Mirzapur News : मुख्यमंत्री पोर्टल के साख पर सवाल, समाधान के बजाए घर बैठे रिपोर्ट लगाकर गुमराह कर रहे लेखपाल

मिर्जापुर से संतोष गिरि की रिपोर्ट
Mirzapur News। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की सरकार बनते ही सार्वजनिक व निजी जमीनों से अतिक्रमण व अवैध कब्जा (Illegal Possession) हटाने के लिए अधिकारियों को सख्ती से पालन करने हेतु निर्देश दिया गया था। इसके लिए सभी जिलों में अतिक्रमण विरोधी दस्ता गठित करने का भी फरमान जारी किया गया। सरकार ने यह भी निर्देश दिया था कि किसी की निजी जमीन पर दबंगों की ओर से किए अवैध कब्जे में हटाने के लिए भी कार्रवाई की जाए। साथ ही ग्राम सभा या सरकारी भूमि पर अवैध तरीके से कब्जा किये लोगों को बलपूर्वक खाली कराकर सरकारी भूमि को मुक्त कराया जाए, लेकिन ऐसे लोगोंं को खदेड़ने के बजाय लेखपालों (राजस्व कर्मियों) द्वारा संरक्षण दिया जाने लगा है।
राजस्व विभाग (Revenue Department) के अधिकारी और कर्मचारी सार्वजनिक व निजी जमीनों पर अतिक्रमण तथा अवैध कब्जा हटाने में रुचि नहीं लेते। पीड़ित की ओर से बार-बार शिकायत करने पर अधिकारी मामले का निस्तारण करने के बजाए उसे न्यायालय से निस्तारण कराने की रिपोर्ट लगाकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं या फिर बिना मौका मुआयना किये भूमि माफियाओंं के पक्ष में ही रिपोर्ट लगाकर पीड़ित पक्ष पर ही सवाल खड़ा कर देते हैं। इससे प्रदेश सरकार की ओर से संचालित एंटी भू-माफिया व अतिक्रमण विरोधी अभियान की हवा निकल रही है।
यहां हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले (Mirzapur) की सदर तहसील और चुनार की जहां ऐसे कई मामले हैं जिनमेंं लेखपाल घर बैठे रिपोर्ट लगा रहे हैं। जिससे फरियादियों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। कुछ मामले इसमें ऐसे हैं जिसमेंं बताया जाता है कि लेखपाल का तार सीधे-सीधे भूमि अधिग्रहण करने वाले उनके ही करीबियों से जुड़ा होता है। फिर चोर चोर मौसेरो भाइयो की जुगलबंदी में फरियादी पिसता रहता है, किंतु उसको न्याय नही मिलता।
ताजा मामला चुनार तहसील से हिनौता ग्रामसभा के छातोंं गांंव का है। हिनौता ग्राम सभा में ऐसे कई प्रकरण हैं जिसमें सिर्फ एक ही लेखपाल के लीपापोती की संलिप्तता बार-बार आती है। ग्रामीणों और मौजूदा प्रधान ने एक मामले में शासन को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगायी है। जिसमें सरकारी हैंडपंप और तालाब पर अतिक्रमण (Encroachment) को लेकर राजस्व विभाग के अधिकारियों को जांच करने के लिए कहा गया तो लेखपाल ने अपने रिपोर्ट में फरियादी को ही पार्टी बना दिया।
दूसरा मामला इसी गांव के फुलवरिया का है जहां दर्जनों बीघा भूमि लेखपाल के मिलीभगत से पहले पूर्व प्रधान के परिजनों के नाम पट्टा कराया गया फिर उसको बाहरी लोगों को बेच दिया गया। जिसका मामला न्यायालय में विचाराधीन है। हर मामले में एक ही लेखपाल का नाम आना संशय की स्थिति पैदा कर रहा है। ऐसे एक-दो मामले नहींं, अपितु दर्जनों ऐसे मामले है जिसमें लेखपाल की भूमिका संदिग्ध रही है। लेखपाल काफी रसूख और पहुंंच वाला है। लोगोंं का तो यहां तक कहना है जबतक लेखपाल को चढ़ावा न चढ़ाया जाय वह तहसील से हिलता तक नहीं, बड़ी जमीनों का उलटफेर हो या कब्जा दिलवाना लेखपाल को इसमें महारथ हासिल है।
यह तो रहा मिर्जापुर के चुनार तहसील का मामला, अब आ जाते हैं मिर्जापुर के सदर तहसील में जहां सदर तहसील क्षेत्र के धनीपट्टी गॉव में जहां आराजी नंबर- 81 की जमीन की नापी को लेकर लेखपालों द्वारा मांगे गये पैसे न मिलने पर पर घर बैठे गलत रिपोर्ट लगाये जाने का मामला सामने आया है। जिसको लेकर पीड़ित पक्ष ने जिला प्रशासन को अवगत कराया, लेकिन यहां भी इंसाफ न मिला और पुनः लेखपाल ने 24 अगस्त को गलत रिपोर्ट लगाकर सीएम पोर्टल पर भेज दी।
ज्ञात हो कि सदर तहसील क्षेत्र के धनीपट्टी गॉव में आराजी नंबर 81 भूमिधरी भूमि है, जो रमाशंकर वगैरह पुत्र रामनारायण दुबे के नाम अंकित है तथा घर के बगल में है। उक्त आराजी नंबर की भूमि सड़क से लगा हुआ है जिसके पूर्व व पश्चिम अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। आराजी नंबर-81 से पूर्व दिशा में प्राचीन परति नं 80 है, जिस पर अनुसूचित जाति के मेवालाल काबिज है और रमाशंकर की जमीन पर अतिक्रमण कर रहे थे। 20 वर्ष पूर्व भी इस भूमि पर इनके पूर्वजो द्वारा कि जा रहे अतिक्रमण (Encroachment) पर एसडीम सदर के आदेश पर जांच हुई और अतिक्रमण हटवाया गया था। बावजूद वह अतिक्रमण से बाज नहींं आ रहे है। जबकि रमाशंकर वगैरह बिना किसी विवाद के उक्त भूमि पर नापी कराकर बाउण्ड्री वाल कराना चाहते है, जिसको लेकर स्थानीय प्रशासन सहित मुख्यमंत्री पोर्टल 1076 पर शिकायती सूचना दी।
आरोप है कि सूचना पर क्षेत्रीय लेखपाल तनवीर शौकत ने अपने दो करीबियों को रमाशंकर के घर भेजा। रमाशंकर के घर खाली हाथ (वगैर दस्तावेज व नाप जोख का सामान लिए) पहुंचे पथरा दसौधीं के लेखपाल राहुल सिंह ने धनिपट्टी के लेखपाल की तरफ से चाय-पानी करने के दौरान जमीन की कीमत के आधार पर नापी करने के एवज में 20 हजार रुपये पारिश्रमिक की मांग की। पैसे न मिलने पर 23 जुलाई 2021 को तनवीर शौकत ने घर बैठे गलत रिपोर्ट लगाकर भेज दी।
इस बात की जानकारी रमाशंकर परिवार को सीएम पोर्टल से ही मिला जिसपर उन्होंने पूरे पैसे के लेन देन की बात बताई और शिकायती पत्र उप जिलाधिकारी सदर को दिया। जैसे ही इसकी जानकारी लेखपाल तनवीर शौकत को हुई वह शिकायतकर्ता से सेंटिग में लग गये और अपने बिमार होने का हवाला देते हुए पोर्टल पर समायावधि समाप्त होने की बात बताकर जल्दबाजी में रिपोर्ट लगााने की बात कही और नापी के लिए वक्त मांगा। आज कल करते हुए भूमि की नापी टरकती रही, इसी बीच 21 अगस्त 2021 को सीएम पोर्टल पर लेखपाल राजेन्द्र सरोज ने घर बैठे उसी रिपोर्ट को दोहरा दिया और शिकायत के निस्तारण की बात कही।
बताना यह है कि दोनों लेखपाल ने जो आख्या लगाायी है कि भूमि के चारों ओर आवादी है, वह गलत है क्योंकि भूमि की दक्षिण दिशा में सड़क और उत्तर में स्वंय पीड़ित का आराजी नंबर 71 व खाली आवादी है। दूसरी बात आख्या में विपक्ष ग्राम प्रधान, पुलिस के सामने वादी से अपनी आराजी नं0 81 को नपवाकर बाउण्ड्री वाल तैयार करने को बार-बार कहता है। इससे साफ स्पष्ट है कि दोनों लेखपाल तनवीर शौकत और राजेन्द्र सरोज ने अपने ओहदे (पद) का गलत इस्तेमाल किया है।
पीड़ित ने इस प्रकरण में साजिश के तहत शामिल तीनों तनवीर शौकत, राहुल सिंह व राजेन्द्र सरोज लेखपाल की भूमिका की जांच कर निलंबित करने की मांग करते हुए वैधानिक धाराओं में मुकदमा पंजिकृत कर कार्यवाही की मांग की है। इसके लिए पीड़ित ने बाकायदा मुख्यमंत्री पोर्टल पर संपूर्ण दस्तावेज तथ्यों के साथ अपनी शिकायत को संलग्न किया है लेकिन आश्चर्य की बात है कि दोनों ही मामलों में जांच को प्रभावित करने के लिए निरंतर झूठ ही आख्या लगाकर शिकायतों का निस्तारण होने की बात कही जा रही है। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मंच की उपयोगिता क्या है। जब शिकायत करने वाले व्यक्ति का शिकायतों का निस्तारण सही ढंग से न हो, उल्टे शिकायतों की जांच और निस्तारण का दायित्व भी उन्हीं हाथों में चला जाए जिसकी शिकायत की गई हो..?
पुलिस और स्वास्थ्य विभाग का भी है बुरा हाल
यह तो रहा राजस्व विभाग का मामला। अब पुलिस और स्वास्थ्य विभाग से जुड़े हुए मामलों पर एक नजर डालते हैं। मिर्जापुर शहर निवासी अधिवक्ता धनेश्वर नाथ तिवारी ने "जनज्वार टीम" को बताया कि 13 जुलाई 2021 को शाम 7 बजे वह नगर के मिशन कंपाउंड स्थित आईसीआईसीआई बैंक के समीप से गुजर रहे थे तभी चार-पांच की संख्या में आए लोगों ने उन्हें घेर कर मारने पीटने के साथ ही उनके साथ लूट की घटना को अंजाम देते हुए उनका स्मार्ट मोबाइल फोन छीन लिया था।
इसकी सूचना अधिवक्ता धनेश्वर नाथ तिवारी ने उसी दिन शहर कोतवाली पुलिस एवं जिला अस्पताल चौकी पुलिस को लिखित और नामजद करते हुए तहरीर देने के साथ ही अपने साथ हुए हादसे और चोटों का चिकित्सकीय मुआयना भी कराया था। आश्चर्य की बात है कि कई महीने बीत जाने के बाद भी पुलिस द्वारा इस मामले में तहरीर तक दर्ज नहीं की गई, बल्कि अधिवक्ता का आरोप है कि पुलिस उल्टे उनके साथ घटना को अंजाम देने वाले लोगों को ही बचाने के प्रयास में लगी हुई है।
अधिवक्ता का आरोप है कि उक्त घटना को अंजाम देने वाले उक्त लोगों द्वारा इससे पहले मिर्जापुर सदर तहसील में भी उनके साथ दुर्व्यवहार एवं मारपीट की घटना को अंजाम दिया जा चुका है। इसकी भी शिकायत उनके द्वारा की गई थी, लेकिन दोनों ही मामलों में पुलिस पूरी तरह से उदासीन बनी हुई है। जबकि इस पूरे मामले की शिकायत उन्होंने मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर भी बकायदा तथ्यों के साथ की है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि यहां भी कोई सुनवाई ना होने से उनके साथ घटित घटनाक्रम को अंजाम देने वाले लोगों के हौसले जहां बुलंद बने हुए हैं। वहीं उन्हें बराबर जानमाल की धमकियां भी मिल गई हैं जिससे वह और उनका परिवार बराबर सशंकित रहता है।
अधिवक्ता धनेश्वर नाथ तिवारी का आरोप है कि उन्होंने अपने साथ होने वाले घटनाक्रम के बारे में संपूर्ण तथ्यों के साथ पुलिस को अवगत कराने के साथ ही घटनाक्रम के दौरान मोबाइल छीन लिए जाने के बारे में भी जानकारी दी, लेकिन आज तक पुलिस उक्त मोबाइल को भी ना तो बरामद करने की जहमत उठाई है और ना ही उसके बारे में कोई छानबीन की है।
आश्चर्य की बात है कि धनेश्वर नाथ तिवारी के मामले में अस्पताल चौकी पुलिस प्रभारी ने दो ऐसे गवाहों का नाम अपनी जांच पड़ताल में शामिल कर इस मामले में लीपापोती कर ली है, जिन्हें पुलिस की इस जांच पड़ताल की कानों कान खबर भी नहीं हुई और ना ही उन्हें बताया गया कि उन्हें इस मामले में गवाह के तौर पर शामिल किया गया है। ऐसे में इस संपूर्ण मामले से स्पष्ट हो रहा है कि पुलिस घटित अपराधों के मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए दोषियों को दंडित कराने के बजाय अपराध पर ही पर्दा डालने का काम करती है। हद की बात तो यह है कि मुख्यमंत्री जन सुनवाई पोर्टल पर भी की गई शिकायत पर पुलिस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगे हैं।
स्वास्थ्य विभाग में चतुर्थ श्रेणी के पद पर तैनात सुनील कुमार कन्नौजिया की भी कुछ ऐसी ही दास्तान है, जिन्हें न्याय पाने के लिए, अपनी फरियाद के निस्तारण हेतु दर-दर की ठोकरें खाने पड़ रही है। उनकी तमाम शिकायतों को महकमे के अधिकारी रद्दी की टोकरी में डालते आ रहे हैं। झूठी शिकायतों पर विभागीय उत्पीड़न का शिकार होते आ रहे चतुर्थ श्रेणी कर्मी सुनील कुमार कनौजिया मुफलिसी के दौर से गुजर रहा है। जिनके द्वारा मुख्यमंत्री जन सुनवाई पोर्टल पर की गई शिकायतों पर भी जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा दोषियों का ही बचाव करते हुए गलत रिपोर्ट लगाकर शासन को गुमराह किया जाता रहा है जिसका प्रतिफल यह है कि न्याय और शिकायतों पर कार्रवाई की उम्मीद लेकर लगातार फरियाद लगाते आ रहे स्वास्थ्य विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुनील कुमार कनौजिया को न्याय की बात तो दूर रही है उसे फटकार और धिक्कार ही मिलती आई है, जिससे वह आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान हो उठा है।
स्वास्थ्य, राजस्व और पुलिस विभाग से जुड़ी हुई यह चंद उदाहरण सरकार के त्वरित समस्याओं के समाधान, निस्तारण प्रक्रिया पर उंगली उठाने का काम कर रहे हैं। जिसमें कहीं ना कहीं से वह संबंधित मातहत अधिकारी कर्मचारी पूर्णरूपेण जिम्मेदार हैं जिनके कंधों पर निस्तारण का भार सौंपा गया है। हद की बात तो यह है कि अधिकांश मामलों में जिसके खिलाफ या जिस विभाग के खिलाफ शिकायत है उसी को शिकायतों के निस्तारण का भी दायित्व सौंपा जाता है। ऐसे में सहज ही समझा जा सकता है कि भला वह कैसे पारदर्शिता पूर्ण ढंग से निस्तारण सुनिश्चित करेंगे जब वह खुद ही कहीं ना कहीं से जांच और शिकायत के घेरे में होते हैंं। यह एक बड़ा और अहम एक यक्ष सवाल है? जो कहीं ना कहीं से सरकार की निस्तारण व स्वच्छ छवि पर भी ग्रहण लगाने का काम करते आ रहे हैं।











