रतन टाटा को RSS ने दिया सेवा रत्न सम्मान, अडानी-अंबानी के बाद टाटा समूह को साधने के पीछे BJP की क्या है रणनीति
रतन टाटा को आरएसएस ने दिया सेवा रत्न सम्मान, अडानी-अंबानी के बाद टाटा समूह को साधने के पीछे बीजेपी की क्या है रणनीति
नई दिल्ली। केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से धर्म-राजनति-कारोबार ( Religion-politics-Business ) का नया समूह बनकर सामने आया है। इस ट्रेंड के सबसे बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे हैं भाजपा नेता, आरएसएस ( RSS ) सहित अन्य हिंदूवादी संगठन और देश के जाने-माने धनकुबेर। इसका मतलब ये भी नहीं है ये लोग अन्य संस्थानों से जुड़े नहीं हैं, पर नजर दौड़ाने पर इस बात का सहज अहसास होता है कि पिछले आठ सालों में देश को चलाने के मामले में नया समूह पूरी तरह से प्रभावी हो गया है।
इस समूह के सबसे बड़े धनकुबेर के रूप में उभरकर गौतम अडानी ( Gautam Adani ) और मुकेश अंबानी ( Mukesh ambani ) सामने आये हैं। वहीं सर्व स्वीकार्य शख्स में रूप में रटन टाटा ( Ratan Tata ) टॉप पर है। खास बात यह है कि रतन टाटा ( TATA Group ) देश के टॉप 10 उद्योगपति नहीं हैं लेकिन उनकी स्वीकार्यता न केवल सरकार, भाजपा में बल्कि आरएसएस और उससे जुड़े संस्थाना में तेजी से बढ़ी है। जबकि अडानी-अंबानी की पहचान राहुल गांधी के पूंजीपति मित्रों के क्लब के अगुवा के रूप में ज्यादा है।
दूसरी तरफ रतन टाटा ( Ratan Tata ) की स्वीकार्यता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं के आरएसएस ( RSS ) के सहयोगी संगठन सेवा भारती ने उन्हें सेवा रत्न से सम्मानित किया है। हाल ही में पीएम मोदी ने उन्हें पीएम आपदा केयर फंड के ट्रस्टियों में शामिल किया था। थोड़ा और पीछे जाएं तो फरवरी 2022 में रतन टाटा को असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने असम बैभव सम्मान से सम्मानित किया था। जब अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम पद पर रहते हुए रतन टाटा को पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया था। अब सवाल यह उठता है कि रतन टाटा से नजदीकी बढ़ाने की वजह क्या है। सरसरी तौर पर यही समझ में आता है कि रतन टाटा न केवल एक सफल कारोबारी हैं बल्कि वह सामाजिक व अन्य मानवीय गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी कर टाटा ग्रुप की नीति हमेशा से सामाजिक सरोकारों व कारपोरेटी भाषा में कहें तो कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिटी के मामले अगुवा बने रहने की रही है। कांग्रेस के शासनकाल में भी टाटा इस मामले में सबसे बेहतर स्थिति रह चुकी है।
दूसरी तरफ कुछ लोग ये कह रहे हैं कि इसके पीछे भाजपा-आरएसएस की नीति कुछ और ही है। माना जा रहा है कि भाजपा लोकसभा चुनाव के दौरान टाटा को राहुल गांधी के पूंजपति मित्र के भाजपा ढाल के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। या अपनी ईमेज को जनहितैषी बनाए रखने के लिए कर सकती है।
अडानी और अंबानी प्रधानमंत्री मोदी और सत्ता से निकटता के लिए जाने जाते हैं। निकटता इतनी कि रिलायंस टेलीकॉम सर्विस की जियो के लॉन्च इवेंट के लिए प्रधानमंत्री मोदी का पूरे पेज का विज्ञापन आया था। जियो ने केवल तीन साल में ग्राहकों का सबसे बड़ा आधार बना लिया है। अडानी के मोदी से तबसे संबंध हैं जब वे मुख्यमंत्री हुआ करते थे। लेकिन मोदी के नई दिल्ली आते ही अडानी की किस्मत ने भी खूब उछाल मारी। इनके अलावा कोटक महिंद्रा बैंक के उदय कोटक और एवेन्यू सुपरमार्केट द्वारा प्रायोजित डी मार्ट हायपरमार्केट चैन के मालिक राधाकिशन दमानी ने ही बड़ी छलांग लगाई है। दमानी 2014 में वे 100वें नंबर पर थे और आज दमानी 7वें पायदान पर पहुंच चुके हैं। उदय कोटक को पिछले साल सरकार नियंत्रित "बोर्ड ऑफ कोलेप्सड इंफ्रास्ट्रक्चर फायनेंसिंग ग्रुप, IL&FS" का चेयरमैन बनाया गया था।
जहां तक बात टाटा सन्स समूह की बात है तो उनकी संपत्ति अलग-अलग लोगों में बंटी हुई है, हालांकि इनके पास भी बहुत बड़ी संपत्ति है। फिर भी वे 10 सबसे अमीर लोगों में नहीं आ पाए। दूसरे जैसे विप्रो चेयरमैन अजीम प्रेमजी ने अपनी संपत्ति का बहुत बड़ा हिस्सा चैरिटी और शैक्षणिक न्यासों को चलाने के लिए दान कर दिया है, इसलिए वे इस लिस्ट से बाहर हैं, हालांकि अभी भी वे बहुत अमीर हैं।
कुछ दिन पहले ही एचसीएल के शिव नादर नागपुर में आरएसएस की स्थापना दिवस पर मुख्य अतिथि थे। इससे कुछ दिन पहले अजीम प्रेमजी ने नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय पहुंचकर मोहन भागवत से मुलाकात की थी। पिछले साल टाटा ट्रस्ट ने नागपुर के एक कैंसर संस्थान को 100 करोड़ रुपए दान में दिए थे। डॉ आबाजी थट्टे नाम का यह ट्रस्ट आरएसएस से संबंधित है। आबाजी थट्टे आरएसएस के दूसरे प्रमुख एम एस गोलवलकर के निजी सचिव थे। 2017 में सार्वजनिक उपक्रम की मशहूर कंपनी ओएनजीसी ने भी अस्पताल को 100 करोड़ रुपये दान में दिए थे। उद्योगपति राहुल बजाज ने नागपुर में आरएसएस संस्थापक हेडगेवार के मेमोरियल स्मृति मंदिर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।
इन सब गतिविधियों के बीच ये सवाल तो वाजिब है न कि अगर किसी से फायदा न हो तो भारत का उद्योगजगत उन्हें नहीं पहचानता। उद्योगजगत के दिग्गजों की आरएसएस से बढ़ती नजदीकी, जिनमें दिग्गज उद्योगपतियों का नागपुर पहुंचकर संस्थापक को याद करना और भागवत से मुलाकात जैसी चीजें हैं, यह मोदी सरकार को समर्थन देने और उनकी नजर में अच्छे बने रहने का एक जरिया भी है।
इनकी नहीं चमकी किस्मत
पालोनजी मिस्त्री ग्रुप तो शुरूआती दस में शामिल होने के बावजूद अच्छा परफार्म नहीं कर पा रही है। मशहूर कंस्ट्रक्शन कंपनी शापूरजी पालोनजी के मालिक पालोनजी मिस्त्री की संपत्ति में 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। यूके में आधारित लक्ष्मी मित्तल जो स्टील कंपनी आर्सेलर मित्तल के मालिक हैं की संपत्ति में भी 34 फीसदी गिरावट आई है। अमीरों की लिस्ट में लंबे समय से शामिल कुमारमंगलम बिड़ला की संपत्ति में महज चार फीसदी का इजाफा हुआ। गोदरेज परिवार की संपत्ति में तीन और एचसीएल टेक्नोलॉजी के शिव नादर की संपत्ति में 15 फीसदी का उछाल आया।
हिंदुत्व का औद्योगिक गठजोड़ तो नहीं
इस ट्रेंड को कई लोग हिंदुत्व-औद्योगिक गठबंधन मानकर चल रहे हैं। इससे आरएसएस प्रमुख द्वारा मोदी सरकार की खुल्लम-खुल्ला कॉरपोरेट समर्थक नीतियों की तारीफ के पीछे की वजह भी समझ में आ जाती है। विजय दिवस पर अपने भाषण में भागवत ने सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश की तारीफ की थी। साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को सही ठहराया था। उन्होंने आर्थिक मंदी पर चल रही बात को भी 'बेफिजूल का विमर्श' करार दिया था।
फिलहाल, 7 अक्टूबर को सेवा रत्न समारोह के दौरान उत्तराखंड के पूर्व राज्यपाल जनरल गुरमीत सिंह ने कहा कि सेवा का अर्थ सेवा भारती से सीखा जा सकता है। यह एक ऐसा संगठन है जो निस्वार्थ भाव को दर्शाता है। जिसके पास कोई नहीं है उसके पास सेवा भारती है। पूर्व राज्यपाल सिंह ने एक समारोह में निस्वार्थ समाज सेवा के लिए 24 गणमान्य व्यक्तियों और संस्थानों को सम्मानित किया।