रिलायंस और भारत सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका, रोकना होगा फ्यूचर ग्रुप के साथ करार
(मुकेश अंबानी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि कोई उनका काम रोकेगा)
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। हमारे देश में आर्थिक उदारीकरण के कारण पिछले कुछ वर्षों से रिटेल मार्किट का आकार बहुत बड़ा हो गया है और अब यह अमेरिका को भी इस मामले में टक्कर देने में सक्षम है। जाहिर है, पूंजीवाद के इस दौर में पूंजीपतियों में इस मार्किट पर एकछत्र कब्जा करने की होड़ है। इस दौड़ में मुकेश अम्बानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड सबसे आगे अपने आप को समझ रही थी। मामला मुकेश अम्बानी का है, तो जाहिर है मोदी सरकार सारे नियम-क़ानून ताक पर रखकर मदद करने में जुटी है।
पिछले 2-3 वर्षों से मुकेश अम्बानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज अपने हिसाब से तरह-तरह की तिकड़म लगाकर अपना मुकाम हासिल करने में प्रयासरत है। इसी कड़ी में पिछले वर्ष के शुरू में रिलायंस ने बिग बाजार वाले फ्यूचर ग्रुप को 24713 करोड़ में खरीदने का ऐलान कर दिया। बिगबाजार के देश के 420 शहरों और कस्बों में 1800 से अधिक रिटेल स्टोर हैं, इसके अतिरिक्त इजीडे, फैशन बिगबाजार और फूड्हाल के भी देश भर में फैले स्टोर भी हैं।
रिलायंस के इस ऐलान के बाद दुनिया के सबसे अमीर जेफ़ बेजोस के अमेज़न ने सिंगापुर स्थित इन्टरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर में मुकदमा दायर कर दिया जिसमें कहा गया था कि फ्यूचर ग्रुप ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि फ्यूचर कूपन, किशोर बियानी के स्वामित्व वाली कंपनी जो बिग बाज़ार की श्रृंखला की प्रमोटर है, में 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी अमेज़न की है। अक्टूबर 2020 में इन्टरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर ने अमेज़न के पक्ष में फैसला दिया और रिलायंस और फ्यूचर ग्रुप के समझौते को रद्द कर दिया।
इन्टरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर में दो अगल देशों के बीच उपजे विवाद का निपटारा किया जाता है और इसके फैसले दुनिया के सभी देश मानते हैं। यह मामला भारत के रिलायंस इंडस्ट्रीज और अमेरिका के अमेज़न के बीच था। इस फैसले के बाद भी रिलायंस इंडस्ट्रीज और फ्यूचर ग्रुप ने इसे मानने से इनकार कर दिया और फ्यूचर ग्रुप को बेचने की प्रक्रिया को जारी रखा। अडानी और अम्बानी के मामले में भारत सरकार का जो रवैय्या है, उसके अनुरूप सरकार ने इस मामले में भी इस फैसले के बाद भी सरकारी संस्थाएं रिलायंस की लगातार मदद करती रहीं।
फैसले के अगले ही महीने, यानि नवम्बर 2020 में भारत सरकार के कम्पटीशन कमीशन ऑफ़ इंडिया ने इस समझौते को मंजूरी दे दी और जनवरी 2021 में सिक्यूरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया ने भी फ्यूचर और रिलायंस के समझौते को अनुमति प्रदान कर दी। इसके बाद फरवरी 2021 में अमेज़न ने दिल्ली हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की, पर न्यायालय ने इन्टरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर के फैसले को भारत में मान्य नहीं बताया और इसी मामले में रिलायंस के विरुद्ध दिए गए एक फैसले को भी पलट दिया और अपनी तरफ से रिलायंस और फ्यूचर ग्रुप के बीच करार पर अपनी मुहर लगा दी।
इसके बाद अमेज़न ने इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 6 अगस्त को निर्णय सुनाया है। इस निर्णय के अनुसार हमारे देश में सिगापुर स्थित इन्टरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर का फैसला मान्य है और रिलायंस ग्रुप और फ्यूचर ग्रुप के करार को रोकना होगा। जाहिर है, रिलायंस ग्रुप के लिए यह बड़ा झटका है क्योंकि पूरी सरकार को अपने इशारे पर नचाने वाले मुकेश अम्बानी ने कभी सोचा भी अहीं होगा कि अपने देश में उनका कोई काम रोक दिया जाएगा। इस फैसले के बाद से रिलायंस इंडस्ट्रीज की कुल संपत्ति 2 प्रतिशत कम हो गयी, जबकि फ्यूचर ग्रुप को 10 प्रतिशत का नुकसान हो गया।
यह पूरा मामला यह भी बताता है कि किस तरह से भारत सरकार की संस्थाए रिलायंस इंडस्ट्रीज की वैध-अवैध मदद के लिए तत्पर रहती हैं और पूंजीवाद का स्वागत करती हैं।