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DDU News Today: गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्यादेशों का उल्लंघन, पी-एचडी, प्री पीएचडी शोधार्थी परेशान
DDU News Today: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया,पिछले दो वर्षों से विवादों से घिरी रही है। एक ही परीक्षा के लिए बार-बार रजिस्ट्रेशन कराना परीक्षा शुल्क जमा करना ,प्रवेश परीक्षा देना, फिर साक्षात्कार कि कठिन प्रक्रिया से गुजरने के बाद प्रीपीएचडी कोर्स में प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन पाना,फिर पी एचडी में रेगुलर रजिस्ट्रेशन के लिए वर्षों तक चप्पल घसीटना गोरखपुर विश्वविद्यालय के लिए अब आम बात हो गई है। अनेक नियमों, परिनियमों को समेटे हुए यह 6 महीने का प्री-पीएचडी कोर्स भी सवालों के घेरे में है। यूजीसी व विश्वविद्यालय शोध अधिनियम के अनुसार किसी भी विषय में पी एचडी में स्थाई प्रवेश हेतु शोधार्थी को 6 महीने का अनिवार्य प्री पीएचडी कोर्स करना पड़ता है ,जिसकी पढ़ाई के बाद परीक्षा होती है और उस परीक्षा को उत्तीर्ण करने के पश्चात शोधार्थी का स्थाई शोध पंजीयन होता है। गोरखपुर विश्वविद्यालय की रेट प्रवेश प्रक्रिया ही अनेक गंभीर सवालों के घेरे रहने के बावजूद विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए जबरदस्ती के नियम से कुछ छात्रों को प्रवेश प्री पीएचडी में हुआ।अब यही छात्र प्री पीएचडी परीक्षा कराए जाने या प्रमोट करने की मांग को लेकर पिछले कई दिनों से विश्वविद्यालय में आंदोलनरत हैं। दरअसल यह अनिवार्य प्री पीएचडी कोर्स एक रेगुलर कोर्स है, अर्थात यह प्री पीएचडी कोर्स कहीं पर सरकारी अथवा प्राइवेट नौकरी करते हुए नहीं किया जा सकता।
गंभीर अनियमितता का आलम यह है कि गोरखपुर विश्वविद्यालय में अनेक ऐसे शोधार्थियों ने शासकीय,अशासकीय, स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों के साथ इसी विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करते हुए भी नियमित मोड में संचालित हुए इन प्री पीएचडी कोर्स को अवैध रूप से पूर्ण कर ही लिया। इन प्राध्यापकों द्वारा विश्वविद्यालय ,महाविद्यालय से वेतन लेते हुए प्री पीएचडी कोर्स करने के साथ ही नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए पीएचडी की डिग्री भी हासिल ली गई ,साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा उपाधि भी दे दी गई। गोरखपुर विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में यूजीसी नेट के आधार पर अध्यापक नियुक्त हुए विभिन्न शोधार्थियों ने अपना पंजीकरण पीएचडी में कराया है जिन्हें नियमानुसार प्री पीएचडी कोर्स के लिए अवकाश लेकर पाठ्यक्रम को पूरा करना था बावजूद शोध अध्यादेश का उल्लंघन करते हुए इनके द्वारा विश्वविद्यालय से मानदेय/वेतन लिया गया और अपना प्री पीएचडी कोर्स भी किया गया। ऐसे में सवाल यह है कि जब शोध अध्यादेश में वर्णित है कि कोई भी व्यक्ति सरकारी अथवा प्राइवेट नौकरी करते हुए प्री पीएचडी जैसे अस्थाई कोर्स को नहीं कर सकता है तो विश्वविद्यालय में नवनियुक्त शिक्षकों ने कैसे प्री पीएचडी कोर्स किया और कुछ को विश्वविद्यालय ने कैसे पीएचडी की उपाधि प्रदान कर दी। ज्ञात हो कि पिछले दिनों पत्रकार विभूति नारायण ओझा ने गोरखपुर गोरखपुर विश्वविद्यालय के मीडिया जनसंपर्क अधिकारी श्री महेंद्र कुमार सिंह के संदर्भ में मामले को उठाया था।
जिस पर अभी भी कार्रवाई होना शेष है ज्ञात हो कि श्री महेंद्र सिंह भी गोरखपुर विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र विभाग के शोधार्थी रहे हैं और साथ ही राजनीति विज्ञान विभाग में प्राध्यापक भी अब सवाल है कि नियमित कक्षा अध्यापन और विश्वविद्यालय दायित्वों का निर्वहन करते हुए इन्होंने किस प्रकार से अपनी पीएचडी को पूरा किया ऐसे ही ना जाने कितने और होंगे जो प्री पीएचडी कोर्स और अध्यापन कार्य दोनों को किया है। शोध में गुणवत्ता लाना है एवं शोध अध्यादेशों का हवाला देने वाले कुलपति प्रो. राजेश कुमार सिंह को दिखाई नहीं देता कि किस प्रकार से नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और पीएचडी के नाम पर खेल खेला जा रहा है। आज प्री पीएचडी के शोधार्थी आंदोलन को बाध्य हैं,इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन की घोर लापरवाही सामने आ रही है। विश्वविद्यालय खुद ही असमंजस की स्थिति में है की इन शोधार्थियों को किस प्रकार से परीक्षा कराई जाय। विश्वविद्यालय नियमों की दुहाई तो देता है और खुद ही अपने ही बनाए नियमों को भूल जाता है प्रवेश किसी और अध्यादेश पर करता है तथा परीक्षा किसी और अध्यादेश पर कराने की बात करता है। विश्वविद्यालय के इस दोहरे व्यवहार को देखते हुए पिछले कई दिनों से इस कड़ाके की ठंड में शोधार्थी विश्वविद्यालय में धरने पर बैठे हुए हैं उनकी कोई भी सुध लेने वाला नहीं है।
पीएचडी के इस प्रकरण को विश्वविद्यालय प्रशासन गंभीरता से उठाता है तो ढेरों ऐसे चेहरे सामने आएंगे जिन्होंने विश्वविद्यालय से वेतन उठाते हुए प्री पीएचडी कोर्स किया और आज अध्यापन कार्य कर रहे हैं ऐसे में उनके ऊपर विश्वविद्यालय प्रशासन क्या कार्रवाई करेगा यह समय के गर्त में है। फिलहाल पिछले 2 वर्षों के शोधार्थी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं और अभी भी धरने पर बैठे हुए हैं और यह अध्यापक बंधु बिना प्री पीएचडी कंप्लीट किए ही डॉक्टर की उपाधि से लाभान्वित हो रहे हैं और वेतन उठा रहे हैं विश्वविद्यालय का दोहरा रवैया सोचनीय है। शासन-प्रशासन इसको गंभीरता से लेता है पीएचडी के नाम हो रहे खेल में ढेर सारे राज खुलेंगे और कई नाम सामने आएंगे। इस संदर्भ में विश्वविद्यालय के कुलसचिव से बात करने का प्रयास किया गया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।