर ग्रामीण अंचलों में बसने वाले लोगों को उत्तम स्वास्थ्य दरवाजे तक उपलब्ध कराने के लिए 'मुख्यमंत्री महामाया सचल अस्पताल योजना' लागू किया था।
इस योजना के तहत एक अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वाहन जिसमें चिकित्सा सुविधा के सारे संसाधन मुहैया कराए गए थे तथा उसमें चिकित्सक सहित स्वास्थ्य कर्मियों की टीम भी तैनात की गई थी, जो गांव-गांव कैंप लगाकर, भ्रमण करते हुए लोगों को शिक्षा-चिकित्सा के बारे में जानकारी देने के साथ मौके पर ही उपचार-परामर्श के साथ-साथ सरकार की स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में चलाई जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार भी करना हो रहा था।
लेकिन दु:खद है कि पूर्ववर्ती बसपा सरकार के दौरान स्वास्थ्य के क्षेत्र में ग्रामीणों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए चलाई गई यह महत्वपूर्ण योजना राज्य से बसपा सरकार के विदा होते ही पूरी तरह से दम तोड़ कबाड़ का रूप ले चुकी है। यूं कहें कि एक वाहन पर चलते-फिरते इस अस्पताल के रूप में ग्रामीण जनता के लिए कारगर साबित हो रही 'मुख्यमंत्री महामाया सचल अस्पताल योजना' का वाहन इन दिनों कबाड़ का रूप लेकर सरकार की गलत नीतियों को दर्शाते हुए अपने भाग्य पर आंसू बहाता हुआ नजर आ रहा है।
'जनज्वार' की टीम ने जब मिर्जापुर जनपद के कई स्वास्थ्य केंद्रों का भ्रमण करते हुए खासकर जिला मुख्यालय से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर स्वास्थ्य केंद्रों का जायजा लिया तो मुख्यमंत्री महामाया सचल अस्पताल योजना का एसी युक्त वाहन अपनी उपयोगिता को पूरी तरह से खोने के बाद कबाड़ के रूप में तब्दील नजर आया जिसकी और कोई झांकने वाला भी नहीं है।
अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस यह स्वास्थ्य वाहन यानी चलता-फिरता अस्पताल पूरी तरह से प्रचार पोस्टरों से पटकर तथा आसपास फैली हुई झाड़ियों, वाहन के नीचे उगे पेड़ पौधे इसे पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में लेकर इसे झंखाड़ का रूप दे दिए हैं। एक दशक से ज्यादा समय से एक ही स्थान पर खड़े होन से यह अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस लग्जरी वाहन कबाड़ के रूप में तब्दील हो चुका है जहां पेड़ पौधे उग कर इसे अपने आगोश में लेते जा रहे हैं।
हैरानी की बात यह है कि इस वाहन को संचालित करने की दिशा में कोई कदम तो नहीं बढ़ाया गया, अलबत्ता 'मुख्यमंत्री महामाया' शब्द को जरूर लीप-पोतकर छुपा दिया गया है। 'जनज्वार' ने मिर्जापुर के विकास खंड पटेरा के स्वास्थ्य केंद्र पटेहरा का भी जायजा लिया तो यहां मुख्यमंत्री महामाया सचल अस्पताल योजना का एसी युक्त वाहन कबाड़ में तब्दील होकर अपनी उपयोगिता खो चुका नजर आया।
लालगंज तहसील मुख्यालय के समीप सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लालगंज के परिसर में खड़ा मुख्यमंत्री महामाया सचल अस्पताल योजना का वाहन चारों ओर से जंगली पेड़-पौधों से घिरा हुआ नजर आया। चिकित्सा वाहन के अंदर जब नजर डाली गई तो अंदर अनगिनत दवाएं कूड़े की तरह फेंकी हुई नजर आई। जिसे देख सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य से बसपा सरकार के जाने के बाद इस सचल अस्पताल वाहन को भी एक किनारे कर दिया गया।
इसी प्रकार कोन विकास खंड के स्वास्थ्य केंद्र कोन परिसर में लबे रोड खड़ा अस्पताल वाहन, जिसके कीमती पुर्जे-पुर्जे तक गायब हो चुके हैं, का कोई फुरसाहाल नहीं रहा। मौके पर मौजूद एक स्वास्थ्यकर्मी ने नाम न छापे जाने की शर्त पर बुझेमन से बताया कि 'यह सरकार और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की उदासीनता, लालफीताशाही का ही परिणाम है कि यह वाहन जंग खा कर अपना अस्तित्व खो चुका है। अन्यथा यह वाहन आज भी संचालित होता तो कोविड काल में लोगों के लिए काफी हद तक मददगार साबित हुआ होता, लेकिन सरकार की दुर्दशापूर्ण नीतियों और स्वास्थ्य मंत्रालय के बेपरवाह, लापरवाह अधिकारियों की खाऊ-कमाऊ नीतियों ने इस अस्पताल वाहन को उपेक्षा के अंधियारे में ला खड़ा किया है।'
वरिष्ठ पत्रकार अंजान मित्र कहते हैं, 'सरकारें आती हैं-जाती हैं, पर सरकार की योजनाओं से जुड़ी हुई विकास परियोजनाओं, संसाधनों के रख-रखाव, देखरेख से लेकर उनको अमलीजामा पहनाने का कार्य करने वाले अधिकारी और संबंधित विभाग के लोगों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बनती है कि वह इनके देखरेख से लेकर संचालन की दिशा में आने वाली परेशानियों को दूर करने के उपाय सरकार को बताते हुए उनके संचालन का रास्ता भी समझाएं, पर यहां तो ठीक उल्टा ही दिखाई दे रहा है। नुकसान होना है तो हो अपना क्या जाता है, है तो यह सरकारी संपत्ति तो फिर नुकसान से हमें क्या लेना देना?'
दवा प्रदान करने से लेकर उपचार करने तक में यह वाहन कारगर साबित होता रहा है, लेकिन दु:खद है कि उत्तर प्रदेश से बसपा सरकार के जाते ही समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव के नेतृत्व में सरकार आने के बाद से इस वाहन को पूरी तरह से किनारे कर दिया गया। जिसकी ओर से भाजपा की योगी सरकार ने भी मुंह फेर लिया। जबकि होना यह चाहिए था कि इस वाहन की निरंतर संचालन देखरेख होती रहती तो यह खासकर इस कोविड कॉल में अस्पतालों की बंद ओपीडी सेवाओं के बाद लोगों के दरवाजे तक जाकर स्वास्थ्य सेवा देने में कितना कारगर का साबित होता और सरकार को कितनी सराहना मिलती, इसे सहज ही समझा जा सकता है।
लेकिन इस वाहन को भी, जो स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो रहा था, राजनीति के आईने से देखते हुए जिस प्रकार से सरकार जाते ही उस दल, पार्टी के झंडे बैनर हटने लगते हैं उसी प्रकार बसपा सरकार के दौरान चलाई गई इस योजना को भी एक किनारे कर दिया गया।