हाथरस कांड: PFI के चार सदस्यों को हिंसा भड़काने का दोषी साबित नहीं कर पायी पुलिस, SDM ने जेल से रिहाई के दिए आदेश
(हाथरस कांड के बाद 5 अक्टूबर 2020 को यमुना एक्सप्रेस-वे पर 4 आरोपियों अतीकुर्रहमान, आलम, सिद्दीकी और मसूद अहमद को गिरफ्तार किया था।)
जनज्वार डेस्क। पिछले साल 2020 में उत्तर प्रदेश का हाथरस रेप कांड काफी सुर्खियों में रखा था। कानून व्यवस्था को लेकर यूपी की योगी सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही ती। इसी दौरान थाना मांट पुलिस ने यमुना एक्सप्रेसवे से इस घटना की आड़ में हिंसा भड़काने की साजिश के आरोप में पीएफआई के 4 सदस्यों को गिरफ्तार किया था। मांट के एसडीएम ने मंगलवार 15 जून को आरोपियों को शांतिभंग के आरोपों से बरी करने का आदेश पारित किया है।
बता दें कि हाथरस कांड के बाद 5 अक्टूबर 2020 को यमुना एक्सप्रेस-वे पर 4 आरोपियों अतीकुर्रहमान, आलम, सिद्दीकी और मसूद अहमद को गिरफ्तार किया था। इन पर हाथरस कांड की आड़ में हिंसा भड़काने के आरोप लगे थे। मांट पुलिस ने इनका शांतिभंग में चालान कर जेल भेज दिया था। बाद में मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी गई और इनका कनेक्शन पीएफआई और सीएफआई से होने की बात भी सामने आई। एसटीएफ की जांच में कुछ और नाम भी सामने आए तो उन्हें भी आरोपी बनाया गया।
कुछ महीने पहले ही एसटीएफ ने मथुरा कोर्ट में आरोपियों के खिलाफ 5 हजार पेज की चार्जशीट दाखिल की थी। वहीं मांट पुलिस की ओर से पहले से पकड़े गए चारों आरोपियों के खिलाफ शांति भंग करने के आरोप के साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाने के मामले में मंगलवार को उपजिला मैजिस्ट्रेस्ट रामदत्त राम ने शांतिभंग के आरोप में चारों आरोपियों को पुलिस अभिरक्षा से बरी किए जाने के आदेश पारित कर दिया।
पीएफआई के सदस्यों के वकील मधुमंगल दत्त चतुर्वेदी ने जानकारी देते हुए बताया कि 5 अक्टूबर 2020 को मांट टोल प्लाजा से पुलिस ने चारों लोगों को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने सभी पर हिंसा फैलाने और शांति भंग करने के आरोप में एसडीएम मांट के समक्ष पेश किया था। 8 महीने बाद पुलिस कोई भी साक्ष्य पेश नहीं कर पाई तो एसडीएम मांट ने चारों के ऊपर लगे आरोपों को गलत ठहराते हुए पुलिस अभिरक्षा से मुक्त कराने के निर्देश दिए हैं।
बता दें कि 14 सितंबर 2020 को हाथरस के बूलगढ़ी में एक दलित युवती के साथ चार सवर्ण आरोपियों के द्वारा गैंगरेप किया गया था। दो हफ्ते बाद दिल्ली के एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी।
शुरूआत में यह खबरें आयी थीं कि एक आरोपी ने उसे मारने की कोशिश भी की थी हालांकि मजिस्ट्रेट को दिए अपने बयान में पीड़िता ने चार आरोपियों के नाम दिए थे। पीड़िता के भाई ने दावा किया कि घटना के पहले दस दिनों में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। उसकी मौत के बाद उसके परिवार की सहमति के बिना जबरन अंतिम संस्कार किया, पुलिस ने इस दावे से इनकार किया था।
इस घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इसके चलते विपक्षी दलों के नेता और कई सामाजिक संगठनों ने योगी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए थे।