पुरोला कांड : भाजपा को अल्पसंख्यक मोर्चा भी चाहिए-RSS का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच भी, लेकिन उजड़ा और लाचार होना उसकी पहली शर्त
पुरोला छोड़ के जाने वालों में भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के उत्तरकाशी जिले के जिलाध्यक्ष ज़ाहिद मलिक भी शामिल, मीडिया में व्यक्त की अपनी पीड़ा कि कैसे विवश कर दिया उन्हें उजड़ जाने को
पुरोला कांड पर भाकपा माले के प्रदेश सचिव इंद्रेश मैखुरी की तल्ख टिप्पणी
उत्तराखंड में पुरोला का मामला पूरे देश में चर्चा में है, जहां पर 26 मई को एक नाबालिग युवती को एक मुस्लिम और एक हिन्दू युवक के साथ कुछ लोगों ने पकड़ा और फिर इसे लव जेहाद का मामला करार दिया गया. इस मामले में वहाँ दुकानों पर पोस्टर लगाए गए हैं कि अल्पसंख्यक दुकानें खाली कर के चले जाएँ. अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग पुरोला छोड़ के चले भी गए हैं. पुरोला छोड़ के जाने वालों में भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के उत्तरकाशी जिले के जिलाध्यक्ष ज़ाहिद मलिक भी शामिल हैं. एक टीवी परिचर्चा में उनकी बात सुनी. उन्होंने अपनी पीड़ा बयान की. यह भी कहा कि वे दोबारा पुरोला जाने का साहस नहीं कर सकते. अपनी दुकान खाली करने की प्रक्रिया में अपनी पत्नी और दामाद के साथ अभद्रता की बात भी वे कहते हैं.
लेकिन भाजपा के संदर्भ में पूछने पर वे कहते हैं कि उन्हें भाजपा से कोई शिकायत नहीं है. वे अभी भी भाजपा में ही हैं, वोट भी भाजपा को ही देंगे! यह गजब है, व्यक्ति की गर्दन पर तलवार रखी हुई है, लेकिन वो कह रहा है कि भाई साहब, गर्दन भले ही काट दो पर हूं मैं आप ही के साथ! ये स्वेच्छा नहीं विवशता है, इस विवशता में यह आस भी है कि शायद क्या पता इसी बात पर गर्दन पर तलवार रखने वाले कुछ रहम करे!
ऐसी विवशता पुरोला में रह रहे उन अल्पसंख्यक परिवारों की भी होगी, जिन्होंने ज़ाहिद मलिक के उस बयान का खंडन किया, जिसमें मलिक ने दुकान खाली करने के दौरान हुई अभद्रता का जिक्र किया था!
भाजपा अल्पसंखयक मोर्चे के कुछ पदाधिकारी बीते रोज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिले. ज्ञापन देते हुए वे मुस्कुराते हुए नज़र आ रहे हैं. अब इसके पीछे मजबूरी है या लाचारी, कह नहीं सकते, अपने समुदाय के कष्ट में होने के बाद खुश होना तो मुश्किल जान पड़ता है. खुश हैं तो उन पर तरस ही खाया जा सकता है!
लेकिन अल्पसंख्यकों की पीड़ा और भाजपा में उनकी हैसियत बयान की, उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष मज़हर नईम नवाब ने. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में उन्होंने लिखा कि “हमारी स्थिति अपने समाज में भी दयनीय है और पार्टी में भी हम अपने समाज को नजदीक लाने में कामयाब न हो सके...”
वाक्य के आखिरी हिस्से में यदि- पार्टी में- की जगह पर -पार्टी को- लिखा होता तो ज्यादा बेहतर होता! मज़हर नईम नवाब तो प्रधानमंत्री से गुहार लगाते हैं कि “मुस्लिम समाज की भारतीय जनता पार्टी व सरकार से दूरी कम हो.....” ! मुस्लिम समाज दूरी कम चाहे भी तो क्या होगा, मजहर भाई ! पार्टी और सरकार की भी तो ऐसी चाहत होनी चाहिए!
उनकी हालत तो यह है कि उन्हें पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा भी चाहिए, आरएसएस का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच भी चाहिए, लेकिन व्यापार, कारोबार, संपन्नता, रोजगार उसके हाथ में नहीं चाहिए बल्कि वह उजड़ा और लाचार चाहिए, मौके-बे-मौके पंचिंग बैग की तरह चाहिए !
सोशल मीडिया पर लोग ठीक ही लिखते हैं कि उन्हें मुसलमान तो कलाम जैसा चाहिए, पर खुद वे गोडसे होना चाहते हैं !