'Pegasus Spyware' के जरिये सरकार नाकामियों व जनविरोधी नीतियों का पर्दाफाश करनेवालों का दमन करना चाहती है!
पेगासस स्पाइवेयर फोन टैपिंग मामले में सामने आई लिस्ट में पत्रकार रूपेश कुमार का भी नाम है.
जनज्वार। झारखंड के गिरिडीह जिला के पारसनाथ पर्वत पर 9 जून, 2017 को एक आदिवासी डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या सीआरपीएफ कोबरा ने 'ईनामी माओवादी' बताकर कर दी थी। जिसपर मैंने रिपोर्टिंग की थी और यह बताया था कि मोतीलाल बास्के 'ईनामी माओवादी' नहीं थे, बल्कि वे एक डोली मजदूर थे, जो डोली ढोने के साथ-साथ पारसनाथ पर्वत पर एक छोटा सा होटल भी चलाते थे।
मेरी रिपोर्ट वेब पोर्टल द वायर, जनज्वार, हस्तक्षेप, भड़ास फाॅर मीडिया व हिन्दी पत्रिका दस्तक व समयांतर में भी प्रकाशित हुई थी। बाद में मोतीलाल बास्के की फर्जी मुठभेड़ में की गयी हत्या के खिलाफ में डोली मजदूरों से संबद्ध मजदूर यूनियन मजदूर संगठन समिति, सांवता सुसार बैसी, भाकपा (माले) लिबरेशन, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन, झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा व आजसू पार्टी ने मिलकर 'दमन विरोधी मोर्चा' बनाकर आंदोलन छेड़ दिया था। इस आंदोलन की गूंज उस समय झारखंड विधानसभा से लेकर राज्यसभा व लोकसभा में भी सुनाई दी थी।
एक आदिवासी की फर्जी मुठभेड़ में की गयी हत्या के खिलाफ सही व जमीनी रिपोर्टिंग करने के कारण ही इस घटना के कुछ महीने बाद से मेरा फोन सर्विलांस पर लिया गया है। बाद में 4 जून, 2019 को जिस तरह से झारखंड के हजारीबाग जिला के पद्मा नामक जगह से मुझे व मेरे अधिवक्ता मित्र मिथिलेश कुमार सिंह का भाड़े की कार के ड्राइवर मोहम्मद कलाम के साथ सेन्ट्रल आईबी और एपीएसआईबी ने अपहरण किया और बाद में 6 जून को बिहार के गया जिला के डोभी से विस्फोटक के साथ गिरफ्तारी दिखाकर काला कानून यूएपीए के तहत जेल में डाल दिया, यह सब 'पेगासस स्पायवेयर' के द्वारा की गयी जासूसी को ही प्रतिबिंबित करता है।
आज हमारे देश में केन्द्र सरकार के द्वारा किस तरह से लोकतंत्र का अपहरण कर लिया गया है, यह 'फोन टैपिंग' मामला उसका एक बानगी भर है। क्योंकि एनएसओ 'पेगासस स्पायवेयर' सिर्फ सरकारों को ही देती है, इसलिए यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि फोन का सर्विलांस पर रखा जाना सरकार की अनुमति से ही हुआ है।
दरअसल, केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार 'पेगासस स्पायवायर' के जरिये सरकार की नाकामियों व जनविरोधी नीतियों का पर्दाफाश करनेवाले लोगों का दमन करना चाहती है, ताकि सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ कोई भी आवाज ना उठा सके।
मैं केन्द्र सरकार से स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूँ कि तुम मेरा फोन सर्विलांस पर रखो या फिर मुझे जेल में डाल दो, मैं अपनी अंतिम सांस तक जनपक्षीय लेखन जारी रखूंगा।दम है कितना दमन में तेरे, देख लिया है देखेंगे जगह है कितनी जेल में तेरे, देख लिया है देखेंगे।
इस मामले में अपूर्व भारद्वाज लिखते हैं कि 'जब पेगासीस की जासूसी की लिस्ट जारी हो रही थी, उस समय मैं क्लब हाउस में मेरे मित्र Rupesh Kumar Singh से बात कर रहा था। फिर अचानक से पता चला रूपेश का नाम भी उस लिस्ट में है रूपेश झारखंड में जनसरोकार की पत्रकारिता करते है वो आदिवासियों औऱ उनके अधिकारों के लिए लगातार लिखते है।'
रूपेश से मेरी मुलाकात भी कुछ दिन पहले क्लब हाउस के एक रूम में ही हुई थी। रूपेश ने स्वतंत्र पत्रकारिता की भारी कीमत चुकाई है। रूपेश पत्रकारिता के कोई बड़े नाम नही है पर वो उन सब लोगो के लिए मिसाल है जो आज श्रमजीवी पत्रकारिता और जनसरोकार की पत्रकारिता करना चाहते है रूपेश पूरे जन विचार संवाद परिवार को आप पर गर्व है।
नोट - रूपेश की यह रिपोर्ट अपूर्व भारद्वाज से हुई बातचीत पर आधारित है.