Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

Modi @ 8 Economy : यूपीए सरकार की चमकती इकोनॉमी 8 साल में नीम बेहोशी की हालत में पहुंच गई

Janjwar Desk
26 May 2022 5:00 PM IST
Modi @ 8 Economy : यूपीए सरकार की चमकती इकोनॉमी 8 साल में नीम बेहोशी की हालत में पहुंच गई
x

Modi @ 8 Economy : यूपीए सरकार की चमकती इकोनॉमी 8 साल में नीम बेहोशी की हालत में पहुंच गई

Modi @ 8 Economy : 2014 में इंडिया शाइनिंग का बैनर लगाकर कुर्सी संभालने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने दो बड़े वादे किए थे- एक तो हर साल 2 करोड़ नौकरी और दूसरा विदेशों से कालाधन वापस लाकर देश के हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपए जमा करने का वादा, जिसे एक इंटरव्यू में गृह मंत्री अमित शाह ने ‘जुमला’ बताया था...

सौमित्र रॉय का विश्लेषण

Modi @ 8 Economy : इस वक्त, जब मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल की आठवीं सालगिरह (Modi @ 8 Economy) पर इतिहास के पदचिन्हों को देख रहा हूं, मेरे कानों में बुलडोजर और पोकलेन मशीन की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही है। इन मशीनों ने मेरे सुंदर शहर को खोदकर तबाह कर दिया है। फिर भी आए दिन मुझे स्मार्ट सिटी के नाम से हर कहीं एक बोर्ड लगा मिलता है- काम चालू है। देश के प्रधानमंत्री के बारे में कहा जाता है कि वे 18 से 22 घंटे काम करते हैं। उनके भीतर एक घड़ी है, जिसकी सुइयां मनचाहे तरीके से घुमाकर वे काम और आराम के वक्त में हेरफेर कर सकते हैं। हो सकता है। लेकिन इस कदर मेहनत और समर्पण का नतीजा भी तो दिखना चाहिए, जो नहीं दिखता। अलबत्ता, शोर जरूर है।

देश की अर्थव्यवस्था (Modi @ 8 Economy) नीम बेहोशी की हालत में पहुंच रही है। इतनी बीमार कि प्रचार के भारी शोर में भी उसकी नींद नहीं खुल रही है। 2014 में इंडिया शाइनिंग का बैनर लगाकर कुर्सी संभालने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने दो बड़े वादे किए थे- एक तो हर साल 2 करोड़ नौकरी और दूसरा विदेशों से कालाधन वापस लाकर देश के हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपए जमा करने का वादा, जिसे एक इंटरव्यू में गृह मंत्री अमित शाह ने 'जुमला' बताया था। तो चलिए उस कथित जुमले को परे रखकर नौकरी, बेरोजगारी और आर्थिक मुद्दों पर ही सरकार के अभी तक के कामकाज का मूल्यांकन किया जाए।

कैसी है देश की इकोनॉमी की मौजूदा हालत

1. रोजगार- मोदी सरकार (Modi @ 8 Economy) ने जब 2014 में कुर्सी संभाली थी, उस वक्त देश की जीडीपी (GDP) 7-8% पर थी। फिर 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री ने केवल 4 घंटे का नोटिस देकर देश में नोटबंदी (Demonetization) लागू कर दी। भारत ने अपनी 86% मुद्रा लुटा दी। छोटे उद्योग-धंधे चौपट हो गए और बैंकों में डूबत ऋण (NPA) बढ़ता गया। जीडीपी 6.2% से लुढ़कते हुए कोविड की महामारी से ठीक पहले 4.1% पर आ गई। उसके बाद कोविड महामारी (Covid Pandemic) की दोनों लहर में अनियोजित लॉकडाउन ने इकोनॉमी (Economy) का यह हाल किया कि वह -7.3% पर जा धंसी। देश की 90 करोड़ कामकाजी आबादी में से 45 करोड़ लोग इस समय काम-धंधा ढूंढ रहे हैं और इनमें से ज्यादातर ने हार मान ली है, क्योंकि मोदी सरकार सालाना दो करोड़ नौकरियां तो दूर, केवल 6.98 लाख नौकरियां ही जुटा पाई। वजह यह रही कि नोटबंदी के दुष्प्रभाव से देश में 67% छोटे और मझोले उद्योग (MSME) बंद हो गए, जबकि 66% उद्योगों का मुनाफा 50% तक घट गया। असल में देश में 95% नौकरियां अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) से आती हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में इस समय 8.72 लाख पद खाली हैं। इनमें बड़ा हिस्सा भारतीय सेना और रेल्वे का है। सेना में दो साल से भर्ती नहीं हुई है और रेल्वे में 1.5 लाख से ज्यादा पदों को खत्म किया जा रहा है।

2. धुंधली पड़ती नब्ज़- कोविड के झटके से उबरकर भारत की अर्थव्यवस्था (Modi @ 8 Economy) इस समय सरकारी अनुमानों के मुताबिक 8% की दर से बढ़ रही है। लेकिन शून्य से 7.3% धंस चुकी इकोनॉमी का असल हाल महंगाई को ध्यान में रखकर ही मालूम किया जा सकता है। खुदरा महंगाई अप्रैल 2022 में पिछले 8 साल के सबसे ऊंचे दर 7.8% पर रही है। पेट्रोलियम और खाद्य पदार्थों की महंगाई (Inflation) ने देश की घरेलू बचत को जीडीपी के 30% पर ला खड़ा किया है, जो कि 8% आर्थिक विकास के लिए 36% पर होनी चाहिए थी। मई में यह आंकड़ा और नीचे गिरकर 25% तक जा सकता है, क्योंकि मार्च-अप्रैल में कई चीजों के दाम बेतहाशा बढ़े हैं। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब केवल इतना है कि इससे एक साल तक का आयात बिल चुकाया जा सकता है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया बीते एक महीने में कई ऐतिहासिक गिरावटों के बाद अभी 77.52 पर टिका है। भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) 58.36 बिलियन डॉलर का हो चुका है, क्योंकि निर्यात के मुकाबले आयात में 24% की बढ़ोतरी हुई है। इन हालात में सरकार ने सुधारात्मक कदम नहीं उठाए तो भारत की हालत भयंकर महंगाई और दिवालिएपन से जूझ रहे श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी हो सकती है।

3. सूचकांकों में फिसलता भारत- बुधवार को ही सामने आए विश्व पर्यटन सूचकांक (WEF Tourism Index) में भारत 8 पायदान फिसलकर 54वें स्थान पर पहुंच चुका है। सिर्फ यही नहीं, भारत (Modi @ 8 Economy) तकरीबन सभी विकास सूचकांकों में फिसल ही रहा है। पिछले साल विश्व भुखमरी सूचकांक 2021 जारी हुआ था, जिसमें भारत 116 देशों में 101वीं पायदान पर खड़ा है, क्योंकि यूपीए सरकार ने 10 साल में 20 करोड़ लोगों को गरीबी से उबारा तो मोदी सरकार के 8 साल में 30 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी की रेखा के नीचे आ गए। सरकार अभी देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज बांट रही है, जो राशन के अतिरिक्त है। संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक (World Human Development Index) में भारत एक स्थान नीचे फिसला है, क्योंकि भारत के लोगों की औसत आय घट गई है और देश स्वास्थ्य और बालिकाओं की शिक्षा पर निवेश करने की जगह, उल्टा विनिवेश कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के ही खुशहाली सूचकांक (World Happiness Report) को देखें तो उसमें भी भारत 19 स्थान लुढ़का है। खुशहाली सूचकांक में प्रति व्यक्ति जीडीपी, जीवन की प्रत्याशा और भ्रष्टाचार के मामले में लोगों की धारणा को आधार बनाया जाता है।

4. बढ़ती आर्थिक असमानता- बीते अप्रैल में मोदी सरकार (Modi @ 8 Economy) ने रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के आंकड़ों के हवाले से कहा कि उसने 2014 से लेकर 2022 तक देश में गरीब, कमजोर तबके के लिए भोजन, ईंधन और उर्वरक सब्सिडी (Subsidy) के रूप में 91 लाख करोड़ रुपए खर्च किए हैं, जो कि पिछली यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल में किए गए 49.2 लाख करोड़ रुपए के खर्च से ज्यादा है। लेकिन अगर मोदी सरकार के इस खर्च से लोगों का जीवन स्तर सुधरता तो बेहतर था, क्योंकि यूपीए सरकार ने 20 करोड़ लोगों को गरीबी से उबारा था। अलबत्ता, मोदी सरकार के 8 साल में आर्थिक असमानता बढ़ी है। देश के 1% अमीरों की तिजोरी में 57% दौलत बंद है, जबकि कामकाजी आबादी का 35% महीने में 25 हजार रुपए ही कमा पा रहा है। यह बात प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाह देने वाली परिषद ही कह रही है। प्रतिमाह 5 हजार रुपए कमाने वाला तबका वेतनभोगी कामकाजी परिवारों का 15% है। मोदी सरकार विश्व बैंक के आधे-अधूरे आंकड़ों के साथ किए गए अध्ययनों या प्रायोजित रिपोर्टों से भले ही देश की तरक्कत की तस्वीर खींचकर अपनी पीठ ठोक ले, लेकिन ऑक्सफैम (Oxfam) की रिपोर्ट कहती है कि देश के 84% परिवारों की आय कोविड महामारी के दौरान घटी है, लेकिन इसी दौरान भारत में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई। उनकी दौलत 23 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 53 लाख करोड़ रुपए हो गई।

ये आंकड़े मोदी सरकार (Modi @ 8 Economy) की भावी 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी के ख्वाब को जमींदोज़ करने के लिए काफी हैं। खासतौर पर इसलिए, क्योंकि सरकार के प्रचार और जमीनी प्रभाव में जितना अंतर है, उतना ही उसकी कथनी और करनी में भी है। यही वह शोर है, जो मेरे जैसे ही नहीं, बल्कि हर उस शख्स को परेशान किए हुए है, जिसे हालात का अंदाजा है। मोदी बेशक अपने दूसरे कार्यकाल को अमृतकाल कहते हों, लेकिन आर्थिक रूप से देखें तो देश ज्यादा बदहाल है और इस बदहाली के रास्ते में भारत अगले 3 साल में 5 ट्रिलियन तो नहीं, लेकिन उससे आधे यानी करीब 2.6 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी के रूप में खड़ा दिखेगा। लेकिन उससे भी पहले अर्थव्यवस्था को कोमा में पहुंचने से रोकने की बड़ी चुनौती है।

Next Story

विविध