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Mohan bhagwat live dussehra : मोहन भागवत फिर बोले जनसंख्या नियंत्रण पर 50 साल के लिए बने सख्त कानून और सभी पर हो लागू

Janjwar Desk
15 Oct 2021 10:00 AM IST
Mohan bhagwat live dussehra : मोहन भागवत फिर बोले जनसंख्या नियंत्रण पर 50 साल के लिए बने सख्त कानून और सभी पर हो लागू
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(संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कश्मीर में धारा 370 को लेकर बयान दिया है) file pic.

Mohan Bhagwat : दशहरा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना दिवस मनाया जाता है, शुक्रवार, 15 अक्टूबर को इस मौके पर संघ मुख्यालय नागपुर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया है..

Mohan Bhagwat : दशहरा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना दिवस मनाया जाता है। शुक्रवार, 15 अक्टूबर को इस मौके पर संघ मुख्यालय नागपुर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने समारोह को संबोधित करते हुए मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि, विदेशी आक्रांताओं और आतंकी गतिविधियों को लेकर कई बातें कहीं।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88% से घटकर 83.8% रह गया है। वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8% से बढ़कर 14.24% हो गया है।

आतंकियों की गतिविधियों का बंदोबस्त भी करना पड़ेगा, चुन-चुन कर जैसे पहले करते थे। मनोबल गिराने के लिए वे लक्षित हिंसा कर रहे हैं। उनका उद्देश्य एक ही है कि अपना डर पैदा करना। शासन को भी बड़ी चुस्ती से इसका बंदोबस्त करना पड़ेगा। हिंदू समाज के अपने भी कुछ प्रश्न है। मंदिरों की स्थिति बहुत अच्छी नही है, लेकिन देश के अलग-अलग भागों में अलग-अलग स्थित है।

उन्होंने यह भी कहा कि यह वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75वां वर्ष है। 15 अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए। हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए। स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदु था। हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली।

उन्होंने कहा कि जनसंख्या नीति होनी चाहिए। हमें लगता है कि इस बारे में एक बार फिर विचार करना चाहिए। अभी भारत युवाओं का देश है। 30 साल के बाद ये सब बूढ़े बनेंगे, तब इन्हें खिलाने के लिए भी हाथ लगेंगे। और उसके लिए काम करने वाले कितने लगेंगे, इन दोनों बातों पर विचार करना होगा। अगर हम इतना बढ़ेंगे तो पर्यावरण कितना झेल पाएगा। 50 साल आगे तक विचार करके रणनीति बनानी चाहिए। जैसे जनसंख्या एक समस्या बन सकती है, वैसे ही जनसंख्या का असंतुलन भी समस्या बनती है।

विजयदशमी के मौके पर संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा, "हम लोगों के मन से आज भी देश के विभाजन की टीस खत्म नहीं हुई है। उस दुखद इतिहास के बारे में हमें जानना होगा। जिसके चलते देश का विभाजन हुआ है, उसे दोहराया नहीं जाना चाहिए। इसलिए हमें पुराने इतिहास को जानना चाहिए ताकि खोये हुए लोगों को वापस गले लगा सकें। लेकिन ऐसी अखंडता की पहली शर्त रहती है कि भेद रहित और समता निहित समाज। इन्हीं कमियों के चलते कुछ बर्बर विदेशी आए और हमें पदाक्रांत करके चले गए। यह हमारी कमी से ही हुआ है।"

उन्होंने कहा कि यह वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75वां वर्ष है। 15 अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए। हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए। स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदु था। हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली।

देश के विभाजन की टीस अभी तक गई नहीं है। वह अत्यंत दुखद इतिहास है। लेकिन इस इतिहास का सामना करना चाहिए। खोई हुई एकता और अखंडता को दोबारा लाने के लिए इस इतिहास को जानना चाहिए। उस इतिहास को विशेषकर नई पीढ़ी को जानना चाहिए, ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो। खोया हुआ वापस आ सके।

भागवत ने कहा कि पहले हमने अपने स्व, स्वजनों को भुला दिया तो भेद जर्जर हो गए। इसलिए दूर देशों से मुठ्‌ठी भर लोग आए और हम पर आक्रमण कर दिया। ऐसा एक बार नहीं बार-बार हुआ। ब्रिटिशों के अपने यहां राजा बनने तक यही इतिहास हुआ।

कालांतर में सुबह की कल्पना ढीली पड़ी, उसके कारण स्वतंत्रता होना, अपना स्व क्या है, ये पता नहीं। स्व को भूल गए तो स्वजनों को भी भूल गए। जो विविधता थी उसकी चौड़ी खाइयां बन गईं, हमको बांटने वाली। इसका लाभ विदेशियों ने लिया और जिस दिन हम स्वतंत्र हुए उस दिन देश का विभाजन हुआ। जिस शत्रुता के चलते विभाजन हुआ, उसकी पुनरावृत्ति नहीं करनी है।

मोहन भागवत ने कहा कि एकता में बड़ी समस्या जातिगत विषमता की रही है, जिसे खत्म करने के लिए तमाम प्रयास हुए हैं। मोहन भागवत ने इस मौके पर गुरु तेग बहादुर को भी याद किया। उन्होंने कहा कि उनका बलिदान इस देश की अखंडता और एकता को बनाए रखने के लिए ही था।

उस समय देश में यह अभियान चल रहा था कि अपनी पूजा बदलो या तो मरो। तब कश्मीर के लोगों ने गुरु तेग बहादुर से गुहार लगाई। यह सुनकर गुरु तेग बहादुर दिल्ली चले गए और उनका बलिदान दिया। उन्होंने भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए अपना सिर दिया, लेकिन देश का सार नहीं दिया। इसलिए वह हिंद की चादर कहलाए। वह इस देश की आकाशगंगा के सूर्य जैसे हैं।

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