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उत्तर प्रदेश

DDU News Today: DDU कुलपति आवास मरम्मत में सरकारी धन के दुरूपयोग का आरोप,जनसूचना के तहत मिले अधूरे जवाब

Janjwar Desk
30 Dec 2021 3:50 AM GMT
DDU News Today: DDU कुलपति आवास मरम्मत में सरकारी धन के दुरूपयोग का आरोप,जनसूचना के तहत मिले अधूरे जवाब
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DDU News Today: DDU कुलपति आवास मरम्मत में सरकारी धन के दुरूपयोग का आरोप,जनसूचना के तहत मिले अधूरे जवाब

DDU News Today: यूपी के गोरखपुर स्थित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.राजेश सिंह की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। अनियमितता के आरोप में घिरे प्रो. सिंह को हटाने की मांग को लेकर शिक्षक से लेकर छात्र तक आंदोलनरत हैं।

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

DDU News Today: यूपी के गोरखपुर स्थित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.राजेश सिंह की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। अनियमितता के आरोप में घिरे प्रो. सिंह को हटाने की मांग को लेकर शिक्षक से लेकर छात्र तक आंदोलनरत हैं।इस बीच एक जनसूचना अधिकार के तहत कुलपति आवास के मरम्मत के खर्च के संबंध में मांगी गई सूचना पर मिले अधूरे जवाब से संदेह गहराने लगा है। सरकारी धन का दुरूपयोग करने का आरोप लगाते हुए कुलपति पर लोग उंगलियां उठा रहे हैं।

कुलपति प्रो. राजेश कुमार सिंह के कार्य करने को लेकर लंबे समय से यहां पीएचडी के छात्र आंदोलित हैं। इनका आरोप है कि पिछले ढाई वर्षो में उनकी कोई सुध नहीं ली गईं। न परीक्षा कराया गया और न ही कोरोना काल के चलते उन्हें उत्तीर्ण ही किया गया। उधर हिन्दी विभाग के आचार्य प्रो. कमलेश कुमार गुप्त द्वारा लगातार सोशल मीडिया पर कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ मुखर रहे हैं।नियमों की अनदेखी कर शिक्षक व कर्मचारियांे का शोषण करने के साथ ही मौजूदा पाठयक्रम से लेकर परीक्षा प्रणाली पर सवाल उठाया। जिसकी शिकायत कुलाधिपति से लेकर अन्य जवाबदेह अफसरों से भी की। इसके बाद भी कोई नतीजा न निकलने पर आखिरकार कुलपति के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का एलान करते हुए उनके हटने तक सत्याग्रह जारी रखने का एलान किया है।जिसका शिक्षकों व छात्रों का व्यापक समर्थन मिल रहा है। ऐसे में कुलपति पर दबाव बढता जा रहा है। अगले एक सप्ताह में आंदोलन के किसी नतीजे पर पहंुचने के आसार हैं।

कुलपति के आवास मरम्मत में सरकारी धन के दुरूपयोग का आरोप

दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य प्रो.कमलेश गंुप्ता ने जन सूचना अधिकार अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन करके कुलपति आवास के मरम्मत पर आए खर्च के संबंध में जानकारी मांगी थी।जिसमें मांगे गए चार सवालों में यह कहा गया है कि विगत 9 माह में कुलपति आवास के निर्माण व मरम्मत पर कितना खर्च आया है। कौन कौन से उपकरण,मंगाए गए हैं। कृपया उक्त उपकरणों की कंपनी,उपकरणों की कीमत की सूचना दी जाए।क्या जिन उपकरणों की मांग हुई है,आपूर्ति भी उन्हीं की है।यदि नही ंतो आपूर्ति होनेवाले उपकरणों की कीमत बताई जाए।उक्त अवधि मेें निर्माण,मरम्मत,सज्जा आदि मदों में अलग-अलग खर्च की सूचना दी जाए।

इस आवेदन के जवाब में कुलसचिव कार्यालय द्वारा दिए गए जवाब मेें कहा गया कि कुलपति आवास जो 100 वर्ष पूराना था,उसकी छत अचानक रात को सोते समय गिर गयी थी।जो पहले से पानी रिसने की समस्या थी। छत व घर की मरम्मत करायी गई।इस विषय को ध्यान में रखते हुए छत की मरम्मत,वाटर प्रुफिंग,खिड़की दरवाजे की मरम्मत,फर्श की मरम्मत,बिजली वायरिंग का कार्य,फर्नीचर,सोफा सेट की मरम्मत,रंगाई-पुताई इत्यादि कराया गया है।जिसके बिल भुगतान प्रक्रिया में है।

प्रो. कमलके सवालों का दिए गए अधूरे जवाब पर उंगली उठना स्वाभाविक है। खुद प्रो. गुप्ता ने जवाब पर आपति दर्ज कराते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है। जिसमें लिखा है कि क्षेत्र की गरीब जनता के पसीने की कमाई के सदुपयोग या दुरूपयोग के बारे में जानने का हक सबको है।कुलपति आवास पर हुए निर्माण,मरम्मत,लगाए गए उपकरण और साज सज्जा मेे हुए खर्च से संबंधित पूछे गए सवालों का जवाब इस रूप में मिलने का क्या अर्थ है? प्रो. गुप्ता आगे लिखते हैं कि अगर खर्च ठीक ठाक हुए?,कोई वित्तीय अनियमितता नहीं हुंईै किसी तरह का अपव्यय नहीं हुआ,तो पूछे गए सवालोें के जवाब साफ साफ क्यों नहीं दिए गए?आखिर विश्वविद्यालय के ढेर सारे भुगतान प्रक्रिया में क्यों हैं? यह जवाब मिलने के बाद लोगों के संदेह गहराने लगे हैं।सोशल मीडिया पर इसको लेकर बहस छिड़ी हूई है।

सोशल मीडिया पर अपने प्रतिक्रिया में सतीश चंद्र सिंघम लिखते हैं कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय आवास पर सोते समय रात में छत गिर जाता है और कुलपति सुरक्षित परिवार के साथ बच जाते हैं। कोई एक खरोच तक नहीं आती है और रातों रात छत का मरम्मत हो जाता है।जब पैसा कमाने की इतनी लूट पड़ी हो कि विश्वविद्यालय को 100 वर्ष हो गया बताते हैं जबकि विश्वविद्यालय की 1957 में स्थापना हुई है।खैर बड़ी क्रांति मांग रहा है गोरखपुर विश्वविद्यालय। राज कुमार लिखते हैं कि भुगतान की सूचना देने के बजाय लीपापोती की गई है। आपके संघर्ष ऐतिहासिक हैं।

छात्रावास के अव्यवस्था की अनदेखी का लग रहा आरोप

कुलपति के कार्यकलापों को लेकर लगातार सवाल उठा रहे प्रो.कमलेश गंुप्ता ने कुछ दिन पूर्व सोशल मीडिया पर जारी पोस्ट में कहा था कि यह हमारे विश्वविद्यालय के संत कबीर छात्रावास के बगल में बने हुए आवास को कुलपति जी एकाधिक बार इसे देख चुके हैं।छात्रावासों में बच्चे बाजार से खरीद मंगाकर पानी पीने के लिए बाध्य हैं।मेस का पैसा जमा होने के बाद भी खाना बनाकर खाने के लिए विवश हैं। रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण कभी भी दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के लिए अभिशप्त हैे। जगह-ूजगह छत के प्लास्टर टट टूट कर किसी के भी सिर पर गिर पड़ने को आतूर हैं।टोटी बदलने,बल्ब टयूबलाइट,रजिस्टर,डस्टर खरीदने भर का पैसा नहीं है। आखिर हमारे विश्वविद्यालय का धन जा कहां रहा है?अगर प्रोफेसर राजेश सिंह जी ने केवल अपनी छवि और प्रभावशाली लोगों से संपर्क बनाने के लिए बेबिनार-सेमिनार के आयोजन के नाम पर विश्वविद्यालय का करोड़ों रूपए खर्च न किया होता तो विश्वविद्यालय की यह दुर्दशा न होती।

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