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कर्नाटक हाईकोर्ट ने कुरान की व्याख्या करके किया आपत्तिजनक काम- हिजाब मामले के वकील ने किया दावा

Janjwar Desk
13 Sept 2022 3:35 PM IST
Karnataka Hijab Row: कर्नाटक में हिजाब को लेकर क्यों मचा है बवाल, जानें भाजपा-राज में हिजाब पहनना क्यों हो गया गुनाह?
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Karnataka Hijab Row: कर्नाटक में हिजाब को लेकर क्यों मचा है बवाल, जानें भाजपा-राज में हिजाब पहनना क्यों हो गया गुनाह? 

Hijab controversy : वरिष्ठ वकील वाईएच मुछाल ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दावा किया कि कर्नाटक उच्च न्यायालय की व्यवस्था से मुस्लिम लड़कियों के अनेक अधिकार प्रभावित हुए हैं...

Hijab controversy : कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब प्रतिबंध को लेकर चल रहे मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हाईकोर्ट पर पवित्र कुरान की व्याख्या की कोशिश करने का आरोप लगाया है। अधिवक्ता के मुताबिक कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह कहकर आपत्तिजनक काम किया कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। इस दौरान उन्होंने उच्चतम न्यायालय के पहले के एक फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अदालतें कुरान की व्याख्या करने के लिहाज से 'संस्थागत रूप से अक्षम' हैं।

एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील वाईएच मुछाल ने दावा किया कि कर्नाटक उच्च न्यायालय की व्यवस्था से मुस्लिम लड़कियों के अनेक अधिकार प्रभावित हुए हैं।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुन रही थी, जिसमें राज्य के शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर लगी रोक को हटाने से इनकार कर दिया गया था। इस दौरान वकील ने कहा कि जहां तक हमारी बात है, हिजाब धर्म का आवश्यक हिस्सा है या नहीं, यह पूरी तरह अप्रासंगिक है। हम वास्तव में लोगों के अधिकारों को लेकर चिंतित हैं, हम मुस्लिम मजहबी हिस्से पर विचार नहीं कर रहे हैं।

उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उच्च न्यायालय ने बहुत ही आपत्तिजनक काम किया है, जिस पर पीठ ने अधिवक्ता से पूछा था कि आप हमें बताइए कि इसमें क्या आपत्तिजनक है?

पीठ के सवाल के बाद में वकील ने शीर्ष अदालत के पहले के एक फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि उसमें कहा गया था कि अदालत कुरान की व्याख्या के रास्ते पर नहीं जा सकतीं और उसे नहीं जाना चाहिए और उच्च न्यायालय ने यही किया है। उन्होंने कहा कि अदालतें कुरान की व्याख्या के लिहाज से संस्थागत रूप से अक्षम हैं। हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में जाकर कहा था कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है।

पीठ ने कहा कि किसी ने विषय उठाया, उच्च न्यायालय के पास इससे निपटने के अलावा क्या विकल्प था। पहले आप इसे अधिकार होने का दावा करते हैं और जब उच्च न्यायालय इस तरह या उस तरह अपना आदेश देता है तो आप कहते हैं कि यह नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने कहा, ''दरअसल, आप खुद की बात को गलत साबित कर रहे हैं।

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