Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

Indian Economy : जीडीपी में उछाल का लाभ लोगों की जिंदगी पर क्यों नहीं दिखता?

Janjwar Desk
3 Dec 2021 6:44 AM GMT
Indian Economy : जीडीपी में उछाल का लाभ लोगों की जिंदगी पर क्यों नहीं दिखता?
x

जीडीपी में उछाल के बावजूद आम आदमी को ‘फील गुड’ महसूस नहीं हो रहा है।

Indian Economy : अगर 140 करोड़ आबादी में से 4 से 5 करोड़ की बेहतरी मान भी लें तो भी आप देश की स्थिति को खराब ही मानेंगे न।

भारतीय अर्थव्यवस्था की नाजुक स्थिति पर प्रो. अरुण कुमार का विश्लेषण


नई दिल्ली। कोरोना महामारी की वजह से साल 2020 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी साबित हुआ, लेकिन 2021 मोदी सरकार के साथ शेयर बाजार के लिए एक राहत देने वाली है। वही आम आदमी को जीडीपी में विकास दर का लाभ नहीं मिला। यही वजह है कि पीएम मोदी के दावों के बावजूद आम आदमी गुड फील नहीं कर रहा है। जबकि अप्रैल से जून के बीच भारत की जीडीपी में 20.1 फीसदी का उछाल आया है। यह भारत में विकास का नया रिकॉर्ड है। साथ ही इस बात का संकेत भी कि भारत अब दुनिया में सबसे तेज गति से ग्रोथ की तरफ बढ़ रहा है।

इसके बावजूद जीडीपी में उछाल का लाभ लोगों की जिंदगी पर क्यों नहीं दिखता? यह एक अहम सवाल है। पर ऐसा क्यों है, इसके लिए सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि अर्थव्यवस्था या जीडीपी में तेज उछाल का मतलब सीधे-सीधे यह नहीं मान लेना चाहिए कि अर्थव्यवस्था बहुत तेज़ी से पटरी पर आ रही है और कारोबार में तेज उछाल आ चुका है। ऐसा इसलिए कि मोदी सरकार की राजकोषीय नीति भारतीय अर्थव्यवस्था को टोटैलिटी में देखने की आदी नहीं है। मोदी की मोनेटरी और राजकोषीय नीतियां केवल वन वे कारोबारी व्यवस्था पर आधारित है।

दरअसल, मोदी सरकार की नीतियां तात्कालिक ग्रोथ के लिहाज से सही है, पर अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए अस्थायी या स्थायी किसी भी नजरिए से अच्छा नहीं है। ऐसा इसलिए कि यह केवल सप्लाई चेन की जरूरतों को पूरा करती हैं। डिमांड चेन विकसित करने पर सरकार का ध्यान नहीं है। या यूं कहें कि सरकार की प्राथमिकता में डिमांड चेन शामिल ही नहीं है। खास बात यह है कि जब तक इसे विकसित नहीं किया जाएगा तब तक अर्थव्यवस्था में स्थायी मजबूती आने की अपेक्षा करना ही अपने आप में बेमानी है। क्योंकि सप्लाई और डिमांड एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

मूल बात यहीं तक सीमित नहीं है। सरकार की ओर से जारी ग्रोथ के आंकडे भी सही नहीं हैं। सरकार केवल संगठित क्षेत्र के आंकड़े दिखाती हैं। असंगठित क्षेत्र के आंकड़े नहीं दिखाती। इसलिए सबकुछ अच्छा दिखाई देता है। सरकार कंप्लीट आंकड़े दे तो सही तस्वीर सामने आए। अभी जो दिखाया जा रहा है वो तो केवल सरकारी आंकड़ों का खेल है। यही वजह है कि देश का आम आदमी यानि गरीब, कम आय का व्यक्ति या मिडिल व अपर मिडिल क्लास का व्यक्ति सरकार की नीतियों से निराश व व्यथित नजर आता है। सरकार जो फील गुड कराना चाहती है उसका अहसास उसे नहीं हो रहा है। ऐसा इसलिए कि जब तक आप डिमांड चेन को विकसित नहीं करेंगे तब तक आम आदमी को इसका लाभ मिलना मुश्किल है।

इसी तरह मुद्रास्फीति के आंकड़े भी सही तरीके से सामने नहीं आ रहे हैं। सबकुछ गड़बड़ है। कोरोना की वजह से आंकड़े दोबारा केलकुलेट नहीं हुए हैं। सभी काम पुराने आंकडों के आधार पर ही चल रहा है। नए आंकड़े लोगों को नहीं मिल रहे हैं। अधिकांश क्षेत्र में बुरा हाल है। असलियत छुपाई जा रही है। देश की स्थिति बहुत खराब है। गरीब और गरीब होता जा रहा है। इसके उलट अमीरों की अमीरी बढ़ती जा रही है। बेरोजगारी, महंगाई और दैनिक आवश्यकता की चीजें लोगों की पहुंच से दूर होती जा रही हैं। दाल, चावल, दूध, तेल, मसाले, सब्ज्यिों, मेडिसिन व अन्य वस्तुओं के दाम में बेतहाशा इजाफे का सिलसिला जारी है। सरकार इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।

देश की अर्थव्यवस्था की सेहत असंगठित क्षेत्र की ताकत पर निभ्रर है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोग बेरोजगार हो गए हैं। उन्हें काम नहीं मिल रहा है। जो काम कर रहे हैं, उनके वेतन कम कर दिए गए हैं। गरीब से लेकर मिडिल क्लास तक परेशान है। अगर 140 करोड़ आबादी में से 4 से 5 करोड़ की बेहतरी मान भी लें तो भी आप देश की स्थिति को खराब ही मानेंगे न।

आगे की स्थितियां और खराब न हो इसके लिए डिमांड को बढ़ाने की आवश्यकता है। सरकार की सप्लाई बढ़ाने की नीतियांं बिजनेस को लाभ पहुंचाने वाली है। इससे निवेश बढ़ेगा और ग्रोथ बढ़ेगा। इसका लाभ तब मिलेगा जब सरकार डिमांड भी बढ़ाए। इसके रोजगार विकसित करने होंगे। वेतन बढ़ाने होंगे। इससे लोगों की परचेजिंग कैपेसिटी बढ़ेगी। तभी उत्पादित माल बाजार में खपेगा। ऐसा होने पर सप्लाई और डिमांड के बीच संतुलित जोन विकसित होगा। अगर ऐसा सरकार कर पाई तो अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।

ऐसा करना केवल इसलिए आवश्यक है कि केवल आईटी, टेलीकाम, ई कॉमर्स और तकनीकी वाले इकाइयों को ठीक करने से काम नहीं चलेगा। कंस्ट्रक्सन और मैन्युफैक्चरिंग में तीव्र ग्रोथ से काम नहीं बनने वाला है। टेक्सटाइल, लेदर गुडस, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, एयरलाइंस, होटल, रेस्तरां जैसे निजी सेक्टरों में निवेश करने होंगे। रोजगार के लिहाज से सबसे बड़ा क्षेत्र सेवा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ग्रोथ की गति तेज करने की आवश्यकता है।

Indian Economy : हालात को सुधारने के लिए सरकार के पास लंबा समय नहीं है। काफी समय पहले ही निकल चुका है। इस बीच कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रान की वजह से अगर तीसरी लहर की चपेट में देश आ गया तो स्थितियों को संभालना सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगा।

- लेखक जेएनयू से रिटायर्ड प्रोफेसर और जनता के अर्थशास्त्री नाम से लोकप्रिय हैं।

Next Story

विविध