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राष्ट्रीय

Ishrat Jahan case की जांच करने वाले गुजरात के चर्चित IPS Satish Verma बर्खास्त, कहीं इस बात की तो नहीं मिली सजा

Janjwar Desk
13 Sep 2022 8:55 AM GMT
गुजरात के इशरत जहां केस से जुड़े आईपीएस सतीश चंद्र को हटा रहा था गृहमंत्रालय, कोर्ट ने लगा दी रोक, वर्मा पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
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गुजरात के इशरत जहां केस से जुड़े आईपीएस सतीश चंद्र को हटा रहा था गृहमंत्रालय, कोर्ट ने लगा दी रोक, वर्मा पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

Ishrat Jahan case : इशरत जहां केस की जांच में लिए दुनियाभर में चर्चित आईपीएस अधिकारी सतीश वर्मा ( IPSOfficer Satish chandra Verma ) की सेवा से बर्खास्तगी के बाद भी ये सवाल आज भी इस जवाब के इंतजार में है कि वो लश्कर ए तैयबा की सदस्य थी या नहीं।

Ishrat Jahan case : गोधरा दंगे के बाद गुजरात के इशरत जहां मुठभेड़ ( Ishrat jahan Encounter ) मामले में सीबीआई जांच ( CBI investigation ) का नेतृत्व करने को लेकर दुनियाभर में चर्चित गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा ( IPS Satish Verma ) को रिटायर होने से ठीक एक माह पहले उन्हें सेवा से बर्खास्त ( IPS Satish chandra Verma sacked ) कर दिया गया है। वह अपने पद से 30 सितंबर को सेवानिवृत्ति होने वाले थे।

इस बात की मिली सजा!


गुजरात सरकार ( Gujrat ) ने 30 अगस्त को विभागीय कार्यवाही से संबंधित विभिन्न मामलों के आधार पर उन्हें सेवा से बर्खास्त करने का फैसला लिया। माना जा रहा है कि वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा ( IPS Satish Verma ) को इशरत जहां ( Ishrat jahan ) केस की निष्पक्ष जांच की सजा मिली है। फिर गुजरात चुनाव ठीक पहले उनकी बर्खास्ती भी कई सवाल खड़े करते हैं।

गुजरात सरकार की नजर में आइ्र्रपीएस सतीश चंद्र वर्मा ने देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम किया था। उन्होंने नियमों के विपरीत जाकर अपने काम को अंजाम दिया।

इस बारे में बार-बार प्रयास करने के बावजूद आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा ( IPS Satish chandra Verma ) ने कोई जवाब नहीं दिया। इस मसले पर राज्य सरकार के अधिकारियों ने भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।

हाईकोर्ट में दी थी बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती

सरकार की उनकी बर्खास्तगी का आदेश दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष रखा गया था। सरकार के फैसले का आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा ने चुनौती दी थी। उन्होंने अदालत में दायर याचिका के जरिए खुद के खिलाफ कई अनुशासनात्मक कार्रवाइयों को गलत करार दिया था। केंद्र सरकार ने 1 सितंबर से बर्खास्तगी के आदेश को लागू करने की मांग करते हुए एक आवेदन दिया। लगभग एक साल तक वर्मा की बर्खास्तगी का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय लंबित रहा। हाईकोर्ट ने सरकार से कहा था कि वर्मा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही जल्दी कदम न उठाए।

हाईकोर्ट में दी थी बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती

सरकार की उनकी बर्खास्तगी का आदेश दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष रखा गया था। सरकार के फैसले का आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा ने चुनौती दी थी। उन्होंने अदालत में दायर याचिका के जरिए खुद के खिलाफ कई अनुशासनात्मक कार्रवाइयों को गलत करार दिया था। केंद्र सरकार ने 1 सितंबर से बर्खास्तगी के आदेश को लागू करने की मांग करते हुए एक आवेदन दिया। लगभग एक साल तक वर्मा की बर्खास्तगी का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय लंबित रहा। हाईकोर्ट ने सरकार से कहा था कि वर्मा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही जल्दी कदम न उठाए।

दरअसल, गुजरात में 2004 के बहुचर्चित इशरत जहां मुठभेड़ कांड की जांच करने वाले वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से भी राहत नहीं मिली। गुजरात हाईकोर्ट द्वारा मुठभेड़ की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल के सदस्य रहे आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ पद के दुरुपयोग सहित विभिन्न आरोपों में सरकार ने तीन विभागीय जांच शुरू की थी। सरकार ने वर्मा पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। इनमें इशरत जहां मुठभेड़ मामले को लेकर मीडिया में बयान देकर सरकार की छवि खराब करने का भी आरोप भी शामिल हैं।

कैट ने वर्मा की दलीलों को कर दिया था खारिज

एक साल पहले कैट के अध्यक्ष जस्टिस एलएन रेड्डी और सदस्य एके बिशनोई की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई के खिलाफ 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी वर्मा की ओर से दाखिल तीनों याचिकाओं को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा था कि इस मामले से जुड़े तथ्यों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय सिद्धांतों की हम अनदेखी नहीं कर सकते। न्यायाधिकरण ने वर्मा की उन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले की जांच रिपोर्ट प्रशासन को पसंद नहीं आई और इसकी वजह से गुजरात के तत्कालीन सत्ताधारी दल जब केंद्र में सरकार में आया तो उनके खिलाफ इन आरोपों में जांच शुरू की कैट ने कहा था कि चूंकि याचिकाकर्ता वर्मा सेवानिवृत होने वाले हैं ऐसे में वह चार माह के भीतर अनुशासनात्मक कार्रवाई को पूरा करें। न्यायाधिकरण ने यह भी कहा है कि अनुशासनात्मक कार्रवाई में जो भी परिणाम आता है याचिकाकर्ता उसके खिलाफ उचित मंच या न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

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