Indian Economy : भारत की आर्थिक मजबूती की राह में कौन-कौन से रोड़े हैं? आर्थिक मोर्चों पर मोदी सरकार का परफॉर्मेंस कैसा रहा है?

Indian Economy Problems : भारत की आर्थिक मजबूती की राह में कौन-कौन से रोड़े हैं? आर्थिक मोर्चों पर मोदी सरकार का परफॉर्मेंस कैसा रहा है?
Indian Economy : लोकतंत्र, बोलने की आजादी और मानवाधिकार के मानकों पर भारत की रैंकिंग (Indian Economy) में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट देखने को मिली है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। पर, क्या आर्थिक मोर्चों पर भी हमारे देश का प्रदर्शन पूर्व की सरकारों की तुलना में वर्तमान सरकार के शासनकाल में खराब हुआ है इस पर अध्ययन किए जाने की जरूरत है।
2019-20 में कोविड महामारी की शुरुआत के बाद भारत समेत पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं (Indian Economy) में सुस्ती देखने को मिली है, उसके बाद रूस और यूक्रेन की लड़ाई ने भी आर्थिक मंदी के मामले में आग में घी का काम किया है। इस लड़ाई के कारण वैश्विक स्तर पर सप्लाई चेन प्रभावित होने से दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर इसका नकारात्मक असर देखने को मिला है। अमेरिका और यूरोप समेत पूरी दुनिया में महंगाई अपने चरम पर है। ऐसे में इस बात को लेकर अनिश्चितता है कि भारत अपने 7 प्रतिशत के जीडीपी ग्रोथ को दोबारा हासिल कर पाएगा या नहीं।
हालांकि उद्योगपति हर्ष गोयनका जो कि नरेंद्र मोदी के प्रशंसक रहे हैं, उन्होंने साल 2014 से अब तक भारत के आर्थिक हालातों पर इंडिकेटर्स की जो लिस्ट जारी की है, उसके अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था सही दिशा में जा रही है। ये आंकड़े कितने सही और वास्तविक हैं, उस पर विचार करना जरूरी है।
विश्व बैंक के अनुमानों ने गोयनका के भारत की इकोनॉमी (Indian Economy) को लेकर किए गए दावों पर भरोसा बढ़ा दिया है। हालांकि गोयनका के आंकड़ों में कुछ छोटी-मोटी गलतियां भी हैं। भारत के शासन के संकेतकों में कोई उछाल दर्ज नहीं किया गया है। विश्व बैंक के छह शासन के संकेतकों की अगर बात की जाए तो इनमें भारत का प्रदर्शन मिश्रित रहा है, साल 2014 से अब तक इनमें मामूली सुधार ही दर्ज किया गया है। भारत में यूनिकॉर्न स्टार्टअप की संख्या जो साल 2014 में महज 4 थी पिछले हफ्ते एडटेक स्टार्टअप फिजिक्सवाला के इनमें शामिल होने के बाद 101 तक पहुंच गई है।
इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में भी भारत का प्रदर्शन 6.6 प्रतिशत सुधरकर दिसंबर 2021 में 12.5 प्रतिशत पर पहुंच गया है। एफडीआई में भी भारत का शेयर 2.1 प्रतिशत से बढ़कर 5.1 प्रतिशत पर पहुंच गया है। साल 2014 में जीडीपी के आधार पर भारत की रैंकिंग 8 थी, जो अब सुधरकर 6 हो गयी है। ऐसे में इस बात में कोई शक नहीं है कि आर्थिक मोर्चे पर भारत की स्थिति सुधरी है।
विश्व बैंक के 2022 और 2023 के आर्थिक अनुमानों पर गौर करें तो पता चलता है कि दुनिया की जीडीपी 2021 के 5.7 प्रतिशत की तुलना में 2022 में 2.9 प्रतिशत पर फिसल गयी है। इसके लिए जिम्मेदार हैं यूक्रेन वॉर और सेंट्रल बैंक की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अपनायी गयी मॉनिटरी पॉलिसी।
दुनिया महंगाई और मंदी के दौर में जा रही है। हालांकि यह बात अलग है कि भारत इस मंदी (Indian Economy) से दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कम प्रभावित होगा। विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत 2022 में 7.5 फीसदी और 2023 में 7.1 फीसदी की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था होगी। इतिहास में पहली बार भारत पूरी दुनिया की इकोनॉमी को ऊपर की ओर खींच रही है, भले ही वह थोड़े समय के लिए है। यह देश को गौरवान्वित करने वाली उपलब्धि है। हालांकि यह उन पाठकों को चौंका सकता है जो देश में बढ़ती महंगाई और घटते विकास दर के बारे में रोज पढ़ और सुन रहे हैं। पर, भारत की समस्या यहां नहीं कहीं और है।
चीन जो पहले आर्थिक मोर्चे पर विश्व लीडर रह चुका है, अनुमानों के मुताबिक वहां की अर्थव्यवस्था की विकास दर साल 2022 में 4.33 प्रतिशत और साल 2023 में 5.2 प्रतिशत ही रहने वाली है। इस मामले में भारत के करीब साल 2022 में सिर्फ एक देश खड़ा है वह है सऊदी अरब जहां की अर्थव्यवस्था तेल की कीमतों में उछाल के कारण 7 फीसदी की दर से आगे बढ़ सकती है। पर, 2023 में यह दर 3.8 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। बांग्लादेश जहां के बारे में अनुमान लगाए जा रहे थे कि यह देश प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत को भी पछाड़ देगा एक बार फिर मजबूत स्थिति में है। जिसकी अर्थव्यवस्था साल 2022 में 6.4 फीसदी और साल 2023 में 6.7 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। अन्य देश इन आंकड़ों से बहुत पीछे हैं।
चुनौतियां भी हैं जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता पैदा करती हैं। येल-कोलंबिया एनवायरमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स जो 2022 में जारी की गयी थी, उसमें भारत को पूरी दुनिया में सबसे नीचे 180 वें स्थान पर रखा गया है। हालांकि, सरकार ने इस इंडेक्स को जारी करने की प्रक्रिया पर साल 2050 तक खुद को कार्बन मुक्त देश बनाने के दावे के साथ अपना विरोध जताया है।
इस इंडेक्स में साल 2020 में भी भारत का स्थान 168वां था। इस इंडेक्स में कभी भी भारत 150 से ऊपर नहीं गया है। इस परिस्थिति का सामना किए जाने की जरूरत है। कार्बन और जलवायु परिवर्तन के दूसरे मानकों को छोड़ भी दिया जाए तो भी हवा की क्वालिटी, पानी, मिट्टी की क्वालिटी और शहरी कचरा प्रबंधन के मामलों में हमारे देश की रैंकिंग बहुत खराब हैँ।
विश्व बैंक की ओर से जारी की गयी इज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत का स्थान जरूर बेहतर हुआ है। इस इंडेक्स में भारत 142वें स्थान से 63वें स्थान पर पहुंच गया है। हालांकि इस इंडेक्स को मैनिपुलेट करने के आरोप लगने के बाद विश्व बैंक को इस इंडेक्स को ही बंद करने का फैसला लेना पड़ा था।
विदेशी मुद्रा रिजर्व के मामले में भारत 600 बिलियन डॉलर (Indian Economy) के साथ चौथे स्थान पर है। यह 2013 के 290 बिलियन डॉलर की तुलना में लगभग दोगुने पर पहुंच चुका है। आपको बता दें कि साल 2013 में ही भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले 55 रुपए से गिरकर 68 रुपए पर पहुंच गई थी। तब बड़ी संख्या में विदेशी निवेशक डॉलर की मजबूती के लिए भारतीय बाजार छोड़कर चले गए थे। एक बार फिर इसका खतरा बढ़ गया है पर भारत अपने हाई रिजर्व के कारण लगभग सुरक्षित है।
भारत की आर्थिक मजबूती की राह में कई रोड़े हैं, उनमें एक है यहां की खराब शिक्षा व्यवस्था। साल 2009 में प्रोग्राम फोर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट में भारत 73 देशों में 72वें स्थान पर आया था। स्वयंसेवी संस्था प्रथम की एक रिपोर्ट के अनुसार स्कूलों की गुणवत्ता में पिछले दशक से अब तक कोई खास सुधार नहीं हुआ है। विश्वविद्यालयों की हालत भी ठीक नहीं है, वहां से भी से भी बड़ी संख्या में बेरोजगार निकल रहे है।
भारत पर दूसरा धब्बा है महंगाई का। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की बात करें तो भारत में महंगाई दर सबसे ज्यादा है। वर्तमान में अमेरिका और ब्रिटेन में महंगाई दर भारत की महंगाई दर की तुलना में अधिक है। भारत की जीडीपी डिफ्लेटर जो महंगाई को मापने का सबसे व्यापक तरीका है, अब भी 10 प्रतिशत के गंभीर स्तर पर है।
भारत की आर्थिक प्रगति की राह में तीसरी बड़ी चुनौती है बेरोजगारी और गिरती हुई लेबर पार्टिसिपेशन दर। भारत (Indian Economy) काम करने योग्य आबादी जिनमें 15 से 65 वर्ष के लोग आते हैं, के मामले में पीक पर है। पर भारत में लेबर पार्टिसिपेशन दर महज 2020 में 40 प्रतिशत ही रहा है। महिलाओं के लेबर पार्टिसिपेशन की बात करें तो यह और खराब सिर्फ 16 प्रतिशत ही है। कोविड के कारण यह सऊदी अरब से भी नीचे चला गया है। ऐसे में अगर भारत अपनी महिलाओं और काम करने के योग्य लोगों को अपनी उत्पादन प्रक्रिया में शामिल नहीं कर पाता है तो उसके लिए मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना एक चुनौती ही होगी।










